ओजस्वी वक्ता और संगीतज्ञ थे 'राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज'

ओजस्वी वक्ता और संगीतज्ञ थे 'राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज'

Bhaskar Hindi
Update: 2017-10-12 13:56 GMT
ओजस्वी वक्ता और संगीतज्ञ थे 'राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज'

डिजिटल डेस्क, तिवसा(अमरावती)। अमरावती जिले के यावली ग्राम में जन्मे राष्ट्रसंत तुकड़ोजी को कौन नहीं जानता। उन्हें स्वयं प्रकाशित जगमगाता तारा और गतिशील नेता कहा जा सकता है। वे कई कलाओं में निपुण माने जाते थे। अध्यात्मिक क्षेत्र में वे एक महान योगी के रूप में जाने जाते थे, वहीं सांस्कृतिक क्षेत्र में भी उनकी प्रसिद्धी एक ओजस्वी वक्ता और संगीतज्ञ के रूप में थी। उनका व्यक्तित्व अतुलनीय और अद्वितीय था।

उनकी शिक्षाएं आनेवाली पीढ़ी के नित्य जीवन में बेहद उपयोगी हैं। राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज के भजनों में इतनी शक्ति थी कि पत्थरदिल इंसान का भी दिल पिघल जाता था। उनके भजनों को सुनकर महात्मा गांधी ने अपनी साधना के दौरान मौन व्रत छोड़ दिया था, वहीं दूसरी ओर राष्ट्रपति भवन में गए पंडित नेहरू भी राष्ट्रसंत के भजनों से प्रभावित हुए बगैर नहीं रहे थे। इसीलिए राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज के भजन मैं जाते-जाते रेडियो पर सुनूंगा कहते हुए पंडित नेहरू वाहन से निकले और राष्ट्रसंत के भजनों का कार्यक्रम आरंभ हो गया। राष्ट्रीय भावना निर्माण करनेवाले नेताओं के आचरण, संगठन और राष्ट्रभक्ति के बीज बोनेवाले भजनों का कार्यक्रम आरंभ हुआ। इस दौरान भजन के माध्यम से राष्ट्रसंत के गाये जानेवाले शब्द पंडितजी के कानों पर पडऩे लगे। "प्यारा हिंदुस्तान है" यह भजन सुनकर वे काफी प्रभावित हुए और उन्होंने अपना वाहन सीधे राष्ट्रपति भवन की दिशा में मोड़ दिया। उस दिन विदेशी राष्ट्र प्रमुखों के स्वागत के लिए उन्होंने तत्कालीन राज्यमंत्री महावीर त्यागी को भेज दिया और पंडित नेहरू राष्ट्रपति भवन में आयोजित भजन कार्यक्रम में शामिल हो गए। भजनों से प्रभावित पंडितजी ने पूर्वनियोजित कार्यक्रम से अधिक राष्ट्रसंत को तीन भजन और सुनाने के लिए कहा।

गुरुकुंज आश्रम में महानिर्वाण
11 अक्टूबर 1968 को सायं 4.58 बजे गुरुकुंज आश्रम में राष्ट्रसंत ने अपने नश्वर शरीर का त्याग किया और वे ब्रह्मलीन हो गए। उनकी महासमाधि गुरुकुंज आश्रम के ठीक सामने बनायी गई है, जो लोगों को कर्तव्य और नि:स्वार्थ भक्तिके मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है।

सामूहिक प्रार्थना पर दिया बल
राष्ट्रसंत तुकड़ोजी का जन्म 30 अप्रैल 1909 को महाराष्ट्र के अमरावती जिले यावली नामक  गांव के गरीब परिवार में हुआ था। इन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा यावली और वरखेड़ में पूरी की। तुकड़ोजी महाराज एक महान व स्वयंसिद्ध संत थे। उनका प्रारंभिक जीवन अध्यात्मिक और योगाभ्यास जैसे साधना मार्गों से परिपूर्ण था। तुकड़ोजी महाराज ने सामूहिक प्रार्थना पर बल दिया जिसमें जाति-धर्म से परे सभी लोग भाग ले सकें। उनका दावा था कि उनकी सामूहिक प्रार्थना पद्धति समाज को आपस में भाईचारे और प्रेम की श्रृंखला में बांध सकने में सक्षम है। उनकी खंजिरी, एक पारंपरिक वाद्य यंत्र, बहुत ही अद्वितीय थी और उनके द्वारा उसे बजाया जाना अपने आप में अनूठा था।

गुरुकुंज आश्रम की स्थापना

तुकड़ोजी महाराज ने आजादी की लड़ाई में भी अपना योगदान दिया। कारागार से छूटने के बाद तुकड़ोजी ने सामाजिक सुधार आंदोलन चलाकर अंधविश्वास, अस्पृश्यता, मिथ्या धर्म, गोवध एवं अन्य सामाजिक बुराइयों के खिलाफ संघर्ष किया। उन्होंने नागपुर से 120 कि.मी. दूर मोझरी नामक गांव में गुरुकुंज आश्रम की स्थापना की। आश्रम के प्रवेश द्वार पर ही उनके सिद्धांत इस प्रकार अंकित हैं "इस मन्दिरका द्वार सबके लिए खुला है", हर धर्म और पंथके व्यक्ति का यहां स्वागत है, देश और विदेश के हर व्यक्ति का यहां स्वागत है" स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद तुकड़ोजी ने अपना पूरा ध्यान ग्रामीण पुर्ननिर्माण कार्यों की ओर लगाया और रचनात्मक काम करने वालों के लिए कई प्रकार के शिविरों का भी आयोजन किया।

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