तीन तलाक असंवैधानिक, सरकार 6 महीने में कानून बनाए: सुप्रीम कोर्ट

Supreme Court will decide tomorrow on triple divorce
तीन तलाक असंवैधानिक, सरकार 6 महीने में कानून बनाए: सुप्रीम कोर्ट
तीन तलाक असंवैधानिक, सरकार 6 महीने में कानून बनाए: सुप्रीम कोर्ट

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मुस्लिमों में ट्रिपल तलाक के विवादित मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है। सुप्रीम कोर्ट ट्रिपल तलाक पर 6 महीने की रोक लगा दी है, साथ ही केंद्र सरकार से संसद में कानून बनाने के लिए कहा है। फैसला सुनाते हुए चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने कहा कि संसद में कानून बनाने के लिए सभी पार्टियों को राजनीति से ऊपर उठकर फैसला लेना होगा। बड़ी बात ये है कि सरकार के कानून बनाने तक ट्रिपल तलाक पर रोक लगा दी गई है। यानी, इन 6 महीनों के दौरान कोई भी एक बार में तीन तलाक देता है तो वो अवैध माना जाएगा। 

5 में से 3 जजों ने करार दिया असंवैधानिक

पांच जजों की बेंच में 3 जजों ने ट्रिपल तलाक को असंवैधानिक बताया। इनमें जस्टिस नरीमन, जस्टिस ललित और जस्टिस कुरियन शामिल हैं। इन्होंने जस्टिस खेहर और जस्टिस नाजिर की राय का विरोध किया।

पीएम मोदी ने फैसले को बताया ऐतिहासिक

फैसले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि "ट्रिपल तलाक पर माननीय सुप्रीम कोर्ट का फैसला ऐतिहासिक है। यह मुस्लिम महिलाओं को समानता देता है साथ ही महिला सशक्तिकरण की दिशा में मजबूत कदम है।" प्रधानमंत्री ने 15 अगस्त को लाल किले से दिए भाषण में भी तीन तलाक से मुक्ति की बात कही थी। इससे पहले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में ये मसला छाया रहा था। माना जाता है कि यूपी में बीजेपी की एकतरफा सरकार बनाने में मुस्लिम समुदाय की महिलाओं की बड़ी भागीदारी रही, क्योंकि उन्हें लगता था कि पीएम मोदी उन्हें ट्रिपल तलाक के दर्द से निजात दिलाएंगे। फैसले पर अमित शाह ने कहा कि "मैं अपने अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ रही सभी पीड़ित मुस्लिम महिलाओं के हक में आए इस फैसले का स्वागत करता हूं। तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से मुस्लिम महिलाओं के लिए स्वाभिमान पूर्ण एवं समानता के एक नए युग की शुरुआत हो गई है।" वहीं कांग्रेस ने कहा कि "हम ट्रिपल तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हैं, यह भारत में मुस्लिम महिलाओं के समान अधिकारों के लिए एक प्रगतिशील, धर्मनिरपेक्ष निर्णय है।"

18 मई को सुरक्षित रखा था फैसला

चीफ जस्टिस जेएस खेहर की अगुवाई वाली इस बेंच ने 6 दिनों की लगातार सुनवाई के बाद 18 मई को इस पर फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया था कि वह मुस्लिमों में एक से अधिक विवाह के मुद्दे पर विचार नहीं कर सकती, क्योंकि उसका ध्यान मुस्लिम समुदाय में ट्रिपल तलाक को धर्म के नाम पर जबरिया धार्मिक अधिकार के रूप में देखा जाए या नहीं इस पर है।

बेंच में हर धर्म के जज

खास बात यह है कि 5 जजों वाली इस बेंच में सिख, ईसाई, पारसी, हिन्दू और मुस्लिम धर्म के जज शामिल हैं। बेंच ने 7 अपीलों की सुनवाई की है, जिसमें से 5 अपील मुस्लिम महिलाओं ने ट्रिपल तलाक को चुनौती देते हुए दायर की थी। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि ट्रिपल तलाक गैरकानूनी है। वहीं मुस्लिम महिलाओं ने अपनी याचिका में कहा था कि उनके पतियों ने कभी फोन पर तो कभी मैसेज कर 3 बार तलाक शब्द कह दिया और उनका तलाक हो गया।

  • सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि मुस्लिम विवाह विच्छेद की सबसे खराब प्रक्रिया ट्रिपल तलाक है। हांलाकि कुछ मुस्लिम विचारधाराओं में इसे वैधानिक बताया गया है।
  • बहस के दौरान मशहूर वकील राम जेठमलानी ने ट्रिपल तलाक को लैंगिग विभेद और कुरान-ए-शरीफ के खिलाफ बताते हुए कहा था, कि इसके बचाव में किसी भी प्रकार की पैरवी नहीं की जा सकती।
  • केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि अगर 3 तलाक को अमान्य और गैरकानूनी करार दिया जाता है, तो वह मुस्लिम समुदाय में विवाह और तलाक को लेकर नए कानून बनाएगी। सरकार ने मुस्लिम समुदाय में तलाक-ए-विद्दत, तलाक हसन और तलाक अहसान को न्यायिक दायरे के बाहर बताया था।

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का तर्क


मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का मानना है कि आस्था के मामले में कोर्ट दखल नहीं दे सकता। बोर्ड का कहना है कि पर्सनल लॉ के तहत धर्म को अपने तरीके से चलाने के अधिकार संविधान ने दिए हैं और कोर्ट उसकी समीक्षा नहीं कर सकता।

Created On :   21 Aug 2017 4:09 PM GMT

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