मुंबई मनपा: जीरो प्रिस्क्रिप्शन पॉलिसी के लिए करना होगा और इंतजार, दो बार निकली डेट लाइन

  • निविदा प्रक्रिया में फंसी है नीति
  • जीरो प्रिस्क्रिप्शन पॉलिसी के लिए करना होगा और इंतजार

Bhaskar Hindi
Update: 2024-05-26 08:20 GMT

डिजिटल डेस्क, मुंबई, मोफीद खान। मुंबई मनपा द्वारा संचालित अस्पतालों में इलाज के लिए आनेवाले मरीजों को बहार से दवा न खरीदनी पड़े इसके लिए मनपा प्रशासन ने जीरो प्रिस्क्रिप्शन पॉलिसी लागू करने की घोषणा की थी। 1 अप्रैल से यह पॉलिसी लागू होनेवाली थी लेकिन निविदा प्रक्रिया में यह पॉलिसी अटक गई है। इस निविदा प्रक्रिया के लिए करीब 5 से 6 महीने का समय लग सकता है। इसलिए मुंबईकरों को मनपा अस्पतालों में जीरो प्रिस्क्रिप्शन के लिए 6 महीने का और इंतजार करना पड़ सकता है। मनपा अस्पतालों में सिर्फ मुंबई से ही नहीं दूर दराज से लोग इलाज के लिए आते है। मनपा शेड्यूल में कई दवाइयां न होने के कारण अधिकांश मरीजों को कई दवाइयां बाहर से खरीद कर लानी पड़ती है, ऐसे में मरीजों की जेब पर अधिक भार बढ़ रहा था। बीते वर्ष मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे द्वारा केईएम अस्पताल में किए गए औचक निरीक्षण में कई मरीजों ने दवाइयां बाहर से खरीदने की आप बीती सुनाई थी। इसी के मद्देनजर मुख्यमंत्री ने गरीब मरीजों पर इलाज के बोझ को कम करने के लिए पिछले वर्ष ही जीरो प्रिस्क्रिप्शन पॉलिसी लागू करने की घोषणा की थी।

दो बार बीत चुकी है डेट लाइन

मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद 15 जनवरी से इस पॉलिसी को लागू करना था लेकिन उस समय मनपा के केंद्रीय खरीददारी विभाग के पास अस्पताल से दवाइयों की सूची-सूची पहुंचते-पहुंचते देरी होने की वजह से 15 जनवरी को इसे लागू नहीं कर पाया गया। इसके बाद मनपा ने वित्तीय वर्ष 2024-25 के बजट में इसे एक अप्रैल से लागू करने की घोषणा की थी। लेकिन निविदा प्रक्रिया पूरी न होने और आचार संहिता लागू होने से मामला फिर लटक गया है। इसके अलावा मनपा की खरीदी विभाग में केवल 4 से 5 लोग ही कार्यरत हैं। मनुष्यबल की कमी भी काम को प्रभावित कर रही है।

5 हजार दवाई- चिकित्सकीय सामग्री को किया गया शामिल

वर्तमान में मनपा के शेड्यूल में अभी तक मामूली बुखार, खांसी, दर्द निवारक दवा, इंजेक्शन से लेकर ग्लूकोस, आईवी सेट, सर्जरी के उपकरण, टेस्टिंग कीट आदि ऐसे 1600 वस्तु मनपा खरीदकर इसे मरीज को मुफ्त में मुहैया कराती है। लेकिन जीरो प्रिस्क्रिप्शन पॉलिसी के तहत नई दवाइयां और सर्जरी सामग्री को जोड़ा गया है जिसकी संख्या मनपा शेड्यूल में बढ़कर 5 हजार हो गई है।

वर्तमान स्थिति

मनपा के खरीदी विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि आगामी 10 दिन में दवाई खरीदी के लिए निविदा पूर्व प्रक्रिया की घोषणा की जाएगी। इस प्रक्रिया में शामिल होनेवाले ठेकेदारों से निविदा को लेकर चर्चा की जाएगी। इसके बाद निविदा की घोषणा की जाएगी। 5 हजार दवाई- सर्जिकल उपकरण के लिए करीब 16 टेंडर निकाले जाने है। इस पूरी प्रक्रिया में कम से कम 6 महीने का समय लग सकता है।

क्या कहते है अधिकारी

अतिरिक्त मनपा आयुक्त डॉ. सुधाकर शिंदे ने बताया कि जीरो प्रिस्क्रिप्शन पॉलिसी के तहत 5 हजार दवाई- सर्जिकल सामग्री खरीदी जानी है। यह सारी प्रक्रिया निविदा में फंसी हुई है। दूसरी ओर आचार संहिता भी लागू है। आचार संहिता समाप्त होते ही इस पॉलिसी को जल्द लागू करने में मनपा प्रशासन जुट जाएगा।

इतने आते है मरीज

मुंबई मनपा के माध्यम से 4 मेडिकल कॉलेज, 1 डेंटल कॉलेज, 16 उपनगरीय अस्पताल, 5 विशेष अस्पताल, 30 प्रसूति अस्पताल, 192 डिस्पेंसरी चलाई जा रही हैं। इसके अलावा 202 हिंदू हृदय सम्राट बालासाहेब ठाकरे "आपला दवाखाना" भी कार्यरत है। इन प्रमुख अस्पतालों में 7100 बेड, उपनगरीय अस्पतालों में 4000 बेड, विशेष अस्पतालों में 3000 बेड आदि कुल मिलाकर लगभग 15 हजार बेड हैं। इन अस्पतालों से प्रतिदिन 50,000 से अधिक मरीज ओपीडी सेवाओं से लाभान्वित होते हैं। साथ ही, सालाना औसतन 30 लाख से अधिक मरीज अंतर-रोगी सेवाओं से लाभान्वित होते हैं।

अध्ययन में भी आयी बात सामने

स्वास्थ्य देखभाल पर अपनी जेब से अतिरिक्त खर्च करने के कारण 10 फीसदी लोग गरीबी की रेखा के नीचे आ गए है। यह बात राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न संस्थाओं द्वारा किए गए एक अध्ययन में सामने आ चुकी हैं।

मनपा का खरीदी विभाग करता है लापरवाही

आल फ़ूड एंड ड्रग होल्डर फाउंडेशन के अध्यक्ष अभय पांडे ने बताया कि निविदा प्रक्रिया में कम से कम तीन महीने का समय लगता है लेकिन मनपा का खरीदी विभाग इतना सुस्त और लापरवाह है कि पहले के शेड्यूल में मौजूद 1600 दवाई- सर्जिकल सामग्री में से सिर्फ 50 फीसदी शेड्यूल की दवाई खरीददारी करने का तय किया है। शेष 50 फीसदी की खरीददारी स्वयं अधिकारी कोई न कोई बहाना बताकर टाल दे रहे है। इन दवाइयों को लोकल स्तर पर अधिक दामों में खरीदा जाता है जिसकी एवज में अधिकारियों को लाभ लोकल ठेकेदार पहुंचाते हैं। उन्होंने कहा कि जीरो प्रिस्क्रिप्शन नीति भी इसी की भेंट चढ़ रहा है और पॉलिसी लागू नहीं हो पा रही है।

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