ग्राउण्ड रिपोर्ट : बालाघाट लोकसभा क्षेत्र: नक्सल प्रभावित बैहर, लांजी में कांग्रेस के मुकाबले भाजपा कमजोर, पेयजल, रोजगार व पीएम आवास जनता के लिए बड़ा मुद्दा

नक्सल प्रभावित बैहर, लांजी में कांग्रेस के मुकाबले भाजपा कमजोर, पेयजल, रोजगार व पीएम आवास जनता के लिए बड़ा मुद्दा
  • जनप्रतिनिधियों व अफसरों के रवैये से नाखुश हैं नक्सल प्रभावित इलाकों के लोग
  • अंदरूनी इलाकों में रह रहे लोगों के पास अब तक नहीं पहुंचे भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशी
  • धान की एमएसपी बन सकती है गले की फांस

बैहर/लांजी/बालाघाट से कपिल श्रीवास्तव/श्रवण शर्मा। नक्सल प्रभावित इलाकों बैहर, लांजी तथा परसवाड़ा के 7,08,734 मतदाताओं में से अधिकांश जनप्रतिनिधियों व अफसरों के रवैये से नाखुश हैं। वजह दक्षिण बैहर के लांजी से लगे पितकोना, दड़ेकसा, अडोरी व कोरका, बिरसा के डाबरी, बिठली, पाथरी, सोनगुड्डा, लातरी समेत परसवाड़ा के खारा, पोलबत्तुर, डोरा जैसे सौ से अधिक गांवों में पेयजल का गंभीर संकट है। जल-जीवन मिशन की नल-जल योजना फेल हो चुकी है। कुएं व हैंडपंप के सहारे काम चल रहा है। नेटवर्क से भी कई गांव कटे हैं, क्योंकि जहां टॉवर हैं वहां पॉवर नहीं और जहां पॉवर है वहां टॉवर नहीं हैं। प्रधानमंत्री आवास की जानकारी अधिकांश ग्रामीणों को नहीं है। ग्रामीण डाक सेवा केन्द्र के भी अधिकांश जगह बोर्ड मात्र लगे हैं। इनमें कौन बैठेगा, इसकी विभाग से मंजूरी नहीं मिल पाई है। सड़क और पुल..पुलियों पर काफी काम हुआ है, बावजूद इसके कुछ स्थानों पर सडक़ व पुल-पुलिया के काम डेढ़-दो दशक से अधूरे पड़े हैं। सडक़ें दो जून की रोटी यानि रोजगार के लिए पलायन इनकी सबसे बड़ी चिंता है। नक्सलियों का खौफ अब इनके चहरों पर नहीं दिखता, क्योंकि पुलिस ने यहां सख्ती कर रखी है और लगातार सर्चिँग अभियान चलाए हुए है। जब-तब होने वाली नक्सली-पुलिस मुठभेड़ इन्हें जरूर चिंता में डाले हुए है। मुफ्त राशन, लाड़ली बहना तथा उज्जवला योजना का लाभ मिलने से इनके चेहरे खिले हुए हैं। वोट देने के नाम पर कांग्रेस का नाम मुंह पर है, लेकिन प्रत्याशी का नाम अधिकांश लोगों को नहीं मालूम।

आश्चर्य यह कि नक्सल प्रभावित क्षेत्र के अंदरूनी इलाकों में रह रहे लोगों के पास अब तक दोनों प्रमुख दलों के प्रत्याशी नहीं पहुंचे हैं। प्रत्याशियों के प्रचार वाहन, पार्टी कार्यकर्ता जरूर बीच-बीच में इन तक पहुंचे हैं और अपने-अपने दल के झंडे तथा प्रत्याशी के पंपलेट गांवों में लगा आए हैं। उकवा के चिखलाझोड़ी निवासी सलीम खान, पोंडी के ओमेन्द्र बिसेन, लातरी के बिशन सिंह, अजाब सिंह परते पितकोना की लमिया परते, सोनगुड्डा तथा डाबरी के देवी सिंह, रामेश्वर बागड़े, सुभाष मेश्राम, बिठली के भुवन सिंह आदि कहते हैं कि प्रत्याशी आए या न आए गांव वालों को फर्क नहीं पड़ता क्योंकि हम सभी को यह पता है कि आए भी तो कुछ करेंगे नहीं और जीत गए तो इस ओर का कभी रूख करेंगे नहीं। वे बताते हैं कि पूर्व सांसद बोधसिंह भगत जरूर एक बार इधर आए थे , लेकिन पिछली पंचवर्षीय क्या उसके कहीं पहले से सांसद यहां नहीं आए हैं। वे आते भी हैं तो उकवा या फिर ज्यादा से ज्यादा लांजी मुख्यालय और कभी-कभार बैहर हो कर निकल जाते हैं। अंदरूनी स्थिति से वाकिफ मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने पिछले तीन दिन के दरम्यान नक्सल प्रभावित बेल्ट के उकवा व लांजी में जरूर 2 सभाएं कर पार्टी के कार्यकर्ताओं व नेताओं को यह संकेत दिए हैं कि वे अंदरूनी इलाकों में जनता के बीच जाएं, कहीं कोई खतरा नहीं है।

