गणेश चतुर्थी विशेष: करण्ड मुकुट धारी है गणेश की हर प्राचीन मूर्ति

गणेश चतुर्थी विशेष: करण्ड मुकुट धारी है गणेश की हर प्राचीन मूर्ति

Bhaskar Hindi
Update: 2017-08-24 17:54 GMT
गणेश चतुर्थी विशेष: करण्ड मुकुट धारी है गणेश की हर प्राचीन मूर्ति

डिजिटल डेस्क, भोपाल। देशभर में पुरातत्व उत्खनन के दौरान भले ही हजारों अलग-अलग मूर्तियां मिली हो लेकिन गणेशजी के भक्तों को यह रहस्य शायद ही पता हो कि सभी प्राचीन मूर्तियों में गणेशजी के मुकुट का स्वरूप एक ही है, यह रहस्योद्घाटन गणेश चतुर्थी की पूर्व संध्या पर राज्य पुरातत्व संग्रहालय के प्रबंधन ने किया है।

दरअसल पुरातत्व विभाग के अनुसार प्राचीन शिल्प कलाओं के मुताबिक सभी देवी देवताओं की प्राचीन मूर्तियों में मुकुटों के स्वरूप अलग अलग रहे हैं लेकिन एक हजार वर्ष पहले ही पूर्व मध्यकालीन जितनी भी मूर्तियां राज्य के विभिन्न हिस्सों में मिली, उन सभी मूर्तियों में गणेशजी ने एक ही प्रकार मुकुट पहना है। राज्य संग्रहालय में विभिन्न अंचल की जितनी भी मूर्तियां मौजूद हैं सभी में मुकुट का स्वरूप करण्ड अर्थात रत्नजड़ित मुकुट ही है। इनमें खासकर 9वी सदी के पंचमुखी गणेश, जबलपुर की कलचुरीकालीन प्रतिमा और हिंगलाजगढ़ मंदसौर से प्राप्त 12वी सदी की मूर्ति समेत 11वी सदी के अष्टमुखी गणेश सहित धुलेला से प्राप्त स्थानक गणेश को प्राचीन मूर्तिकारों द्वारा रत्नजड़ित मुकुट ही पहनाया था। प्राचीन भारत की शिल्प कला पर आधारित शिल्प संहिता और इतिहासकारों के मुताबिक इसकी वजह यह है कि गणेशजी को गणों का अधिपति माना जाता है और करण्ड मुकुट राजत्व और राजकीय प्रतीक है। मूर्तियों को लेकर रोचक तथ्य यह भी है कि गणेशजी की मूर्तियों को छोड़कर अब तक खुदाई के दौरान मिली शिव की मूर्तियां जटामुकुट धारी है वहीं भगवान विष्ण की मूर्तियां किरीट या शिखर मुकुटधारी पाई गई है, इसके अलावा अन्य देवी देवताओं की मूर्तियों में मुकुटों का स्वरूप कुंतल, निरखाण, आमलक सहित अन्य प्रकार के हैं।

21 रूपों में हैं मूतियां

देशभर में अब तक जितनी भी मूर्तियां मिली है उनमें गणेशजी के 21 रूप मिलते हैं जिनमें हेरंभ, क्षिप्र, बाल, गजानन, वक्रतुंड, उच्छिष्ट, उनमत नृत्त, राशि गणेश, नागेश्वर, बीजगणेश, शक्तिगणेश प्रमुख हैं, जिनकी अलग अलग रूपों में पूजा होती रही है। आदिगणेश और शिवपुत्र के रूप में गणेशजी की सभी मूर्तियों में गणेशजी की मूर्तियां ललित आसन या सुखासन में बैठे ही प्राप्त हुई हैं। गणपति की प्रतिमाओं का निर्माण ई.पू द्वितीय सदी से होने लगा था।

इनका कहना है

प्राचीन मूर्तिकारों ने आदिकाल से ही गणेश प्रतिमाओं के निर्माण में उन्हें रत्नजड़ित मुकुट में दर्शाया है इसका प्रमाण भारत की शिल्प संहिता में भी है, राज्य संग्रहालय में गणेशजी की जितनी भी प्राचीन मूर्तियां है सभी में ऐसा है जबकि शेष देवी देवताओं की मूर्तियों को अलग अलग मुकुट में उत्कीर्ण किया गया है।

बीके लोखंडे, प्रतिमा विशेषज्ञ, राज्य संग्रहालय भोपाल

प्रदेश में 1000 साल पुरानी अधिकांश मूर्तियों में गणेशजी का मुकुट करण्ड शैली का अर्थात रत्नजड़ित है जो गणेशजी के गणों के राजा कहलाने के अनुसार है। विभिन्न पुराणों में भी इसकी जिक्र है।

डॉ आर के अहिरवार, विभागाध्यक्ष, प्राचीन इतिहास विभाग, उज्जैन विश्वविद्यालय

Similar News