नेपाल में बहुमत से बनेगी माओवादी सरकार, भारत के लिए क्या है खास?

Nepal elections : Communist alliance wins big, India tries to fix ties
नेपाल में बहुमत से बनेगी माओवादी सरकार, भारत के लिए क्या है खास?
नेपाल में बहुमत से बनेगी माओवादी सरकार, भारत के लिए क्या है खास?

डिजिटल डेस्क, काठमांडू। कभी हिंदू राष्ट्र कहलाने वाला नेपाल देश अब पूर्ण लोकतंत्र की ओर मजबूत कदम रखने जा रहा है। नेपाल में हुए 165 सीटों के लिए माओवादी गठबंधन 114 सीटों के साथ भारी बहुमत से सरकार बनाने की ओर बढ़ रहा है। इस प्रत्यक्ष चुनाव में नेकपा (एमाले) और नेकपा (माओइस्ट सेंटर) यानी माओवादियों को अब तक 114 सीटें हासिल हो चुकी हैं। इनमें एमाले की 76 और माओवादियों की 38 सीटें हैं। अब इनके नेता के.पी. ओली देश के अगले प्रधानमंत्री बन सकते हैं। दोनों पार्टियों ने क्रमश: 103 और 60 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए थे। अभी कुछ सीटों की मत-गणना बाकी है।

नेपाल कांग्रेस की हालत खराब
नेपाल की सबसे पुरानी और भारत समर्थक समझी जाने वाली नेपाली कांग्रेस के सबसे ज़्यादा 153 उम्मीदवार मैदान में थे, लेकिन उसे महज़ 21 सीटों पर ही कामयाबी मिली। नेपाली कांग्रेस की इतनी बुरी हालत पहले कभी नहीं हुई थी. राजतंत्र और हिन्दू राष्ट्र समर्थक पार्टियों को जनता ने पूरी तरह नकार दिया है। हालांकि नेपाल के पीएम और नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी माओवादी सेंटर (सीपीएन) के खगराज भट्टा को 6929 मतों के अंतर से हराकर जीत दर्ज की है। वहीं राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी को केवल एक सीट मिली है, जबकि हिन्दू राष्ट्र और राजतंत्र के प्रबल समर्थक कमल थापा चुनाव हार गए हैं।

नेपाल चुनाव : बहुमत की ओर वामपंथी गठबंधन, के.पी.ओली बन सकते हैं पीएम

पूर्व प्रधानमंत्री के. पी. ओली के नेतृत्व वाले सीपीएन-यूएमएल और पूर्व प्रधानमंत्री प्रचंड के नेतृत्व वाले सीपीएन-माओवादी ने ऐतिहासिक चुनाव के लिए गठबंधन किया था। अब यह गठबंधन नेपाल में बहुमत से सरकार बनाने जा रहा है। इस चुनाव परिणाम से नेपाल में वर्ष 2006 में गृह युद्ध समाप्त होने के बाद अब लोकतंत्र की स्थापना में मदद मिलेगी। साल 2006 से नेपाल 10 प्रधानमंत्री देख चुका है।

भारत के लिए खास
ओली की सत्ता में वापसी से भारत की नीति को भी झटका लग सकता है। शेर बहादुर देबा के नेतृत्व वाली नेपाली कांग्रेस को भारत समर्थक माना जाता रहा है। मगर पिछली बार जब 9 महीने के लिए ओली ने प्रधानमंत्री पद संभाला था तो उन्होंने ऐसे कदम उठाए जिससे नेपाल और भारत के रिश्तों में तनाव पैदा हो गया था। साथ ही नेपाल और चीन की करीबी भी बढ़ गई थी। ओली ने पीएम रहते भारतीय ईंधन, दवाइयों और अन्य सामानों पर निर्भरता की स्थिति से निपटने के लिए चीन के साथ एक समझौता भी किया था।

बता दें कि कोली ने जब 2015 में प्रधानमंत्री पद संभाला था, उस समय नए संविधान के खिलाफ मधेसियों का विरोध चरम पर था। जिसके परिणाणस्वरूप ही करीब 6 महीने तक भारत-नेपाल के बीच व्यापार रास्ता बंद रहा। उस समय भारत ने अनाधिकारिक तौर पर मधेसियों का समर्थन किया था। तब के.पी. ओली ने यह मुद्दा जमकर उठाया था कि भारत उनके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करता है।

नेपाल के 6 प्रदेशों में वामपंथी मजबूत
नेपाल की 275 सीटों वाली प्रतिनिधि सभा में 165 सीटें प्रत्यक्ष चुनाव (फर्स्ट पास्ट दि पोस्ट) के ज़रिये तथा 110 सीटें समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली से तय होनी हैं। देश के कुल 7 प्रदेशों के चुनाव नतीजे भी कमोबेश ऐसे ही हैं। केवल 2 नंबर के प्रदेश में वामपंथियों की स्थिति कमज़ोर है—शेष 6 प्रदेश में भी वामपंथियों की ही सरकार बनेगी। वामपंथी दल इन 6 प्रदेशों में काफी मजबूत नजर आ रहे हैं।

गौरतलब है कि नेपाल में संसदीय और प्रांतीय विधानसभाओं के चुनाव के लिए दो चरणों में 26 नवंबर और 7 दिसंबर को मतदान हुए थे। पहले चरण में 32 जिलों में चुनाव हुए थे, जिसमें से ज्यादातर पवर्तयीय इलाके शामिल थे। पहले चरण में 65 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया। दूसरे चरण में 67 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया। संसदीय सीटों के लिए हुए चुनाव में 1663 उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। संघीय संसद की 275 सीटों और सात प्रांतीय सभाओं के लिए 550 सदस्यों को चुना जाएगा। राजशाही के अंत और गृहयुद्ध ख़त्म होने के बाद नेपाल में पहली बार आम चुनाव हुए हैं।

Created On :   12 Dec 2017 1:30 PM GMT

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