सर्टिफिकेट के बिना वॉइस रिकार्डिंग सबूत के तौर पर मान्य नहीं : HC

Voice recording is not valid without certificate : high court
सर्टिफिकेट के बिना वॉइस रिकार्डिंग सबूत के तौर पर मान्य नहीं : HC
सर्टिफिकेट के बिना वॉइस रिकार्डिंग सबूत के तौर पर मान्य नहीं : HC

डिजिटल डेस्क,जबलपुर। एक मामले पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा है कि सबूत के रूप में वॉइस रिकार्डिंग को तभी मान्य माना जाएगा, जब उसका सर्टिफिकेट पेश किया जाएगा। निचली अदालत ने रिश्वत के एक मामले में सिर्फ बातचीत के अंशों के आधार पर सजा देकर गलती की है, क्योंकि ऐसा सबूत कानून में मान्य नहीं है। 

दरअसल शिकायतकर्ता विशाल कुमार विनोदिया ने लोकायुक्त पुलिस में शिकायत दी थी कि RTO कार्यालय जबलपुर में पदस्थ बाबू हरपाल सिंह बुन्देला उससे लर्निंग लाईसेंस बनाने के लिए 6 हजार रुपए की रिश्वत मांग रहे हैं। बाबू की बातचीत रिकॉर्ड करने लोकायुक्त पुलिस ने शिकायतकर्ता को वॉइस रिकॉर्डर के साथ 5-5 सौ रुपए के 4 नोट दिए। इसके बाद शिकायतकर्ता रिश्वत की रकम के साथ RTO कार्यालय गया और हरपाल सिंह बुन्देला के कथित निर्देश पर दो हजार रुपए गणेश राजपूत को दिए। इसी बीच लोकायुक्त की टीम ने छापा मारा और गणेश के पास से रकम बरामद की। इस मामले में पेश किए गए चालान पर विचारण के बाद लोकायुक्त की विशेष अदालत ने हरपाल सिंह बुन्देला को 3 साल की सजा सुनाई थी। इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई, जहां पर सबूतों के अभाव में अदालत ने दी गई सजा खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि मामले में न तो ऐसा कोई सर्टिफिकेट पेश हुआ न रिकॉर्डर और न ही उसका परीक्षण किया गया। इसके बाद भी निचली अदालत ने रिश्वत के एक मामले में सिर्फ बातचीत के अंशों के आधार पर सजा देकर गलती की है, क्योंकि ऐसा सबूत कानून में मान्य नहीं है। इस मत के साथ जस्टिस एसके गंगेले की एकलपीठ ने रिश्वत लेने के आरोप में लोकायुक्त की विशेष अदालत की RTO में पदस्थ एक बाबू को दी गई सजा खारिज कर दी।

रिटायर मामले में हाईकोर्ट का कड़ा रुख
वहीं एक अन्य मामले में हाईकोर्ट ने 62 के बजाए 60 साल की उम्र में रिटायर करने का आदेश खारिज होने और मिलने वाले सभी लाभों का भुगतान न करने का आरोप लगाने वाली पांच कर्मचारियों की याचिकाओं पर कड़ा रुख अपनाया है। जस्टिस अंजुली पालो की एकलपीठ ने कहा है कि कर्मचारियों के पक्ष में पारित आदेश पर यदि शीर्ष अदालत स्टे नहीं देती, तो आवास एवं पर्यावरण विभाग के प्रमुख सचिव मलय श्रीवास्तव सहित 3 अधिकारी अगली पेशी पर हाजिर हों। इस मत के साथ अदालत ने अगली सुनवाई अक्टूबर माह के दूसरे सप्ताह में निर्धारित की है। 

