यहां मौजूद है देश का सबसे बड़ा बौद्ध स्तूप, जानिए इतिहास

Countrys largest Buddhist stupa Established in Pawni district
यहां मौजूद है देश का सबसे बड़ा बौद्ध स्तूप, जानिए इतिहास
यहां मौजूद है देश का सबसे बड़ा बौद्ध स्तूप, जानिए इतिहास

डिजिटल डेस्क,भंडारा। जिले के पवनी अपनी ऐताहासिकता के लिए प्रसिद्ध है। पवनी में कई ऐताहासिक धरोहर मौजूद है। ऐसी ही चीज है बौद्ध स्तूप। जो देश का सबसे बड़ा स्तूप माना जाता है। गौरतलब है कि पवनी को बौद्ध नगरी के रूप में भी जाना जाता है। यहां से मात्र 3 किमी दूर स्थित ग्राम रुयाड सिंदपुरी में धम्मदूत भिक्खु संघरत्न मानके ने कड़े प्रयास से पज्जा मेत्ता संघ के माध्यम से देश के सबसे बड़े समाधि स्तूप का निर्माण करवाया। आज इस स्तूप के कारण ही पवनी तहसील ही नहीं बल्कि भंडारा जिले का नाम भी विश्व पटल पर रोशन हो चुका है।

पज्जा मेत्ता संघ की ओर से बौद्ध धर्म को अपने समक्ष रखते हुए बनाए गए इस महास्तूप को आज देश की महत्वपूर्ण वस्तु के तौर पर देखा जा रहा है। ऐतिहासिक नगरी पवनी पूर्व में बौद्ध धर्म के प्रसार का मुख्य केंद्र हुआ करती थी। यह बात यहां पर उत्खनन के दौरान सम्राट अशोक के काल में निर्मित बौद्ध स्तूप के अवशेष पाए जाने से साबित हो चुकी है। समय के साथ होने वाले बदलाव के चलते यहां के बौद्ध धर्म के प्रसार केंद्र बंद पड़ गए, कुछ जमींदोज भी हो गए। ऐसे में इस नगरी के सांस्कृतिक रूप से समृद्ध इतिहास के साथ ही बुद्ध धर्मीयों की इस प्राचीन तपोभूमि को उसकी पुरानी प्रतिष्ठा वापस लौटाने के उद्देश्य से भिक्खु संघरत्न मानके ने दूरदृष्टि रखते हुए देश के इस सबसे बड़े महास्तूप के निर्माण करने की संकल्पना रखी।  

निर्माण में आई दिक्कतें
1990 में रुयाड में जमीन खरीदकर इसके निर्माण की नींव रखी गई। इसके बाद 2007 में इसका लोकार्पण किया गया। इस स्तूप का निर्माण जापानी स्तूप की शैली में ही किया जाना था जिसके लिए जापान से विशेष रूप से कुछ लोगों को आमंत्रित करते हुए निर्माण की रूपरेखा बनाई गई थी। इस महास्तूप की शिल्पशैली जापान के परंपरागत स्तूप शैली पर आधारित है। इस स्तूप का वास्तु जापान के प्रख्यात वास्तु शिल्पकार आयु ताकायुरा व आयु ओकाजिमा ने तैयार किया। इस स्तूप की वास्तु जापानी पैगोडा शिल्प शैली में बना हुआ है। यह वास्तु आकाश में उड़ने वाले राजहंस पक्षी जैसी नजर आती है।

10 हजार चौरस फिट भूमि पर यह 120 फिट ऊंची वास्तु तैयार की गई है जिसमें एक समय में करीब दो हजार उपासक एक साथ ध्यान साधना कर सकते हैं। इसके निर्माण की शुरूआत की गई तब काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा,लेकिन भारतीय वास्तु शिल्पकार आयु श्याम जेजुरकर, दक्षायन सोनवने ने जापानी शिल्पकारों से निर्माण की बारिकियां समझ लीं और इस खूबसूरत वास्तु का निर्माण पूर्ण करवाया।

पर्यटन को बढ़ावा
इस वास्तु परिसर में विविध प्रतिमाएं भी स्थापित की गई हैं जिनका महत्वपूर्ण इतिहास रहा है। तथागत सम्यक संबुद्ध की 18 फिट ऊंची प्रतिमा स्थापित करने हेतु वाराणसी से 40 किमी दूर चुनारगड से इसके लिए पत्थर लाया गया। इस पत्थर की विशेषता यह है कि इसी पत्थर से सम्राट अशोक ने 2 हजार 300 वर्ष पहले 84 हजार स्तूपों का निर्माण करवाया था। उसी पत्थर का उपयोग इस महास्तूप में बुद्ध की प्रतिमा तैयार करने के लिए किया गया। इस प्रतिमा का निर्माण करने वाले कारागीर भी उनके ही वंशज हैं। इसी प्रकार डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर व बोधिसत्व देंग्योदाईशी की 6 फिट ऊंची प्रतिमाएं चीन में सॅन्डस्टोन से बनी हैं।
 

Created On :   25 Sep 2017 4:52 AM GMT

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