मंडे पाॅजिटिव: मजबूरी को बनाया हथियार अब शोहरत बस्ती के पार, वीसीए सचिव ने प्रयासों को सराहा

  • 1700 आबादी है बस्ती की
  • 390 बच्चे हैं करीब यहां
  • 90% बच्चे शाला बाह्य

Tejinder Singh
Update: 2024-05-06 14:51 GMT

डिजिटल डेस्क, नागपुर, योगेश चिवंडे | मानेवाड़ा रिंग रोड के पास सिद्धेश्वरी नगर में एक गोंड बस्ती है। बस्ती की करीब 1700 जनसंख्या है, लेकिन हालात बेहद खराब हैं। अगर काम न मिले तो खाने के भी लाले पड़ जाए। घर में राशन नहीं होने से कोरोना के समय कुछ परिवार के सदस्यों की जान तक चली गई। घरों में न शौचालय, न बिजली, न सड़क। एक बोरवेल के भरोसे पूरी बस्ती है। अनेक समस्या और अव्यवस्थाओं से जूझ रहे बस्ती के बच्चे स्कूल तक नहीं जा रहे हैं, लेकिन हुनर और आत्मविश्वास इतना है कि अच्छे-अच्छों के छक्के छुड़ा दें।

क्रिकेट खेलने प्रेरित किया : मेहनती परिवार से होने के कारण लड़कियां शारीरिक रूप से काफी मजबूत हैं। इनके हुनर और मजबूत कंधों को देखते हुए सेवा सर्वदा बहुउद्देशीय संस्था के संचालक खुशाल ढाक ने गोंड बस्ती की इन लड़कियों को खेल के लिए प्रेरित िकया। उन्हें तराशा। क्रिकेट में दिलचस्पी दिखाई। सभी लड़कियां अंडर-14। देखते-देखते 26 लड़कियों की टीम बनाई। लेदर की गेंद से प्रैक्टिस शुरू की। छोटे, लेकिन मजबूत कंधों के भरोसे लेदर गेंद से तेज बॉलिंग और ऊंचे शॉट्स मारने लगीं। परखने के लिए इनकी रहाटे नगर टोली के लड़कों से मैच कराई गई। इन लड़कियों ने 5 ओवर में 35 रन बनाए और लड़कों को 5 रन पर समेट लिया। इसी तरह अन्य जगह इनका मैच कराया गया।

ख्याति बढ़ने लगी : धीरे-धीरे इस टीम की ख्याति बढ़ने लगी। विदर्भ क्रिकेट एसोसिएशन के सचिव संजय बडकस भी इस हुनर को देखने पहुंचे। उन्होंने भी इनके हुनर को सराहा और मदद का भरोसा दिया। सेवा सर्वदा बहुउद्देश्यीय संस्था के प्रयासों से आशुतोष गावंडे, दिनकर कडू, संदीप झोटवानी जैसे लोगों ने इन्हें ड्रेस, बैट, पैड्स, गेंद, हेलमेट उपलब्ध कराया। चैतन्य देशपांडे की ओर से इन्हें एक समय का भोजन भी दिया जा रहा है। लड़कियों में खेल को लेकर काफी उत्साह और ऊर्जा है। रोजाना सुबह और शाम को वे मैदान पर पहुंचकर प्रैक्टिस कर रही हैं। कोच नहीं होने से उन्हें योग्य प्रशिक्षण की जरूरत महसूस की जा रही है। अगर कोच और उचित प्रशिक्षण मिलता है, तो वे विदर्भ और महाराष्ट्र की पहली लड़कियों की क्रिकेट टीम बनकर उभर सकती हैं। दावा यह भी किया जा रहा है कि यह महाराष्ट्र की पहली सामुदायिक टीम है।

मनपा स्कूलों में नाम, लेकिन जाने की सुविधा नहीं : 1700 जनसंख्या वाली बस्ती में करीब 390 बच्चे हैं। सभी के मनपा स्कूलों में नाम हैं, लेकिन 90 प्रतिशत बच्चे शाला बाह्य हैं। मनपा शिक्षक स्कूलों में बच्चों की संख्या दिखाने के लिए बस्ती में आते हैं। इनका एडमिशन कराते हैं। इन्हें लाने ले जाने के लिए ऑटो भेजने और एक समय का भोजन देने का आश्वासन देते हैं। शुरू के कुछ दिनों में शिक्षकों ने इन्हें लाने ले जाने के लिए ऑटो की व्यवस्था भी की, लेकिन कुछ महीने बाद ऑटो बंद कर दिया। ऑटो बंद करने से अब बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं। कुछ बच्चे एक साल से ज्यादा समय से स्कूल नहीं गए तो कुछ कई महीने से। स्कूल भी दूरी पर है। बसों की भी सुविधा नहीं है। घर की माली हालात इतनी अच्छी नहीं कि रोज अपने खर्च से ऑटो या बस करें।

आवश्यक संसाधनों की कमी

खुशाल ढाक, संचालक सेवा सर्वदा बहुउद्देशीय संस्था के मुताबिक विदर्भ की यह पहली लड़कियों की टीम बन सकती है, लेकिन इन्हें सही प्रशिक्षण की जरूरत है। अगर कोच और योग्य प्रशिक्षण मिल जाए तो यह और बेहतर प्रदर्शन कर सकती हैं। इन्हें क्रिकेट के लिए आवश्यक संसाधनों की भी जरूरत है। अगर कोई संस्था आगे आकर मदद करती है, तो बच्चों का भविष्य सुधर सकता है।




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