जबलपुर: सार्वजनिक वाहनों में पैनिक बटन लगाने का 12 से 14 हजार रुपए तक वसूला जा रहा

  • यही पैनिक बटन पड़ोसी राज्यों में 6 से 7 हजार में लग जाता है
  • बस ऑपरेटरों का कहना है कि परिवहन विभाग खुद फिटनेस को बढ़ावा देना नहीं चाहता, इसलिए रेट कम नहीं कर पा रहा
  • परिवहन विभाग में बिचौलियों के कारण वाहन मालिकों को निर्धारित शुल्क से ज्यादा रुपए देने पड़ रहे हैं

Safal Upadhyay
Update: 2024-04-30 09:14 GMT

डिजिटल डेस्क,जबलपुर। बस, टैक्सी से लेकर ऐसे सभी वाहन जो यात्री सेवा में लगे हैं उनमें पैनिक बटन, जीपीएस अनिवार्य है। इन डिवाइस को लगाने में पड़ोसी राज्यों में जहाँ 6 से 7 हजार रुपए ही खर्च आ रहा है, वहीं मध्य प्रदेश के शहरों में इसके लिए 12 से 14 हजार रुपए देने पड़े रहे हैं।

इसमें विशेष बात यह है कि यदि पैनिक बटन का रिन्यूवल कराना है ताे एक साल के पाँच और दो साल में 7 हजार रुपए तक वसूले जा रहे हैं। बस ऑपरेटर एसोसिएशन का कहना है कि प्रदेश के परिवहन विभाग ने सार्वजिनक वाहनों में इस तरह के डिवाइस लगाने में एजेंसियों को खुली छूट दे दी है।

अब जो एजेंसियाँ हैं वे सार्वनिक कार्य में लगे बसों व टैक्सी मालिकों और वाहन मालिकों से मनमानी वसूली पर उतारू हैं। वाहन मालिकों कहना है कि आरटीओ की इस तरह की अनदेखी से जो समय पर अपना वाहन फिटनेस कराना चाहते हैं उनमें तहाशा व्याप्त हो रही है।

गौरतलब है कि बिना बीमा व फिटनेस के बसों व अन्य वाहनों को सड़कों पर नहीं दौड़ा सकते, लेकिन अब भी 100 में 40 प्रतिशत ऐसे यात्री वाहन हैं, जिनमें दोनों उपकरण नहीं लगे हैं। एक वर्ष पूरा होने पर फिर से फिटनेस कराने पर जीपीएस व पैनिक बटन का नवीनीकरण कराना होता है।

वाहन मालिक कहते हैं परिवहन विभाग में बिचौलियों के कारण वाहन मालिकों को निर्धारित शुल्क से ज्यादा रुपए देने पड़ रहे हैं। इससे वाहन मालिक फिटनेस कराने से बच रहे हैं। इधर परिवहन विभाग के अधिकारी कहते हैं कि इसके लिए जल्द ही विभाग, ली जाने वाली राशि को लेकर निर्णय लेने वाला है और नई एजेंसियाँ इस कार्य में लगाई जाएँगी।

पैनिक बटन क्या है

सार्वजनिक बसों व टैक्सी वाहनों में पैनिक बटन, जीपीएस इसलिए अनिवार्य किया गया ताकि किसी भी तरह की आपात स्थिति में लोगों को मदद मिल सके। अगर कोई वाहन में लगे डिवाइस से छेड़छाड़ करता है, पैनिक बटन दबाता है तो कंट्रोल रूम में इमरजेंसी अलर्ट आएगा।

इस डिवाइस के जरिए यह पता चल जाएगा कि उक्त वाहन की लोकेशन कहाँ है। आपात स्थिति में इससे मदद में आसानी हो सकेगी।

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