पिछले साढ़े चार सौ साल से विज्ञान के लिए अबूझ पहेली है ये मंदिर 

For the four and a half hundred years, this temple is a puzzle
पिछले साढ़े चार सौ साल से विज्ञान के लिए अबूझ पहेली है ये मंदिर 
पिछले साढ़े चार सौ साल से विज्ञान के लिए अबूझ पहेली है ये मंदिर 

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले में एक मंदिर जो धर्म और विज्ञान के लिए पिछले साढ़े चार सौ साल से अबूझ पहेली बना हुआ है। ये है लेपाक्षी मंदिर, इस मंदिर की दक्षिण भारत में बड़ी मान्यता है। यहां की जादुई बात यह है कि इस मंदिर के स्तंभ में से ही एक स्तम्भ जो हवा में आज भी झूलता रहता है। जिस पर्वत पर ये मंदिर बना है, उस स्थान का वर्णन रामायण में भी मिलता है।

मान्यता
कहा जाता है कि है कि जब रावण सीता का अपहरण करने के बाद श्रीलंका रवाना हुआ तो पक्षीराज जटायु ने इसी स्थान पर रावण का रास्ता रोक कर उससे युद्ध किया था और इसी जगह पर रावण ने जटायु को घायल कर दिया था। यहां पर चरणों के चिन्ह को लेकर कई मान्यताएं हैं। कोई कहता है ये देवी दुर्गा के चरण है, कोई इसे श्रीराम के पदचिन्ह कहता है। यहां एक अद्भुत शिवलिंग रामलिंगेश्वर है जिसको जटायु के अंतिम संस्कार के बाद भगवान श्रीराम ने स्वयं स्थापित किया था। 

ब्रिटिश इंजीनियर भी हुए थे आश्चर्यचकित
कहा जाता है कि 1902 में उस ब्रिटिश इंजीनियर ने मंदिर के रहस्य को सुलझाने के कई प्रयास किए। पूरी इमारत का आधार किस स्तम्भ पर है ये जांचने के लिए उस इंजीनियर ने हवा में झूलते स्तम्भ पर हथौड़े से वार किए। इस मंदिर के रहस्य के सामने ब्रिटिश इंजीनियर के वैज्ञानिक तर्क भी गलत सिद्ध हुए क्योंकि इस स्तम्भ पर हुई चोट से लगभग 25 फीट दूर स्थित कुछ स्तंभों में दरारें आ गईं। यानी ये स्पष्ट हो गया कि इस इमारत का सारा भार यानी इमारत का पूरा आधार इसी स्तम्भ पर टिका है, जिसे छेड़ने से पूरी इमारत धराशाई हो सकती है। तब वे इंजीनियर भी इन्हीं सवालों के साथ लौट गया, कि आखिर हवा में झूलते स्तम्भ के सहारे कोई इमारत कैसे खड़ी रह सकती है ?

स्वयंभू शिवलिंग
इस धाम में स्थित एक स्वयंभू शिवलिंग भी है जिसे शिव का रूद्र अवतार यानी वीरभद्र अवतार माना जाता है। 15वीं शताब्दी तक ये शिवलिंग खुले में विराजमान था इस पर कोई छत नहीं थी लेकिन विजयनगर के राजा ने इस पर मंदिर का निर्माण किया। मंदिर के पुजारी कहते हैं कि पहले यहां स्वामी पैदा हुआ था। 1538 में यहां भगवान की प्रतिष्ठा करने वाले अन्ना के दो पुत्र थे। एक पुत्र बोल नहीं पाता था। यहां पूजा करने के बाद उसके बेटे को बोलना आ गया और उसके बाद मंदिर बनाया गया। 

 

 

Created On :   29 March 2019 12:33 PM

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