दैनिक भास्कर का साइबर सुरक्षा एवं सतर्कता अभियान, खतरनाक गेम से बचने की दी सलाह

दैनिक भास्कर का साइबर सुरक्षा एवं सतर्कता अभियान, खतरनाक गेम से बचने की दी सलाह

Anita Peddulwar
Update: 2020-01-11 09:43 GMT
दैनिक भास्कर का साइबर सुरक्षा एवं सतर्कता अभियान, खतरनाक गेम से बचने की दी सलाह

डिजिटल डेस्क,  नागपुर।  ‘पबजी’ गेम बनाने वाला अरेस्ट हुआ, लेकिन वो सोच अरेस्ट नहीं हुई है। हमारे शहर में भी कई बच्चों ने ऑनलाइन गेम्स के चलते सुसाइड जैसे कदम उठाए हैं। यह बात साइबर साइकोलॉजिस्ट प्रो. राकेश क्रिपलानी ने दैनिक भास्कर के ‘सावधान @नागपुर’ साइबर सुरक्षा एवं सतर्कता अभियान अंतर्गत सेंट पॉल स्कूल में आयोजित कार्यक्रम में कही। उन्होंने स्टूडेट्स का साइबर क्राइम के बारे में मार्गदर्शन करते हुए कहा कि इंटरनेट सेफ नहीं है। 

नई किस्म की टेरिरिज्म  
पबजी नई किस्म का टेरिरिज्म है। इसके लिए बच्चे अपने फैमिली मेम्बर्स का मर्डर करने के लिए भी तैयार हो जाते हैं। पबजी साइकोलॉजिकल गेम है, जो किलिंग हिस्ट्री क्रिएट कर रहा है। साइबर लव के बारे में जानकारी देते हुए बच्चों को सावधान किया कि फेसबुक का अपना साइकोलॉजिकल लैब है, जो बच्चों को ज्यादा से ज्यादा एडिक्ट करता है। वो बच्चों के ब्रेन में मौजूद डोपामिन केमिकल को खराब कर रहा है। हमारे माइंड में 90 प्रतिशत सबकॉन्शियस माइंड काम करता है। आज के समय में जो लव हो रहा है, वो फास्ट ट्रैक लव है, जो कि सोशल मीडिया से बढ़ रहा है और रिस्की भी है। स्टूडेन्ट्स जितना हो सके मोबाइल से दूर रहें। इंटरनेट का यूज नहीं करना युवाओं के लिए बेहतर होगा।

ब्रेन को डिस्क्राइब किया
वर्कशॉप में उन्होंने मेल और फीमेल के ब्रेन को डिस्क्राइब किया। उन्होंने बताया कि मेल की तुलना में फीमेल का ब्रेन मल्टी टाॅस्किंग होता है। उनके राइट और लेफ्ट दोनों साथ चलते हैं, जबकि मेल का एक समय में एक ही ब्रेन काम करता है। श्री क्रिपलानी ने आगे बताया कि आजकल के बच्चे ऑनलाइन में ज्यादा विश्वास करते हैं। उन्हें अगर कोई बात सामने बताई जाती है, तो उसे इग्नोर करते हैं, लेकिन वही चीज ऑनलाइन देखने पर वे समझते हैं।

उन्होंने डार्कनेट के बारे में बताते हुए कहा कि आप जिस इंटरनेट की दुनिया में भ्रमण करते हैं, वो सिर्फ 4 फीसदी ही है। बाकी 96 फीसदी इंटरनेट की दुनिया डार्क है। इस इंटरनेट की दुनिया में आपको सुपारी किलर से लेकर, बैन किताबें और फिल्में सब कुछ मिल जाएंगी। इसे ही डार्कनेट कहा जाता है। इसलिए स्टूडेंट्स इन सब चीजों से दूर रहें। किसी भी लिंक आने पर उसको शेयर न करें। इससे बहुत बड़ी मुसीबत में फंस सकते हैं। यह ऐसा मायाजाल है, जिससे बाहर निकलना बहुत ही मुश्किल है।

टीनएज पेंडुलम एज है
श्रीकृपलानी ने स्टूडेन्ट्स को बताया कि सबसे पहले मन का कचरा निकालना जरूरी है। टीनएज में आइडेंटिटी क्राइसेस होते हैं। प्राइवेसी अच्छी लगती है, कैरियर के लिए कंफ्यूजन होता है, इसलिए टीनएज को पेंडुलम एज बोलते हैं। पैरेंट्स डांट लगाते हैं और दोस्त सपोर्ट करते हैं, तो वो अच्छे लगते हैं। हर बच्चा कम उम्र में बड़ी चीजें करना चाहता है। 6 से 12 वर्ष तक की उम्र के बच्चों के लिए मैसेंजर लांच किया गया। बच्चे बार-बार सोशल मीडिया पर जो पोस्ट डालते हैं, उन पर गूगल की पूरी नजर होती है। इसलिए कोई भी वीडियो या पोस्ट डालते समय इस बात का ध्यान रखें कि आपकी यह पोस्ट कोई तीसरा भी पढ़ रहा है। वे ऐसे ही बच्चों को अपना शिकार बनाते हैं। 
 

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