छठ पूजा से जुड़ी हैं ये मान्यताएं, ऐसे शुरू हुआ ये कठिन पर्व

The vedic festival Chhath Puja will be celebrated on October 26
छठ पूजा से जुड़ी हैं ये मान्यताएं, ऐसे शुरू हुआ ये कठिन पर्व
छठ पूजा से जुड़ी हैं ये मान्यताएं, ऐसे शुरू हुआ ये कठिन पर्व

डिजिटल डेस्क, पटना। छठ पूजा 2017 इस वर्ष नहाए खाए के साथ के 24 अक्टूबर से प्रारंभ होगा। इस त्योहार को लेकर भी अनेक मान्यताएं हैं। कहा जाता है कि इस त्योहार पर व्रत करने से संतान को दीर्घायु का वरदान प्राप्त होता है। यहां हम आपको छठ पर्व से जुड़ी मान्यताओं और कथा के बारे में बताने जा रहे हैं।

छठ पर्व की परंपरा कैसे शुरू हुई इसे लेकर कहा जाता है कि राजा प्रियव्रत ने कश्यप ऋषि से संतान प्राप्ति का उपाय पूछा था। उनके बताए अनुसार राजा ने यज्ञ का आयोजन किया जिससे उनकी पत्नी मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया, किंतु वह मृत पैदा हुआ। इस पर ब्रम्हदेव की मानस पुत्री ने उसे जीवित किया और राजा से कहा कि संतान के मंगल के लिए इस दिन को सदा ही पूजा जाए। इस पर राजा ने इस दिन को छठ पर्व के रूप में प्रारंभ किया। 

दूसरी मान्यता कहती है कि क‌िंदम ऋष‌ि की हत्या का प्रायश्चित करने के लिए जब महाराज पांडु अपनी पत्नी कुंती के साथ वन में दिन गुजार रहे थे। उन्हीं दिनों पुत्र प्राप्ति की कामना से महारानी कुंती ने सूर्य की उपासना की और उनकी गोद कर्ण नामक एक ऐसे शूरवीर पुत्र से भर गई जो अत्यंत ही बलशाली था। इसलिए छठ पर्व के दिन सूर्य उपासना का महत्व है।  कुंती की पुत्रवधू और पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने भी जब पांडव अपना सारा राजपाठ गंवाकर वन-वन भटक रहे थे तब द्रौपदी ने सूर्यदेव की उपसना की थी।  

छठ पर्व मुख्य रूप से बिहारवासियों का पर्व माना जाता है। इसकी शुरूआत अंगराज कर्ण से मानी जाती है। अंग प्रदेश वर्तमान भागलपुर में है जो ब‌िहार में स्‍थ‌ित है। इसे लेकर कहा जाता है कि अंगराज कर्ण सूर्य और कुंती की संतान थे। वे अत्यंत ही शक्तिशाली थे और एक कवच के साथ उनका जन्म हुआ था। ये उनके शरीर से चिपका हुआ था। इसके रहते किसी के लिए भी उन्हें मारना संभव नही था। कर्ण सूर्य के उपासक थे। अंगप्रदेश वासियों ने भी अपने राजा की भक्ति व शक्ति को देखकर सूर्य की उपासना शुरू की। धीरे-धीरे सूर्य पूजा का विस्तार पूरे बिहार और पूर्वांचल क्षेत्र तक हो गया और अब छठ पर्व के रूप में सूर्य पूजा वृहद स्तर पर की जाती है। 

इसके अतिरिक्त छठ पर्व को लेकर एक अन्य मान्यता है कि दिवाली से ठीक छठे दिन भगवान राम ने माता सीता के साथ सरयू नदी में सूर्यदेव की पूजा की थी। भगवान राम ने स्वयं देवी सीता के साथ षष्ठी तिथि का व्रत रखा और सरयू नदी में डूबते सूर्य को फल, मिष्ठान व अन्य वस्तुओं के साथ अघ्र्य दिया। सप्तमी तिथि को भगवान राम ने उगते सूर्य को अर्घ्य देकर सूर्य देव का आशीर्वाद प्राप्त किया। इसके पश्चात उन्होंने राजकाज संभाला और पूर्वजों का आशीर्वाद लेकर कार्य प्रारंभ किया। तब से इस दिन को छठ पर्व के रूप में मनाया जाता है। 

Created On :   22 Oct 2017 4:23 AM GMT

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