गैंगरेप के अभियुक्त को 20 साल की कैद, 10 हजार रुपए जुर्माना

गैंगरेप के अभियुक्त को 20 साल की कैद, 10 हजार रुपए जुर्माना

Bhaskar Hindi
Update: 2018-01-30 07:45 GMT
गैंगरेप के अभियुक्त को 20 साल की कैद, 10 हजार रुपए जुर्माना

डिजिटल डेस्क सिंगरौली(वैढऩ) । विशेष न्यायधीश उमेश चंद्र मिश्र की अदालत ने गैंगरेप के मुख्य अभियुक्त सुनील मुंडा निवासी जयंत को भादसं की धारा 376(डी) के अधीन 20 वर्ष की अवधि के कठोर कारावास सहित 10 हजार रूपए अर्थदंड की सजा का फैसला सोमवार को सुनाया है। गौरतलब है कि लगभग डेढ़ वर्ष पूर्व जयंत स्थित दुधीचुआ इलाके में अभियुक्त सुनील मुंडा ने एक अन्य किशोर संग मिलकर बालिका से गैंगरेप किया था। विशेष न्यायाधीश पाक्सो एक्ट की अदालत ने आज मामले के उपरोक्त मुख्य अभियुक्त को आपराधिक मामले में भादसं की धारा 450 के अधीन भी 10 वर्ष का कठोर कारावास सहित 1 हजार रूपए अर्थदंड की सजा मुकर्रर की है। इसके अलावा धारा 5(एम)16 पाक्सो एक्ट 2012 के अधीन भी 10 वर्ष का कठोर कारावास सहित 5 हजार रूपए अर्थदंड की सजा सुनायी है। अदालत ने फैसले में कहा है कि अर्थदंड की राशि संदाय होने एवं अपील अवधि पश्चात समस्त राशि बतौर प्रतिकर पीडि़ता को प्रदान की जाय। न्यायालय में अभियोजन की ओर से मामले की पैरवी महेन्द्र सिंह गौतम डीपीओ ने की।
बालिका को रोक जबरन ज्यादती-
अभियोजन के अनुसार विंध्यनगर थाना इलाके के दुधीचुआ अलंकार भवन के पीछे रहने वाले अभियुक्त ने घटना दिनांक 2 अप्रैल 2016 की सायं अपने किसी रिश्तेदार के घर खेलने आई बालिका को वापसी के दौरान जबरन रोक लिया। अभियुक्त सुनील मुंडा और उसके एक साथी ने बालिका पर लैंगिक हमला करते हुए सामूहिक ज्यादती की थी।
घटना के बाद दर्द से कराहती बालिका किसी तरह अपने घर आ गई। उसके माता-पिता मजदूरी के सिलेसिले में अन्यत्र गये थे। मां वापस आने के दौरान भाई भी आ गया था। तब बालिका ने आपबीती बताते हुए आरोपितों के नामजद जानकारी दी। परिजन उसे रात में लेकर जयंत पुलिस चौकी गये। जहां महिला पुलिस ने प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कर ली थी।
ताबड़तोड़ हुई सुनवाई
न्यायालय द्वारा आरोपी सुनील मुंडा को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया था। 4 अप्रैल 2016 से अब तक वह न्यायिक हिरासत में रहा। उधर न्यायालय ने मामले की गंभीरता के मद्देनजर ताबड़तोड़ सुनवाई, पेशी निर्धारण कर गवाह व अन्य के कथन दर्ज किये गये। फलस्वरूप त्वरित न्याययिक धारणा को साकार भी न्यायालय व अभियोजन की संयुक्त कवायदों से हो सका है।

 

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