Film review: फुकरों की वापसी आपको आएगी पसंद...

Film review:once again the fukre returns is creating its magic
Film review: फुकरों की वापसी आपको आएगी पसंद...
Film review: फुकरों की वापसी आपको आएगी पसंद...

डिजिटल डेस्क, भोपाल। नवंबर के महीने में कोई खास फिल्म रिलीज नहीं हुई। फिर दिसंबर के पहले शुक्रवार को संजय लीला भंसाली की मोसेट अवेटेड फिल्म रिलीज होने वाली थी, लेकिन विरोध के चलते हैं वो भी टल गई। अच्छी फिल्म के लंबे इंतेजार के बाद अब इस शुक्रवार एक हल्की फुल्की फिल्म "फुकरे रिटर्सन्स" रिलीज हुई। जो पहले ही दिन से दर्शकों को अपनी ओर खींच ही है। इसका एक कारण इस फिल्म का पहला पार्ट भी है जो शुरू भले ही लोगों को पसंद नहीं आया था, लेकिन बाद में फिल्म काफी पसंद की गई। इसी उम्मीद के साथ की पहले पार्ट की ही तरह इसका सीक्वल भी मजेदार होगा, ऑडियंस थियटर तक पहले दिन से ही पहुंचने लगे और इस फिल्म ने किसी को भी निराश नहीं किया। फिल्म फुकरे रिटर्न्स की कहानी है दिल्ली के 4 फुकरों यानी चूचा, हन्नी, भोली, और अली की, जिसमें पांचवां फुकरा पंडित जी भी है। इस बार भोली जेल से निकलने के बाद चारों फुकरों की अच्छे से खबर लेती है क्योंकि इन्हीं की वजह से वो जेल गई है। चूचा भविष्य देख पाता है इसलिए वो इन फुकरों से सौदा करती है। चूचा अब भी भोली से प्यार करता है।

                           

इस बार भोली पंजाबन (ऋचा चड्ढा) जेल से कुछ ज्यादा ही खूंखार होकर लौटी है। वो चारों फुकरों लाली (मनजोत सिंह), चूचा (वरुण शर्मा), जफर (अली फजल) और हनी (पुलकित सम्राट) को अपने पास बुलाती है और कहती कि उसके लिए काम करें वरना उनको मरवा देगी। भोली चारों फुकरों को एक रस्सी से बांधकर उनके पीछे पटाखे लगवा देती है। फुकरे डर जाते हैं और भोली का कहना मान लेते हैं। सौदे के मुताबिक वो उनके बूते लॉटरी के नंबर पहले से जानकर मालामाल हो जाएगी, लेकिन लॉटरी चलानेवाला नेता बाबूलाल भाटिया ज्यादा चालाक निकलता है और जिस नंबर की लॉटरी खुलने वाली है उसे बदलवा देता है। अब वो लोग, जिन्होंने लॉटरी में पैसे लगाए हैं, फुकरों के खून के प्यासे हो जाते हैं। फुकरे भागते हैं, लेकिन भोली आखिरकार उनको पकड़वा ही लेती है।

भोली ने एक दूसरा धंधा शुरू कर दिया है। लोगों के गुर्दे निकलवा के बाजार में बेचने का। वो चारों फुकरों के गुर्दे निकलवाना चाहती है ताकि कुछ तो नुकसान की भरपाई हो सके। लेकिन इसी बीच चूचा के पास दूसरी शक्ति आ जाती है। वो छिपे हुए खजाने के बारे में बता सकता है। ऐसा खजाना जिसके ऊपर एक बाघ बैठा है। भोली अब चाहती है चूचा और उसके दूसरे मित्र उस खजाने को खोजें। सब मिलके खोजने निकलते हैं।फुकरों को खजाना मिलता है या नहीं ये तो फिल्म देखने पर ही पता चलेगा? 

 

 फिल्म फुकरे रिटर्न्स की अच्छाइयों की अगर बात करें तो ये फिल्म युवाओं के लिए बनाई गई है और युवा फिल्म की तरह लगती भी है। दिल्ली के इन किरदारों को ठीक से गढ़ा गया है। फिल्म में कुछ दृश्य बहुत हंसाते हैं और कहानी में कुछ ट्विस्ट भी हैं जिसे आप तब समझेंगे जब फिल्म देखेंगे। चूचा ने जबरदस्त अभिनय किया है और अपने किरदार में जान डाली है। भोली की भूमिका में ऋचा चड्ढा जमी हैं। फिल्म फुकरे रिटर्न्स की फुकरागिरी और चूचा का भोली के लिए प्यार मजेदार है।

अब बारी कुछ खामियों की। जैसा हम सभी जानते हैं कि फिल्म फुकरे रिटर्न्स सीक्वल है 2013 में आई फुकरे का। फुकरे रिटर्न्स के ट्रेलर से लग रहा था कि बहुत धमाल होगा इस फिल्म में लेकिन ऐसा नही है। कॉमेडी फिल्म का दावा करने वाली इस फिल्म में आपको बहुत ज्यादा हंसने वाले दृश्य नहीं मिलेंगे। जब "फुकरे" फिल्म आई थी तो उसमें खास तरह की ताजगी थी। कुछ नयापन लगा था। लेकिन "फुकरे रिटर्न्स" में नयापन नहीं है। हालांकि हंसने के कई मौके इसमें हैं। लेकिन जब मूल "फुकरे" से इसकी तुलना होगी तो पुरानी फिल्म ही बीस साबित होगी। फिल्म में कहानी से ज्यादा इसके किरदारों पर ध्यान दिया गया है। यानी स्क्रिप्ट थोड़ी कमजोर है। बिना वजह के लंबे-लंबे दृश्य हैं। 

 

                           

सबसे बड़ी कमी तो इसमें यह है कि तीन फुकरों- लाली, हनी और जफर, की भूमिका दमदार नहीं है जैसी कि पहले थी। हां, चूचा की भूमिका में वरुण शर्मा कई दृश्यों में भारी पड़ गए हैं। ऐसा एक दृश्य तो वह है, जिसमें वो अपनी होनेवाली गर्लफ्रेंड से मिलने पर कोई इश्क-विश्क की बात नहीं करता बल्कि उससे कहता है कि उसकी पीठ खुजाए क्योंकि उसे घमौरियां हो गई हैं। ऐसे शख्स के पास गर्लफ्रेंड क्या टिकेगी, सो वो चली जाती है। दूसरा वो दृश्य है, जिसमें जब बाबूलाल भाटिया उसे गरमागरम चिकन खिला रहा होता है, तो उसकी प्लेट में पानी गिर जाता है। चूचा उस गीले चिकन को तौलिये से गर्म करने की कोशिश करता है। भोली पंजाबन के रूप में ऋचा चड्ढा भी पहले जैसी नहीं जमी हैं।
हालांकि उनके कुछ डायलॉग अच्छे हैं। हां, बाबूलाल भाटिया के रूप में राजीव गुप्ता जरूर अच्छा है। पंडित (पंकज त्रिपाठी) की भूमिका का भी विस्तार हुआ है और पंडित जब बुर्के में भोली पंजाबन से मिलने जाते हैं तो वह दृश्य लाजबाब है। 

Created On :   9 Dec 2017 3:31 AM GMT

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