सीएम की सभाओं से ये संकेत भी मिले

सीएम डॉ. यादव की नक्सल क्षेत्र में हुई 2 सभाओं से ये संकेत भी मिले हैं कि भाजपा को इन इलाकों के घने जंगलों के बीच बसे आदिवासियों में अपनी जीेत की संभावनाएं नजर आ रही हैं। इन्हीं संभावनाओं के मद्देनजर उसने कांग्रेस की परंपरागत बेल्ट कहे जाने वाले इस क्षेत्र में करीब साल भर पहले काम शुरू कर दिया था। उसे उत्साहित करने वाले परिणाम विधानसभा चुनाव में मिले। लांजी सीट उसने दस साल बाद 2783 वोटों से छीनी तो बैहर में उसका प्रत्याशी कांग्रेस के प्रत्याशी से मात्र 551 वोटों से पीछे रह गया था। इस इलाके में कांग्रेस की कमजोर होती जड़ों और भाजपा के बढ़ते दखल को देखते हुए संघ कार्यकर्ता विधानसभा चुनाव बाद से इन इलाकों में बराबर बना हुआ है। इसका असर यह देखने को मिला कि गांव के लोग यह जानने, समझने लगे हैं कि उन्हें जो मिल रहा है, वह दिल्ली में बैठी मोदी सरकार दे रही है। आश्चर्य यह कि कांग्रेस अब भी इन क्षेत्रों में पूरी तरह सक्रिय नहीं हुई हैे। कांग्रेस का राष्ट्रीय व प्रदेश स्तर के नेता को तो छोडि़ए स्थानीय विधायक व पूर्व विधायक भी इन गांव वालों के बीच अब तक नहीं पहुंचे। कांग्रेस प्रत्याशी सम्राट सिंह इसकी वजह उन्हें चुनाव लडऩे मात्र 20 दिन मिलना बताते हैं जबकि भाजपा प्रत्याशी भारती पारधी करीब 400 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैले इस संसदीय क्षेत्र में महीने-सवा महीने में घर-घर या फिर गांव-गांव तक पहुंचना असंभव बताती हैं। साथ ही कहती हैं कि हमारे कार्यकर्ता हरेक तक पहुंच कर हमारी पार्टी तथा प्रधानमंत्री की बात पहुंचाने में लगे हुए हैं।

किसी दल के एजेंडे में यह इलाके शामिल नहीं

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव उकवा जैसे नक्सल प्रभावित इलाके में सभा करना बड़े कलेजे की बात होना कहते हैं। बावजूद इसके भाजपा या उसकी प्रत्याशी भारती के एजेंडे में इस नक्सल प्रभावित क्षेत्र का विकास तथा यहां के लोगों की समस्या का समाधान शामिल नहीं है। कांग्रेस प्रत्याशी सम्राट 2 साल से जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर काबिज हैं। वे यहां की समस्याओं की जड़ जल-जीवन मिशन के कार्यों में व्यापक पैमाने पर हुआ भ्रष्टाचार तथा स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर पैदा करने में सरकार, प्रशासन तथा स्थानीय जनप्रतिनिधियों की अरूचि बताते हैं। उनके एजेंडा में भी यह नक्सल प्रभावित क्षेत्र तथा वहां के लोग शामिल नहीं हैं।

धान की एमएसपी बन सकती है गले की फांस

बालाघाट संसदीय क्षेत्र को वैनगंगा नदी ने दो हिस्सों में बांट रखा हैएक तरफ की बालाघाट, लांजी, बैहर व परसवाड़ा में कांग्रेस का पलड़ा 3-1 से भारी है तो दूसरी ओर के वारासिवनी, कटंगी, सिवनी तथा बरघाट में भाजपा 3-1 से मजबूत है।इस मजबूती वाले इलाके में भाजपा की मुश्किलें धान की एमएसपी के मुद्दे ने बढ़ा रखी हैं और इसका असर बालाघाट से सटी मंडला संसदीय सीट पर भी पड़ रहा हैप्रधानमंत्री की गारंटी के बावजूद सरकार द्वारा 3100 रुपए के समर्थनमूल्य (एमएसपी) पर धान की खरीदी नहीं किए जाने से इस संसदीय क्षेत्र के करीब 3 लाख किसान खफा हैं और कांग्रेस इसे लेकर गांव-गांव पहुंच रही है और भाजपा की वादाखिलाफी के रूप मेें प्रचारित कर रही है इसे देखते हुए मुख्यमंत्री ने बालाघाट तथा मंडला संसदीय क्षेत्र में इधर लगातार सभाएं की हैं और यह बताने की कोशिश की है कि जुलाई में आने वाले पूर्ण बजट में प्रावधान के बाद धान के साथ गेहूं व अन्य उपज भी प्रधानमंत्री की गारंटी के अनुरूप सरकार खरीदेगी।

Created On :   17 April 2024 8:39 AM GMT

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