कला और संस्कृति का नायाब नमूना है चंद्रपुर की गुफाएं

Incredible specimen of art and culture is the caves of Chandrapur
कला और संस्कृति का नायाब नमूना है चंद्रपुर की गुफाएं
कला और संस्कृति का नायाब नमूना है चंद्रपुर की गुफाएं

डिजिटल डेस्क,चंद्रपुर। चंद्रपुर की प्राचीन धरोहर पुरातत्व कला का अद्भुत नमूना है।  महाकाली मंदिर और ताड़ोबा को यदि एकसाथ जोड़ दिया जाए तो चंद्रपुर जिले में पर्यटन दिलों को छूने वाला है। तहसील के देऊलवाड़ा, विंजासन, शहर के राका तालाब और गवराला के साथ ही बल्लारपुर तहसील के सास्ती व कोठारी, नागभीड़ तहसील के मोहाड़ी, कोरपना तहसील की कारवाही, जिवती की परमडोली, वरोरा की भटाला व मूल तहसील की जुनासूर्ला की 12 गुफाओं का महाराष्ट्र की नामी 1200 गुफाओं में समावेश है। भद्रावती तहसील की 5 गुफाओं में विंजासन गुफाएं पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र हैं। इन्हें बौद्ध गुफाओं के नाम से पहचाना जाता है। यहां पर तीन गुफाएं हैं। इनका निर्माण पहली शताब्दी के सातवाहन काल में राजा विजय सातकर्णी द्वारा किए जाने की बात कही जाती है। यह गुफाएं दो चरणों में बनायी गई थीं। 

ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार हिनयान पंथ के अनुयायियों ने ध्यान व प्रार्थना सभागृह का निर्माण किया। महायान पंथ के अनुयायियों ने भगवान गौतम बुद्ध की भव्य प्रतिमा का निर्माण किया। यहां की अन्य गुफाओं में देऊलवाड़ा की दो गुफाएं सातवाहन काल में हिनयान पंथ के साधकों के जरिए निर्मित कराई जाने की बात कही जाती है। दूसरी गुफा लगभग 7वीं सदी में बनाई गई है। इसमें शंख लिपि को उकेरा गया है। राजा हर्षवर्धन के समय की लिपि भी यहां पर दिखाई देती है। राका तालाब व गवराला की गुफाएं 5 वीं सदी में राजे वाकाटक के कार्यकाल की बताई जाती हैं। इसमें विष्णु के नृसिंह अवतार उकेरे गए हैं। 

जिवती तहसील के परमडोली की गुफा जो कि शंकरलोधी के नाम से मशहूर है, यह प्रागैतिहासिक होकर कुछ ऊंचाई पर होने से लोगों ने यहां लकड़ी की सीढ़ी लगा रखी है। गुफा में शिवलिंग स्थापित है। 6वीं सदी में निर्मित वरोरा तहसील की भटाला की गुफा राष्ट्रकुटों के समय की है। यहां पर भी शिवलिंग है। बल्लारपुर के कोठारी की सातवाहन कालीन गुफाएं मानवनिर्मित है। दूसरी सास्ती की गुफाएं प्रागैतिहासिक होने के साथ ही दोनों रेतीलें पत्थरों को आकार देकर बनाई गई है। दोनों वर्धा नदी के किनारे ही स्थित हैं। कोरपना तहसील के कारवाही की गुफा नानक पठार के नाम से जानी जाती है। पहली शताब्दी में हिनयान पंथ के साधकों साधनागृह के रूप में इसका निर्माण किया था। नागभीड़ तहसील के मोहाड़ी की पांडव गुफाएं सातवाहन काल में बनाई गई हैं। इसमें दो प्रवेश द्वार हैं। इसे भी प्रार्थनागृह के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। ऐसा माना जाता है कि मूल तहसील के जुनासूर्ला में दक्षिण छोर पर एक बड़े पत्थर के भीतर प्राकृतिक रूप से बने सभागृह जैसे स्थल को पहली सदी में उपयोग में लाया जाता था।

Created On :   8 Sep 2017 4:49 AM GMT

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