'मेश' तकनीक से जुड़ेंगी टूटी हड्डियां, जबलपुर के डॉक्टर का कारनामा

Broken bones, doctors feats associated with mesh technique
'मेश' तकनीक से जुड़ेंगी टूटी हड्डियां, जबलपुर के डॉक्टर का कारनामा
'मेश' तकनीक से जुड़ेंगी टूटी हड्डियां, जबलपुर के डॉक्टर का कारनामा

डिजिटल डेस्क,जबलपुर। नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल कॉलेज अस्पताल के एक डॉक्टर ने अनोखा कारनामा कर दिखाया है। इससे अब हड्डी को जोड़ने में लाखों रुपए नहीं खर्च करने पड़ेंगे। मेडिकल कॉलेज अस्पताल के ट्रामा एवं जोड़ प्रत्यारोपण सर्जन डॉ. सचिन उपाध्याय ने 'मेश' से हड्डी बनाने वाली झिल्ली का निर्माण किया है। डॉ. उपाध्याय की इस तकनीक का प्रकाशन इंटरनेशनल जर्नल में भी हो चुका है और उसे हर तरफ सराहा जा रहा है।

डॉ. उपाध्याय ने इस तकनीक से निर्मित झिल्ली को सिंथेटिक पेरियोसटियम नाम दिया है। इससे नई हड्डी का निर्माण तो होता ही है, साथ ही ये बोन ग्राफ्ट के समावेश को भी बढ़ा देती है, जिससे हड्डी बनाने वाले कई प्रकार के ग्रोथ फैक्टर उससे स्रावित होते हैं। एक्सीडेंट में हड्डी के बीच हुए गेप को मामूली सी 'मेश' या जाली से आसानी से भरा जाएगा। मेडिकल कॉलेज अस्पताल में फिलहाल एक मरीज का इलाज किया गया अब वो चलने लगा है।

डॉ. उपाध्याय ने सबसे पहले वेटरनरी अस्पताल में पशु चिकित्सकों के साथ खरगौश पर इस प्रयोग को आजमाया और अब इंसानों को भी इससे आराम मिलने लगा है। वैसे तो डॉ. सचिन उपाध्याय ने अब तक तीन ऐसे ऑपरेशन किए हैं और मरीजों को लाभ मिल चुका है। रीवा के 30 वर्षीय रामदास यादव का एक्सीडेण्ट में दाहिना पैर टूट गया था। रीवा मेडिकल कॉलेज में उसका करीब 10 माह तक इलाज हुआ पर उसकी हड्डी नहीं जुड़ पाई और पैर में तिरछापन आ गया। रामदास चलने में भी लाचार हो गया। जब वह परेशान हो गया तो जबलपुर मेडिकल कॉलेज आया और यहां डॉ. सचिन उपाध्याय ने मेश तकनीक से ही उसका उपचार किया। अब रामदास अपने पैरों पर खड़ा हो जाता है और कुछ ही दिनों में भागने लगेगा।

ओपन फ्रैक्चर, गैप व कैंसर पीड़ितों को राहत

किसी दुर्घटना में जब घायल की हड्डी बाहर आ जाती है और अपनी जगह छोड़ देती है तब कई बार ऑपरेशन से भी उसे ठीक नहीं किया जा पाता। अस्थि कैंसर में भी अक्सर ऐसा ही होता है, जब एक हिस्सा निकाल दिया जाता है तब मरीज चलने-फिरने से लाचार हो जाता है। ऐसे में डॉ. उपाध्याय की मेश तकनीक बहुत कारगर होगी। डॉ. उपाध्याय ने यह भी बताया कि प्राइवेट अस्पतालों में ऐसे मामलों में लाखों रुपए खर्च करने पड़ते हैं, लेकिन मेश तकनीक से यह खर्च एकदम कम हो जाएगा।

 

Created On :   14 July 2017 3:39 AM GMT

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