आस्था और श्रद्धा का केंद्र 'राघादेवी', जानिए क्या है इतिहास ?

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आस्था और श्रद्धा का केंद्र 'राघादेवी', जानिए क्या है इतिहास ?
आस्था और श्रद्धा का केंद्र 'राघादेवी', जानिए क्या है इतिहास ?

डिजिटल डेस्क,छिंदवाड़ा। श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र राघादेवी सतपुड़ा की वादियों के बीच स्थित है। सौंसर तहसील के रामाकोना से 24 किलोमीटर दूरी पर स्थित राघादेवी गुफा में शिवलिंग के दर्शन के लिए लोग बड़ी संख्या में यहां पहुंचते है। राघादेवी की गुफा का द्वार पहाड़ियों के बीच में है। गुफा में पहुंचने के लिए 40 फीट नीचे उतरना पड़ता है।


राघादेवी गुफा की खोज लगभग 200 साल पहले हुई थी। पहले गुफा में जाने के लिए लोग पेड़ों की लताओं का सहारा लेकर उतरते थे। इसके बाद गुफा में उतरने के लिए लकड़ी और बाद में लोहे की सीढ़ियों का इंतजाम किया गया। गुफा की देखरेख का जिम्मा शंकर भोले सेवा समिति पर है। समिति अध्यक्ष बाजीराव वरठी बताते है कि सिद्ध शिवलिंग के दर्शन करने सावन मास में बड़ी संख्या में शिव भक्त यहां पहुंचते हैं। गुफा में प्रवेश करते ही किसी अद्भुत लोक में पहुंचने का अहसास लोगों को रोमांच से भर देता है। शंकर भोले सेवा समिति के सचिव पीए भक्ते शिक्षक बताते है कि गुफा करीब 100 फीट चौड़ी व 300 फीट लंबी है।

गुफा में दो शिवलिंग
प्राचीन गुफा में दो शिवलिंग हैं। एक प्राकृतिक शिवलिंग जिस पर 12 महीने गुफा के ऊपरी भाग से पानी की बूंदें गिरती है। इसे गुप्तेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। दूसरा शिवलिंग पुरातन है। श्रद्धालु इसकी पूजा कर गुप्तेश्वर महादेव के मात्र दर्शन करते हैं। 

क्या है मान्यता ?
प्राचीन गुफा के संबंध में क्षेत्र में कई मान्यताएं है। मान्यता है कि कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर भोलेनाथ ने राक्षस भस्मासुर को यह वरदान दिया था कि वह जिस के सिर पर हाथ रखेगा वह भस्म हो जाएगा। वरदान मिलने के बाद भस्मासुर भोलेनाथ के सिर पर ही हाथ रखने लगा। तब भोलेनाथ ने राघादेवी की गुफा में शरण ली और फिर यहीं से सुरंग के माध्यम से बड़ा महादेव पहुंचे थे। 

Created On :   17 July 2017 4:58 AM GMT

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