जबलपुर: मिट्टी की गणेश प्रतिमा की स्थापना ही सर्वश्रेष्ठ, धार्मिक ग्रंथों में बताई गई है महिमा
प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियों को कहें न स्थापित करें केवल मिट्टी से बनी मूर्तियाँ
डिजिटल डेस्क,जबलपुर।
दस दिवसीय गणेशोत्सव 18 सितंबर से प्रारंभ हो रहा है। पहले दिन भाद्र पद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को भगवान गणपति घर-घर विराजमान होंगे। ये प्रतिमाएँ पीओपी, मिट्टी, रसायन व धातुओं से निर्मित होती हैं। आध्यात्मिक जानकारों का कहना है कि गणेशोत्सव के दौरान मिट्टी की गणेश प्रतिमा स्थापित करना ही सर्वश्रेष्ठ होता है, क्योंकि इससे सकारात्मक ऊर्जा का प्राप्त होती है। मिट्टी की प्रतिमा स्थापित करने का उल्लेख धार्मिक ग्रंथों में भी है।
गणेशोत्सव को लेकर शहर का पूरा बाजार सज गया है। बाहर से पीओपी की प्रतिमाएँ भी लाई गई हैं। ऐसे में लोगों को मिट्टी से बनी प्रतिमाओं का महत्व पता होना चाहिए। पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी प्रतिमाएँ पानी में नहीं घुलती हैं। इनकी फिनिशिंग में उपयोग किए गए कैमिकल जलीय जीवों के साथ पर्यावरण के लिए घातक हैं। वहीं मिट्टी की प्रतिमा आसानी से पानी में घुल जाती है। प्रकृति और नदियों को स्वच्छ रखने के लिए इस दिशा में जागरूकता जरूरी है।
मिट्टी से नहीं होता जल प्रदूषण
नरसिंह पीठाधीश्वर डॉ. नरसिंह दास महाराज, ब्रह्मचारी चैतन्यानंद महाराज कहते हैं कि मिट्टी में अंतर्निहित शुद्धता होती है। इसमें प्रकृति के पाँच तत्व भूमि-जल-वायु-अग्नि और आकाश हैं, इसलिए प्रथम पूज्य भगवान गणपति का भूमि में आह्वान कर उनकी प्राण प्रतिष्ठा करने से कार्य सिद्ध होता है। उन्होंने कहा कि हमारी परंपरा में धातुओं के स्थान पर पार्थिव मूर्ति की पूजा का बहुत महत्व है। इनका निर्माण निराकार मिट्टी को साकार मूर्ति के रूप में आकार देने के भारतीय दर्शन से जुड़ा है और विसर्जन के बाद साकार रूप निराकार में समा जाता है। जब मिट्टी की मूर्तियों को नदियों आदि में विसर्जित किया जाता है, तो वे प्रदूषण का कारक नहीं बनती हैं।