अबूझ मुहूर्त, फिर भी इस दिन नही करता कोई अपनी कन्या का विवाह
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली । विवाह पंचमी, मार्गशीर्ष माह की शुक्ल पक्ष पंचमी की ये तिथि अत्यंत ही उत्तम जाती है। इस दिन भगवान राम और सीता का विवाह हुआ था। राजा दशरथ ने अपनी कन्या सीता के विवाह हेतु योग्य वर ढूंढने स्वयंवर का भव्य आयोजन किया। जहां भगवान श्रीराम ने धनुष तोड़कर उन्हें वर लिया था। इस दिन देवताओं ने मंगलगीत गाय, आसमान से फूलों की बारिश हुई।
जनकपुर से लेकर अयोध्या तक ही नही समस्त संसार ने इस विवाह की खुशियां मनाईं, लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा इस दिन कोई भी अपनी कन्या का विवाह नही करता। इस परंपरा को खासकर उस स्थान पर अपनाया जाता है जहां स्वयं माता सीता का बचपन बीता अर्थात मिथिला में। जी हां, यहां विशेष रूप से लोग अपनी कन्याओं का विवाह इस तिथि पर नही किया करते...
भृगु संहिता में मिलता है उल्लेख
यह दिन विवाह के लिए अबूझ मुहूर्त है ऐसा उल्लेख भृगु संहिता में मिलता है, किंतु इस दिन को लेकर ये भी माना जाता है कि इसी दिन विवाह होने की वजह से ही माता सीता को इतना कष्ट भोगना पड़ा। पति के रूप में राम को पाने के बाद भी उन्हें वैवाहिक सुख नही मिला, उनका जीवन में दुखों में बीता। 14 वर्ष वनवास के बाद भी मिथ्या कलंक के कारण वे फिर वन में भेज दी गईं, और जब उनकी पुनः प्रभु श्रीराम से अपने पुत्रों के साथ मुलाकात हुई तो उन्हें फिर परीक्षा से गुजरना पड़ा और अंत में वे धरती में समा गईं।
राम-जानकी विवाह प्रसंग तक
यही वजह है कि उत्तम मुहूर्त होने के बाद भी इस दिन विवाह नही किए जाते। इस दिन रामचरितमानस का पाठ भी राम-जानकी विवाह प्रसंग तक ही पढ़ा जाता हैं। इसके बाद माता सीता के दुखों का वर्णन है। जिसकी वजह से यह आगे नही पढ़ा है।
Created On :   21 Nov 2017 3:36 AM GMT