इंडियन चेस्ट सोसाइटी ने सीएसआईआर-सीएमईआरआईद्वारा विकसित ऑक्सीजन संवर्धन तकनीक को 'मेड इन इंडिया, मेड फॉर इंडिया' बताया!

इंडियन चेस्ट सोसाइटी ने सीएसआईआर-सीएमईआरआईद्वारा विकसित ऑक्सीजन संवर्धन तकनीक को 'मेड इन इंडिया, मेड फॉर इंडिया' बताया!

Aditya Upadhyaya
Update: 2021-06-28 07:50 GMT
इंडियन चेस्ट सोसाइटी ने सीएसआईआर-सीएमईआरआईद्वारा विकसित ऑक्सीजन संवर्धन तकनीक को 'मेड इन इंडिया, मेड फॉर इंडिया' बताया!

डिजिटल डेस्क | विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय इंडियन चेस्ट सोसाइटी ने सीएसआईआर-सीएमईआरआईद्वारा विकसित ऑक्सीजन संवर्धन तकनीक को 'मेड इन इंडिया, मेड फॉर इंडिया' बताया| सीएसआईआर-सीएमईआरआई के सहयोग से इंडियन चेस्ट सोसाइटी ने 27 जून 2021 को 'द एलीमेंट ऑफ होप इन द कोविड एरा: ऑक्सीजन' विषय पर एक वेबिनार का आयोजन किया। आभासी रूप से आयोजित इस कार्यक्रम मेंसीएसआईआर-सीएमईआरआईके निदेशक प्रोफेसर हरीश हिरानी मुख्य वक्ता थे। इस वेबिनार में डॉ. दीपक तलवार, डॉ. नीरज गुप्ता, डॉ. शुभाकर कंडी और डॉ. ध्रुबज्योति रॉय सहित कई विशेषज्ञ पैनलिस्टों ने भाग लिया। ये सभी विशेषज्ञ प्रख्यात पल्मोनोलॉजिस्ट और इंडियन चेस्ट सोसाइटी के वरिष्ठ सदस्य हैं। इंडियन चेस्ट सोसाइटी की ओर से डॉ. डी. बेहरा ने इस आभासी विचार – गोष्ठी का संचालन किया। मुख्य वक्ता के तौर पर अपने संबोधन में, सीएसआईआर-सीएमईआरआई के निदेशक प्रोफेसर हरीश हिरानी ने इस तथ्य को साझा किया कि मानव शरीर सांस छोड़ने की प्रक्रिया में ऑक्सीजन के एक बड़े हिस्से को अस्वीकार कर देता है।

हाई फ्लो ऑक्सीजन थेरेपी के दौरान छोड़े गए ऑक्सीजन का उपयोग किया जा सकता है, जो कि बदले में ऑक्सीजन संबंधी भार को काफी हद तक कम कर देगा। सीएसआईआर-सीएमईआरआई द्वारा विकसित ऑक्सीजन संवर्धन इकाई (ओईयू) कार्यात्मकता को शामिल करते हुए ऑक्सीजन कंसन्ट्रेटर के स्तर से आगे जाती है। चूंकि सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम भारतीय अर्थव्यवस्था के स्तंभ हैं, इसलिए सीएसआईआर-सीएमईआरआई ने उन्हें अपने साथ लाने के उद्देश्य से आभासी जागरूकता अभियानों की एक श्रृंखला का आयोजन किया है। इस पहल के एक हिस्से के रूप में,इस तकनीक को पहले ही देशभर के कई सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों को सौंप दिया गया है, जो बदले में इस तकनीकके प्रसार में मदद करेंगे। लाइसेंसधारकों ने इस तकनीक के सौंदर्यशास्त्र (एस्थेटिक्स) और श्रमदक्षता शास्त्र (एर्गोनॉमिक्स) को भी बहुत नवीन तरीके से उन्नत किया है। सीएसआईआर-सीएमईआरआई एक उन्नत ऑक्सीजन मास्क तकनीक पर काम कर रहा है जो वायरल लोड के संचरण से सुरक्षा प्रदान करेगी।

