न मृतका की शिनाख्त और ना ही कार्रवाई, घटना की भयावहता के बाद भी पुलिस पुराने ढर्रे 

न मृतका की शिनाख्त और ना ही कार्रवाई, घटना की भयावहता के बाद भी पुलिस पुराने ढर्रे 

Bhaskar Hindi
Update: 2018-07-25 08:45 GMT
न मृतका की शिनाख्त और ना ही कार्रवाई, घटना की भयावहता के बाद भी पुलिस पुराने ढर्रे 

डिजिटल डेस्क,  सिंगरौली (बैढ़न)।  गुरूवार 19 जुलाई की रात मॉब लिंचिंग का शिकार हुई अज्ञात अर्धविक्षिप्त महिला को लेकर पुलिस अभी भी पुरानी लकीर पर चल रही है। मध्यप्रदेश में अपनी तरह की पहली इस घटना पर न तो सिंगरौली के अधिकारियों और नेताओं ने ना ही राजधानी ने कोई विशेष तव्वजो दी है। एक तरफ केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह के नेतृत्व में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों पर मॉब लिंचिंग के प्रकरणों में राज्यों की भूमिका तय की जा रही है तो दूसरी ओर सिंगरौली प्रकरण में सिंगरौली, रीवा और भोपाल के कानों में जू तक नहीं रेंग रही हैं।

उन्मादी लोगों का समूह एक महिला को तीन गांव तक दौड़ा-दौड़ा कर इतना पीटता है कि उसके प्राण पखेरू उड़ जाते हैं, लेकिन पुलिस को कानों कान खबर तक नहीं होती है। भीड़ शव को जंगल में फेंक आती है, पुलिस बेखबर रहती है। रात 9 बजे की घटना का 36 घंटे तक पुलिस को पता नहीं चलता है। अज्ञात महिला के शव का पीएम कराने के बाद जो रिपोर्ट आती है तब पुलिस की अंगड़ाई टूटती है। देशभक्ति जनसेवा के ध्येय वाक्य पर चलने वाली खाकी को भक्ति और सेवा तो दूर यहां विभत्स हादसे की खबर न लगना आखिर किसे कठघरे में खड़ा करता है।

जिले का मुखिया होने के कारण पुलिस कप्तान अपनी जिम्मेदारी से तो नहीं बच सकते और ना ही वे ये दलील दे सकते हैं कि उन्हें कार्यभार सम्हाले समय ही कितना हुआ है? लेकिन, सबसे ज्यादा जिम्मेदारी बनती है क्षेत्रीय थाना प्रभारी और अनुविभागीय अधिकारी की। मगर, इन पर गाज गिरना तो छोडि़ए साहब, बीट आरक्षक तक से भी पूछाताछी की जानकारी सार्वजनिक हो सकी है। 

थानों का बड़ा एरिया बना सिरदर्द
ग्राम बड़गड़ में जहां अज्ञात महिला को पीट-पीटकर मौत के घाट उतारा गया, वहां से मोरवा थाने की दूरी 40 किलोमीटर है। हैरान करने वाली बात यह है कि इतनी दूरी के बाद भी यहां मोरवा थाना क्षेत्र की कोई पुलिस चौकी नहीं स्थित है और न ही इस जरूरत को समझा गया। ऐसे हालात में यहां पुलिस द्वारा कितनी पेट्रोलिंग की जाती होगी, यह आसानी से समझा जा सकता है। बड़ी बात यह भी है कि ये हालात सिर्फ मोरवा थाना क्षेत्र के ही नहीं बल्कि जिले के बाकी थाना क्षेत्रों में भी बने हुए हैं। दूर-दूर तक के फैले क्षेत्र के कारण थाने की पुलिस न तो दूर-दराज के एरिया तक पेट्रोलिंग करने पहुंच पाती हैं और ना कभी जनता दरबार का आयोजन होता है। 

पूरा घटनाक्रम
19 जुलाई- रात 9 बजे अज्ञात महिला की हत्या।
20 जुलाई- दोपहर 12 बजे पुलिस को जंगल में शव पड़े होने की मिली सूचना। एसपी ने किया निरीक्षण।
21 जुलाई- हत्या की वजह पता चलने के बाद दोपहर में दर्ज की गई एफआईआर।
22 जुलाई- हत्या के 12 आरोपियों की दोपहर में गिरफ्तारी।
23 जुलाई- हत्या के 2 फरार आरोपी भी गिरफ्तार।
24 जुलाई- मृत अज्ञात महिला की शिनाख्त करने पुलिस कर्मी कानपुर व सोनभद्र भेजे गए। 

क्या कर रही है पुलिस
- शव का सेम्पल कलेक्ट किया जा रहा ताकि, उसके किसी परिचित के मिलने पर डीएनए टेस्ट कराकर मैच किया जा सके। 
- एसपी ने सभी थाना व चौकी प्रभारियों को निर्देश दिया है कि गांव-गांव घूमकर सभी को बच्चा चोर की अफवाहों से जागरूक किया जाए। 
- पुलिस कर्मी अपने बीट क्षेत्र में फोन नंबर और डायल 100 नंबर ग्रामीणों को दे। साथ ही बताएं कि कोई संदिग्ध दिखाई देने पर उसकी सूचना तत्काल इन फोन नंबर पर दी जाए, खुद से मारपीट आदि नहीं करें।

पक्ष-विपक्ष दोनों खामोश
हैरान करने वाली बात यह भी है कि क्षेत्र के हितों को लेकर सक्रिय रहने वाले पक्ष और विपक्ष के नेता अभी तक इस सनसनीखेज वारदात को लेकर चुप्पी साधे हुए हैं। भोपाल में टिकट के लिए दौड़ लगाने वाले सत्तापक्ष के नेता और यहां सड़कों पर धान बो कर शिवराज सरकार को कठघरे में खड़े करने वाले विपक्षी नेता किसी ने भी इस मुद्दे पर अपनी भावनाओं से जनसामान्य को अवगत कराने का प्रयास नहीं किया। उन्मादियों के तेवरों को देखकर घरों में बैठे सिहर रहे लोगों को ढांढस बंधाने जैसा भी बयान नहीं दिया गया। 

यह अविश्वास का नतीजा तो नहीं
मोरवा थाना क्षेत्र में बच्चा चोर की अफवाह में अज्ञात महिला की हुई मौत के पहले, इसी तरह की अफवाह का शिकार फारेस्ट विभाग की महिला रेंजर हुई थी। पुलिस इस मामले की अभी तक गुत्थी नहीं सुलझा पायी है। इन दोनों ही घटनाओं में भीड़ का आक्रोश खुलकर सामने आया था, जो कि शायद क्षेत्र में पुलिस की अविश्वसनीयता का ही नतीजा है। कहा जा रहा है कि जब तक थानों में ऑफीसर टेबल से चिपके रहेंगे और क्षेत्र में निकलकर लोगों के बीच नहीं पहुंचेगें तो इससे पुलिस के प्रति लोगों की विश्वसनीयता बनना मुश्किल है। शायद यही कारण है ऐसे मामलों में पुलिस के प्रति अविश्वास के कारण ही लोग डायल-100 जैसी व्यवस्था की सुविधा लेने से हिचकते हैं। 

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