मंत्रिमंडल ने जूट सामग्री से होने वाली पैकिंग के अनिवार्यता संबंधी नियमों के विस्‍तार को मंजूरी दी ​​​​​​​

मंत्रिमंडल ने जूट सामग्री से होने वाली पैकिंग के अनिवार्यता संबंधी नियमों के विस्‍तार को मंजूरी दी ​​​​​​​

Aditya Upadhyaya
Update: 2020-10-30 08:04 GMT
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डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। वस्‍त्र मंत्रालय मंत्रिमंडल ने जूट सामग्री से होने वाली पैकिंग के अनिवार्यता संबंधी नियमों के विस्‍तार को मंजूरी दी। प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी की अध्‍यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति ने शत-प्रतिशत खाद्यान्‍नों और 20 प्रतिशत चीनी को अनिवार्य रूप से विविध प्रकार के जूट बोरों में पैक किए जाने को मंजूरी दी है। चीनी को विविध प्रकार के जूट बोरों में पैक किए जाने के निर्णय से जूट उद्योग को काफी बल मिलेगा। इसके अलावा, यह भी अनिवार्य किया गया है कि खाद्यान्‍नों की पैकिंग के लिए शुरू में 10 प्रतिशत जूट बोरों की खरीद जीईएम पोर्टल पर रिवर्स ऑक्शन के जरिए होगी। इससे भी धीरे-धीरे इनकी कीमतों में वृद्धि होगी। सरकार ने जूट पैकिंग सामग्री अधिनियम, 1987 के तहत अनिवार्य रूप से पैकिंग किए जाने के इस मानक को विस्‍तारित किया है। अगर जूट पैकिंग सामग्री की आपूर्ति में कोई कमी अथवा व्‍यवधान आता है अथवा किसी तरह की कोई प्रतिकूल स्थिति पैदा होती है तो कपड़ा मंत्रालय अन्‍य संबद्ध मंत्रालयों के साथ मिलकर उपबंधों में छूट दे सकता है और खाद्यान्‍नों की अधिकतम 30 प्रतिशत पैकिंग किए जाने का निर्णय ले सकता है। जूट क्षेत्र पर लगभग 3.7 लाख श्रमिक और कई लाख किसान परिवारों की आजीविका निर्भर है जिसे देखते हुए सरकार इस क्षेत्र के विकास के लिए काफी संगठित प्रयास कर रही है। जिसमें कच्‍चे जूट के उत्‍पादन और मात्रा को बढ़ाना, जूट सेक्‍टर का विविधीकरण करना और जूट उत्‍पादों की सतत मांग को बढ़ावा देना आदि शामिल है। लाभ : सरकार की इस अनुमति से देश के पूर्वी और पूर्वोत्तर खासकर पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा, असम, आंध्र प्रदेश, मेघालय और त्रिपुरा के किसानों तथा श्रमिकों को लाभ मिलेगा। जूट सामग्री (पैकिंग सामग्री में अनिवार्यत: इस्‍तेमाल,1987, जेपीएम अधिनियम) के तहत कुछ विशेष सामग्रियों की पैकिंग के लिए जूट के अनिवार्य इस्‍तेमाल की बात कही गई है और यह इस क्षेत्र में कार्यरत लोगों के कल्‍याण के लिए किया गया है और मौजूदा प्रस्‍ताव में पैकिंग के जो मानक तय किए गए हैं उनसे भी देश में कच्‍चे जूट के घरेलू इस्‍तेमाल और जूट पैकिंग सामग्री को बढ़ावा मिलेगा। इससे देश को आत्‍मनिर्भर भारत की दिशा में ले जाने में मदद मिलेगी। जूट उद्योग मुख्‍यत: सरकारी क्षेत्र पर निर्भर है और प्रतिवर्ष खाद्यान्‍नों की पैकिंग के लिए सरकार 7500 करोड़ रुपये से अधिक कीमत के जूट बोरों की खरीद करती है। यह जूट क्षेत्र की मांग को जारी रखने और इस क्षेत्र में कार्यरत श्रमिकों और किसानों की आजीविका को सहारा देने की दिशा में एक कदम है। जूट क्षेत्र को दी गई अन्‍य प्रकार की सहायता: सरकार ने कच्‍चे जूट की उत्‍पादकता और गुणवत्‍ता में सुधार लाने के लिए एक विशेष कार्यक्रम जूट आईसीएआरई को डिजाइन किया है। इसके तहत सरकार विभिन्‍न प्रकार की कृषि पद्धतियों को उपलब्‍ध कराकर दो लाख जूट किसानों की मदद कर रही है जिसमें बीजों को जमीन में पंक्तियों में बुवाई, व्‍हील-होइंग और नेल-वीडर्स का इस्‍तेमाल करके खरपतवार का प्रबंधन करना और गुणवत्‍ता युक्‍त प्रमाणित बीजों का वितरण करना तथा सूक्ष्‍म जीवों की मदद से कच्‍चे जूट को सड़ाने की प्रक्रिया शामिल है। सरकार के इन मध्‍यवर्ती प्रयासों से कच्‍चे जूट की गुणवत्ता और उत्‍पादन में काफी इजाफा हुआ है और जूट किसानों की आमदनी बढ़कर 10,000 रुपये प्रति हेक्‍टेयर हो गई है। हाल ही में भारत जूट निगम ने वाणिज्यिक आधार पर 10,000 क्विंटल प्रमाणित बीजों के वितरण के लिए राष्ट्रीय बीज निगम के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्‍ताक्षर किए हैं। तकनीकी उन्‍नयन और प्रमाणित बीजों के वितरण से जूट फसलों की गुणवत्ता और उत्‍पादकता में बढ़ोतरी होगी और इससे किसानों की आमदनी में वृद्धि होगी। जूट सेक्‍टर के विविधीकरण को बढ़ावा देने के मद्देनजर राष्‍ट्रीय जूट बोर्ड ने राष्‍ट्रीय डिजाइन संस्‍थान के साथ एक समझौता किया है और इसी के अनुरूप गांधी नगर में एक जूट डिजाइन प्रकोष्‍ठ खोला गया है। इसके अलावा, विभिन्‍न राज्‍य सरकारों खासकर पूर्वोत्तर क्षेत्र में जूट जियो टेक्‍सटाइल्‍स और एग्रो टेक्‍सटाइल्‍स को बढ़ावा दिया गया है। इसमें सड़क परिवहन और जल संसाधन मंत्रालय की भी सहभागिता है। जूट सेक्‍टर में मांग को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने बांग्‍लादेश और नेपाल से जूट वस्‍तुओं के आयात पर एंटी-डंपिंग ड्यूटी लगाई है और यह 5 जनवरी, 2017 से प्रभावी है। जूट क्षेत्र में पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने दिसम्‍बर, 2016 में जूट स्‍मार्ट ई- कार्यक्रम की पहल की है।

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