बगैर संसाधनों के जंगली जानवरों की सुरक्षा कर रहे फॉरेस्ट गार्ड, दो की मौत

बगैर संसाधनों के जंगली जानवरों की सुरक्षा कर रहे फॉरेस्ट गार्ड, दो की मौत

Bhaskar Hindi
Update: 2019-10-30 08:16 GMT
बगैर संसाधनों के जंगली जानवरों की सुरक्षा कर रहे फॉरेस्ट गार्ड, दो की मौत


डिजिटल डेस्क सिंगरौली(वैढऩ)। छत्तीसगढ़ से जिले की सीमा में घुसकर हाथियों के झुंड द्वारा तांडव मचाने के बाद वन विभाग के पास सुरक्षा बजट की कमी होने की जानकारी सामने आई है। बताया जाता है कि बजट की दरकार के चलते जंगली जानवरों को नियंत्रित करने के लिये वन विभाग नाकाम है। इसके चलते बीट गार्ड समेत एकपई निवासी रामकृपाल की जान जाने की कड़वी सच्चाई सामने आई है। जानकारों का कहना है कि बजट की कमी के चलते वन विभाग द्वारा जिले के जंगलों की सीमा में वॉच टावर नहीं लगाये गये हैं। इसके चलते जंगलों की सीमा में प्रवेश करने वाले जानवरों की निगरानी नहीं हो पा रही है। विभागीय जानकारों का दावा है कि जिले की सीमा में निगरानी नहीं होने से जिले के जंगलों में माफियाओं की भी घुसपैठ बढ़ती जा रही है। हालांकि वन विभाग के अफसरों का कहना है कि संसाधन उपलब्ध नहीं होने के बाद भी सीमा में अमले की तैनाती की गई है।
बीट गार्डों को टॉर्च तक नसीब नहीं-
जिले के जंगलों में निगरानी करने वाला अमला सुरक्षा उपकरण और संसाधनों की कमी से जूझ रहा है। बताया जाता है कि बीट गार्डों को विभाग से टॉर्च तक नसीब नहीं हो पाई है। इसके साथ जिले के 6 रेंज में बेकाबू जंगली जानवरों को काबू करने वाले उपकरण भी मौजूद नही हैं। संसाधनों की कमी और रेस्क्यू ऑपरेशन में देरी के चलते लोगों को क्षति उठानी पड़ रही है। इतना ही नहीं विषम परिस्थितियों से निपटने के लिये वन अमले के पास डंडे के अलावा कोई सहारा नहीं है। इसके चलते वन अमला वन्य प्राणियों के रिहायशी इलाकों में पहुंचने की सूचना के बाद भी खुद को असहाय महसूस कर रहे हैं।
बंदूक तो दूर भरमार तक नहीं-
वन विभाग के अफसरों से लेकर फील्ड अमले के पास शस्त्रों का अभाव है। बताया जाता है कि वन विभाग के पास आधुनिक शस्त्र तो दूर की बात भरमार तक नहीं है। इसके चलते वन अमला जंगल में खुद को असुरक्षित महसूस कर रहा है। जानकारों का कहना है कि शस्त्र की कमी के चलते वन अमला जंगली जानवरों को डराने एवं माफियाओं से टकराने का साहस नहीं जुटा पा रहा है। इसके चलते जंगलों में माफियाओं और तस्करों चहलकदमी बढ़ती जा रही है। अब डंडे के सहारे तो जंगली जानवरों से लड़ा नहीं जा सकता है।
रेस्क्यू ऑपरेशन के उपकरणों का भी टोटा-
जंगली जानवरों के रेस्क्यू ऑपरेशन के लिये वन विभाग के पास उपकरण मौजूद नही हैं। वन विभाग की जानकारी के अनुसार जानवरों को इंजेक्ट करने के लिये टीम भी प्रशिक्षित नहीं है। इसके चलते जंगली जानवरों के रिहायशी क्षेत्रों में घुसकर कई दिनों तक आंतक मचाने के बाद वन अमला इन्हें नियंत्रित करने में नाकाम रहता है। हालात यह है कि खतरनाक जंगली जानवरों को पकडऩे के लिये पिंजरे तक की व्यवस्था नहीं है। इसके चलते जंगली जानवरों को पकडऩे के लिये वन विभाग द्वारा संजय गांधी नेशनल पार्क की टीम को यहां बुलाना पड़ रहा है।
चूक से नहीं लिया सबक-
हाथियों के झुंड द्वारा जिले के कई गांवों में आंतक मचाने से हुई दो मौतों से वन विभाग की बड़ी चूक सामने आने के बाद भी अफसरों ने घटना से सबक नहीं लिया है। जबकि डीएफओ ने घटना से सबक लेते हुये वन अमले को प्रशिक्षित करने का दावा किया था। इसके बाद भी अब तक वन अमले को सुरक्षा के लिये प्रशिक्षित नहीं किया गया है। जबकि छग के हाथियों का मूवमेंट जिले की सीमा के आसपास ही बना हुआ है।
इनका कहना है-
बजट नहीं मिलने से वन अमले के पास पर्याप्त संसाधन उपलब्ध नही हैं। इसके बाद भी जंगल की सीमा पर सतत निगरानी कराई जा रही है। शीघ्र ही वन अमले को प्रशिक्षण दिया जायेगा।
विजय सिंह, डीएफओ

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