धरती पर यहां साक्षात माैजूद हैं वैकुण्ठवासी के पद, आज भी वह पत्थर...
डिजिटल डेस्क, गयाा। भगवान विष्णु चार मास की योगनिद्रा के बाद वैकुण्ठ चतुर्दशी को पुनः अपना कार्यभार संभालने वाले हैं। इस अवसर पर हम आपको उनके चरण चिंहों के दर्शन कराने जा रहे हैं। धरती पर यह पवित्र स्थान गया में स्थित है। मान्यता है कि यहां भगवान विष्णु स्वयं सदा ही निवास करते हैं। पिंडदान के बाद विष्णुपद के दर्शनों से पितृ, मातृ व गुरू के ऋण से मुक्ति मिलती है।
गयासुर का किया था वध
कहा जाता है कि गयासुर नामक राक्षस ने भगवान से कठिन तप के बाद वरदान प्राप्त कर लिया। किंतु इसके बाद वह देवताओं को सताने लगा। उसके अत्याचार बढ़ गए। इससे परेशान होकर सभी देवता मदद की विनती करते हुए भगवान विष्णु की शरण में गए। देवताआें की पीड़ा हरने उनकी प्रार्थना काे स्वीकार भगवान विष्णु ने गयासुर के अत्चाराें से संसार काे मुक्त करने का निर्णय लिया। भगवान ने गयासुर का वध गदा मारकर कर दिया। किंतु बाद में उसके सिर पर पत्थर रखकर उसे मोक्ष प्रदान किया।
आज भी मौजूद है वह पत्थर
गया में आज भी वह पत्थर मौजूद है। गयासुर का वध करने के कारण ही उन्हें गया तीर्थ का मुक्तिदाता कहा जाता है। वहीं यहां से करीब 8 किलोमीटर दूर प्रेतशिला है जहां पिंडदान करने से अकाल मृत्यु का शिकार हुए लोगों को मुक्ति मिलती है तथा उन्हें विभिन्न योनियों का कष्ट नहीं भोगना पड़ता। पितृपक्ष में फल्गु नदी के तट पर विष्णुपद मंदिर के समीप और अक्षयवट के पास पिंडदान करने से पूर्वजों को मुक्ति मिलती है।
विधि-विधान से होती है पूजा
वैकुण्ठ चतुर्दशी पर यहां भव्य आयोजन किए जाते हैं। विष्णुपद मंदिर में इस दिन उत्सव का माहाैल होता है। चार माह बाद भगवान विष्णु के योगनिंद्रा से जागने पर विधि-विधान से उनकी पूजा की जाती है। जिसके बाद हरिहर मिलन होता है और भगवान शिव उन्हें कार्यभार सौंपते हैं।
Created On :   1 Nov 2017 3:52 AM GMT