आदिवासियों के हितों को बढ़ाना देने में महाराष्ट्र सरकार कोई कसर न छोड़े

हाईकोर्ट  आदिवासियों के हितों को बढ़ाना देने में महाराष्ट्र सरकार कोई कसर न छोड़े

Tejinder Singh
Update: 2022-07-15 16:14 GMT
 आदिवासियों के हितों को बढ़ाना देने में महाराष्ट्र सरकार कोई कसर न छोड़े

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को कहा है कि वह आदिवासियों के सर्वोत्तम हित को बढावा देने में कोई कसर न छोड़े और इसके लिए हर संभव पहल करे व कदम उठाए। मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता व न्यायमूर्ति एमएस कर्णिक की खंडपीठ ने मेलघाट इलाके में गर्भवति महिलाओं व बच्चों की मौत तथा कुपोषण के मुद्दे को लेकर साल 2007 में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान उपरोक्त बात कही। इस मामले को लेकर गुरुवार को सुनवाई हुई थी लेकिन खंडपीठ का आदेश शुक्रवार को उपलब्ध हुआ है। खंडपीठ ने कहा कि आदिवासियों के हित के लिए जरुरी है कि राज्य सरकार के संबंधित विभाग आपस में समन्वय बना कर कार्य करें। इसके साथ ही राज्य सरकार आदिवासी इलाकों में रहनेवाले लोगों के हितों को बढावा देने में कोई कसर न छोड़े। 

खंडपीठ ने कहा कि आदिवासी इलाकों में सुधार को लेकर राज्य सरकार के पास जो सुझाव आए है। वह उन पर खुले मन से विचार करे और यह सुनिश्चित करे कि जहां तक संभव हो वह आदिवासियों के हितों को सुरक्षित करनेवाले सुझावों को लागू करे। यह सुझाव डाक्टरों,समाजिक कार्यकर्ताओं व वकीलों की ओर से पिछले दिनों दो दिनों तक चली बैठक के दौरान दिए गए। खंडपीठ ने कहा कि हमे अगली सुनवाई के दौरान बताया कि जाए कि सरकार को आदिवासी इलाके में स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने को लेकर मिले कितने सुझावों को लागू किया गया है। इसकी जानकारी हमे हलफनामें स्वरुप रिपोर्ट में दी जाए। रिपोर्ट में स्पष्ट किया जाए की कौन से सुझावों को लागू कर पाना संभव नहीं है। खंडपीठ ने कहा कि राज्य सरकार सुझावों को लागू करते समय मेलघाट के मुद्दे को लेकर आईपीएस अधिकारी छेरिंग दोरजे की ओर से दी गई रिपोर्ट पर भी विचार किया जाए। मेलघाट में बच्चों की मौत के कारणों का पता लगाने के लिए हाईकोर्ट ने दोरजे को विशेष अधिकारी के तौर पर नियुक्त किया था। इसके बाद श्री दोरजे ने मेलघाट व अन्य आदिवासी इलाकों का दौरा कर रिपोर्ट तैयार कर कोर्ट को सौपी थी। खंडपीठ ने 11 अगस्त को इस मामले की सुनवाई रखी है। 

 

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