दरअसल ये याचिकाएं जबलपुर के गुप्तेश्वर में रहने वाले हीरालाल विश्वकर्मा व 4 अन्य की ओर से दायर की गई हैं। आवेदकों का कहना है कि हाउसिंग बोर्ड के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के रूप में उन्हें 62 के बजाए 60 वर्ष की उम्र में रिटायर किया जा रहा था। इसके खिलाफ दायर याचिकाओं पर हाईकोर्ट ने 1 दिसंबर 2016 को याचिकाकर्ताओं को 60 वर्ष में रिटायर करने संबंधी आदेश को निरस्त कर दिया था। अदालत ने यह भी कहा था कि याचिकाकर्ताओं को 62 वर्ष तक पद पर काम करने दिया जाए और उसको उसका पूरा हक दिया जाए। एकलपीठ के इस फैसले के खिलाफ दायर अपील हाईकोर्ट की युगलपीठ ने 4 जुलाई 2017 को खारिज कर दी गई। इसके बाद भी याचिकाकर्ताओं को उनके लाभ न मिलने के खिलाफ ये अवमानना याचिकाएं दायर की गईं थीं। मामले में आवास एवं पर्यावरण विभाग के प्रमुख सचिव मलय श्रीवास्तव, हाउसिंग बोर्ड के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी राजेश बाथम, डिप्टी कमिश्नर एसके सुमन व अन्य को पक्षकार बनाया गया था। 

मामलों पर हुई सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता राजेश सोनी ने पक्ष रखा। अनावेदकों की ओर से अधिवक्ता वायएम तिवारी ने अदालत को बताया कि ये मामले सुप्रीम कोर्ट में दायर हुए हैं, जो फिलहाल लंबित हैं। अदालत ने स्पष्ट किया है कि अगली सुनवाई तक यदि एकलपीठ के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट स्टे नहीं देता तो तीनों अधिकारियों (प्रमुख सचिव मलय श्रीवास्तव, प्रशासनिक अधिकारी राजेश बाथम, डिप्टी कमिश्नर एसके सुमन) को कोर्ट में हाजिर होना पड़ेगा। 


पहाड़ियों पर कब्जों करने वालों को मालिकाना हक देने को चुनौती
इधर,पहाड़ियों पर मौजूद अतिक्रमणों को नियमित करने के संबंध में सरकार की ओर से जारी अध्यादेश को लेकर हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है। अतिक्रमणों के खिलाफ लंबित याचिका में एक अर्जी में पडाड़ियों पर मौजूद अतिक्रमणों के खिलाफ कार्रवाई जारी रखने की राहत चाही गई है। अर्जी पर शुक्रवार 22 सितंबर को हाईकोर्ट में सुनवाई होगी। 

गौरतलब है कि मदन महल पहाड़ियों पर फैले अतिक्रमणों के खिलाफ यह जनहित याचिकाएं गढ़ा गौंडवाना संरक्षक संघ के किशोरीलाल भलावी व अन्य और दूसरी याचिका नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच की ओर से दायर की गई है। इन मामलों में आरोप है कि मदनमहल के ऐतिहासिक किले के आसपास की करीब 306 हैक्टेयर भूमि पर दबंगों ने अतिक्रमण कर अवैध तरीके से कालोनियों व शिक्षण संस्थानों का निर्माण कर लिया है। आवेदकों का कहना है कि अखबारों में प्रकाशित खबरों पर वर्ष 1995 में हाईकोर्ट ने किले व उसके आसपास की भूमि को संरक्षित किए जाने के निर्देश पुरातत्व विभाग व मप्र शासन को दिए थे। 

इतना ही नहीं इस जमीन को पर्यटन के लिए विकसित करने भी कहा गया था। इसके बाद भी अब तक कोई कार्रवाई न हुई, बल्कि धीरे-धीरे वहां पर अतिक्रमणकारियों का कब्जे लगातार होते गए। इस मामले पर पूर्व में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण संस्था की ओर से कहा गया था कि इस धरोहर को संरक्षित करने के लिए एक प्रस्ताव तैयार किया गया है। इसके बाद हाईकोर्ट ने जिला कलेक्टर व निगमायुक्त को आदेशित किया था कि स्थानीय व निगम कानून के तहत कार्रवाई करते हुए अतिक्रमणकारियों को हटाकर स्टेटस रिपोर्ट पेश की जाए। मामले के विचाराधीन रहते मप्र सरकार ने भू राजस्व संहिता 1959 की धारा 162 में संशोधन करके पहाड़ियों पर फैले अतिक्रमण करने वालों को भू स्वामी अधिकार देने का फैसला लिया। इस अध्यादेश को कटघरे में रखते हुए यह अर्जी हाईकोर्ट में दायर की गई है। मंच की ओर से अधिवक्ता मनोज शर्मा पैरवी कर रहे हैं।

Created On :   19 Sep 2017 2:46 AM GMT

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