नाशिक विभागीय आयुक्त के आदेश को गैरकानूनी करार देते हुए कलेक्टर के आदेश को बहाल किया

सुप्रीम कोर्ट नाशिक विभागीय आयुक्त के आदेश को गैरकानूनी करार देते हुए कलेक्टर के आदेश को बहाल किया

Tejinder Singh
Update: 2022-01-06 16:55 GMT
नाशिक विभागीय आयुक्त के आदेश को गैरकानूनी करार देते हुए कलेक्टर के आदेश को बहाल किया

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। महाराष्ट्र के धुले जिले के ग्राम कुसुंबा की सरपंच शोभाबाई शिंदे को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिल गई है। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया है कि महाराष्ट्र ग्राम पंचायत अधिनियम,1959 की धाराओं के तहत सरपंच या पंचायत सदस्य को अयोग्य घोषित करने से इंकार करने वाले जिलाधिकारी के आदेश के खिलाफ दायर अपील पर विचार करने का विभागीय आयुक्त के पास कोई अधिकार क्षेत्र नहीं था। जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस रविकुमार की पीठ ने मामले की सुनवाई में बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद खंडपीठ के उस आदेश को भी खारिज कर दिया, जिसमें कलेक्टर के ग्राम पंचायत अधिनियम, 1959 की धारा 14 बी (1) के तहत सरपंच और पंचायत सदस्य को अयोग्य घोषित न करने के दिए आदेश को विभागीय आयुक्त द्वारा धारा 14 (बी) के तहत पलटे जाने को सही ठहराया था। शीर्ष अदालत ने विभागीय आयुक्त के आदेश को गैर-कानूनी करार दिया और अपीलकर्ताओं की अयोग्यता की मांग करने वाले आवेदनों को खारिज करने वाले कलेक्टर द्वारा पारित आदेशों को बहाल कर दिया।

यह है मामला

मामला दरअसल, यह है कि अपीलकर्ता सिंतबर 2018 में शिंदे और एक अन्य को धुले तहसील के ग्राम कुसुंबा का क्रमश: सरपंच और पंचायत के सदस्य के रूप में चुना गया। एक संग्राम गोविंदराव पाटिल ने निर्धारित समय के भीतर चुनाव खर्च जमा नहीं करने के लिए महाराष्ट्र ग्राम पंचायत अधिनियम, 1959 की धारा 14 बी (1) के तहत अपीलकर्ताओं को अयोग्य घोषित करने के लिए कलेक्टर के पास दो विवाद आवेदन दायर किए थे, जिन्हें उन्होंने खारिज कर दिया था। पाटील ने इसके संभागीय आयुक्त (नाशिक क्षेत्र) के पास अपील की जिसे उन्होंने स्वीकार करते हुए अपीलकर्ताओं को अयोग्य घोषित कर दिया। इसके बाद विभागीय आयुक्त के आदेश को अपीलकर्ताओं ने बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद खंडपीठ के समक्ष रिट याचिका दायर की। उच्च न्यायालय ने भी संभागीय आयुक्त द्वारा पारित अयोग्यता के आदेश को सही ठहराया, जिसे उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
इन अपीलों में मुख्य मुद्दा यह था कि क्या महाराष्ट्र ग्राम पंचायत अधिनियम, 19591 की धारा 14बी (1) के तहत कलेक्टर द्वारा पारित एक आदेश, जिसमें एक सरपंच/पंचायत के सदस्य को कथित रूप से समय के भीतर चुनाव खर्च जमा करने में विफल रहने के लिए अयोग्य घोषित करने से इंकार करने के खिलाफ संभागीय आयुक्त के समक्ष अपील दायर की जा सकती है। जब चुनाव आयोग ने भी ऐसी विफलता के लिए कोई उचित कारण या तर्क नहीं दिया हो।

क्या है 14बी(1) और 14 बी (2) धाराएं

ग्राम पंचायत अधिनियम में 2010 में संशोधन कर उसमें धारा 14बी(1) को जोड़ी गई थी, इसके तहत राज्य चुनाव आयोग को यह अधिकार है कि वह पंचायत सदस्य को चुनाव लडने के लिए पांच साल के लिए अयोग्य घोषित कर सकते है,यदि वे निर्धारित समय के भीतर चुनाव खर्च का लेखा-जोखा प्रस्तुत करने में विफल रहते हैं। धारा 14बी(2) को भी उसी संशोधन द्वारा सम्मिलित करते हुए चुनाव आयोग को धारा 14बी(1) द्वारा लगाई गई अयोग्यता को हटाने या अवधि को कम करने में सक्षम बनाया। राज्य चुनाव आयोग ने संविधान के अनुच्छेद 243-के और अधिनियम की धारा 10ए (2) के तहत जिलाधिकारी को धारा 14बी(1) के तहत और धारा 14बी(2) के तहत संभागीय आयुक्त को निर्णय लेने की शक्तियां बहाल की। कोर्ट ने पाया कि अधिनियम में अधिनियम में यह इंगित करने के लिए कोई प्रावधान नहीं है कि धारा 14बी (1) के तहत सरपंच/सदस्य को अयोग्य घोषित करने से इनकार करने वाले कलेक्टर के आदेश के खिलाफ अपील मौजूद है। धारा 14बी(2) के तहत मंडल अधिकारी को केवल अयोग्यता की अवधि को हटाने या कम करने के लिए अधिकृत किया गया है, इसे ज्यादा कुछ नहीं। कोर्ट ने कहा कि धारा 14बी(2) केवल उन मामलों में लागू होगी, जहां कलेक्टर किसी सदस्य को अयोग्य घोषित करता है न कि अयोग्यता के लिए आवेदन को खारिज करता है।

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