इसमें अलग से हवा की आपूर्ति एवं उसके बाहर निकलने के लिए नली (सप्लाई और एक्सहेल्ड एयर पैसेज) लगी है। हवा के बाहर निकलने की नली (एक्सहेल्ड एयर पैसेज/चैनल) कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) स्क्रबर और बीवी फिल्टर से लैस है। ये नवीन अनुप्रयोग छोड़े गए हवा (एक्सहेल्ड एयर) में से ऑक्सीजन के पुनर्चक्रण की संभावना की दिशा में एक कदम हैं। इस किस्म की तकनीक आइसोलेशन वार्डों/ क्वारंटीन वाले क्षेत्रों के लिए भी आदर्श हैं, जहां हवा के दोबारा परिसंचरण (एयर रीसर्क्युलेशन) का एक वातावरण होता है। ग्रामीण क्षेत्रों में अस्पताल के ऑक्सीजन युक्त बिस्तरों के लिए एक उन्नत ऑक्सीजन संवर्धन इकाई (ओईयू) पर भी काम किया जा रहा है, जिसमें स्वतंत्र फ्लो रेट और फ्रैक्शन ऑफ इंस्पायर्ड ऑक्सीजन (FiO2)कंट्रोल लगे होंगे। सीएसआईआर-सीएमईआरआई 50 ​​एलपीएम और 100 एलपीएम की क्षमता वाले अस्पताल मॉडल ऑक्सीजन संवर्धन तकनीक के विकास की दिशा में भी काम कर रहा है।

मौजूदा अस्पतालों के लिएइन-बिल्ट इंटेलिजेंट कंट्रोलर सिस्टम के माध्यम से एक अन्य हाइब्रिड सिस्टम कॉन्फिगरेशन अस्पतालों के ऑक्सीजन सिलेंडरों और ऑक्सीजन लाइनों के साथ काम करने में सक्षम होगा ताकि संवर्धित ऑक्सीजन को सिलेंडर में भरे गए ऑक्सीजन का पूरक बनाया जा सके। इस किस्म की प्रगति 5-20 रोगियों के लिए इस तकनीक के विकेंद्रीकृत उपयोग की सुविधा प्रदान करेगी। बाजार में उपलब्ध केन्द्रीकृत ऑक्सीजन उत्पादन तकनीकोंकी तुलना मेंसीएसआईआर-सीएमईआरआई द्वारा विकसितऑक्सीजन तकनीक की लागत 50 प्रतिशत से भी कम है। विशेषज्ञ पल्मोनोलॉजिस्ट और चेस्ट सोसाइटी के शासी निकाय के सदस्य डॉ. दीपक तलवारने ऑक्सीजन थेरेपी के विभिन्न संकेतों के बारे में अपनी बात रखी और कहा कि प्रोफेसर हिरानी का विचार 'मेक इन इंडिया, मेक फॉर इंडिया' की दृष्टि से बहुत शानदार है।

उन्होंने निमोनिया से संबंधित हाइपोक्सिया और श्वसन से जुड़ी मौजूदा और लंबे समय से जारी रहने वाली समस्याओं के बारे में भी चर्चा की। उन्होंने यह भी बताया कि विभिन्न अध्ययनों से पता चला है कि 85 प्रतिशत मामलों में रोगियों को ऑक्सीजन की जरूरत नहीं होती है और सिर्फ मध्यम से लेकर गंभीर मामलों में 90 के संतृप्ति स्तर को बनाए रखने के लिए ऑक्सीजन थेरेपी की जरूरत होती है। उन्होंने यह भी बताया कि उपयुक्त संतृप्ति स्तर 92 – 96 प्रतिशत है और 96 प्रतिशत से ऊपर का स्तर भी हानिकारक साबित हो सकता है।

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