रायपुर : औषधि पादप बोर्ड के अध्यक्ष ने बागबाहरा परिक्षेत्र में औषधीय पौधों के रोपण का किया निरीक्षण

रायपुर : औषधि पादप बोर्ड के अध्यक्ष ने बागबाहरा परिक्षेत्र में औषधीय पौधों के रोपण का किया निरीक्षण

Aditya Upadhyaya
Update: 2021-01-18 08:06 GMT
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डिजिटल डेस्क, रायपुर। औषधीय पौधों की खेती को दें बढ़ावा। छत्तीसगढ़ आदिवासी, स्थानीय स्वास्थ्य परंपरा एवं औषधि पादप बोर्ड, के अध्यक्ष श्री बालकृष्ण पाठक ने गत दिवस महासमुंद वनमंडल में प्रवास के दौरान बागबाहरा परिक्षेत्र में औषधीय पौधों के रोपण का निरीक्षण किया। इसका रोपण वनवासियों के लिए औषधीय प्रजाति की उपलब्धता को बढ़ावा तथा उनके जीविकोपार्जन हेतु आय का अतिरिक्त साधन जुटाने के उददेश्य से किया गया है। श्री पाठक ने वहां आयुष मिशन योजना के तहत रोपित सर्पगंधा, स्टीविया प्लांटेशन (डोगाजार गांव), स्टीविया मॉडल नर्सरी एवं बच क्लस्टर (खेमड़ा गांव) तथा बच क्लस्टर (डोंगरगांव) का निरीक्षण किया। बोर्ड के अध्यक्ष श्री पाठक ने निरीक्षण के दौरान क्षेत्र के पारंपरिक वैद्यों से चर्चा कर सर्किलवार आवश्यकताओं के अनुसार औषधीय पौधों के रोपण के संबंध में योजना बनाने के निर्देश दिए। उन्होंने आगामी वर्षा काल में जंगल के अंदर भी अत्यधिक मांग वाले औषधीय पौधों का रोपण, जैवविविधता को बढ़ाने तथा ग्रामीणों के फायदे की दृष्टिकोण से वृहद पैमाने पर योजना बनाने के लिए भी कहा।

श्री पाठक ने वहां वन परिक्षेत्र में किसानों से चर्चा करने के पश्चात औषधीय पौधों की गुणवत्ता को भी देखा। उन्होंने औषधीय पौधों के रोपण के माध्यम से किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए विशेष जोर दिया। साथ ही उन्होंने जड़ी-बूटी उत्पादों के विपणन की व्यवस्था हर स्तर पर मजबूत करने के भी निर्देश दिए।

इस दौरान बोर्ड के अधिकारियों द्वारा बताया गया कि औषधीय पौधा बच की खेती से एक वर्ष में प्रति एकड़ 50 हजार रूपए तक आमदनी की संभावना है, जिसमें लागत लगभग 20 हजार रूपए से भी कम है। खेती में बच के साथ-साथ ब्राम्ही, मंडूकपर्णी, भृृंगराज इत्यादि फसलों को भी बढ़ाया जा सकता है। यह निश्चित रूप से धान से भी ज्यादा लाभदायक होगा। इसी तरह सर्पगंधा की खेती में 18 माह में लगभग 1 टन सूखा जड़ी प्राप्त होती है, जिसकी कीमत 4 लाख रूपए से अधिक होती है। बालू युक्त मिट्टी, टिकरा में इसकी खेती की जा सकती है।

इसी प्रकार शतावर की खेती से 18 माह में जड़ी बूटी तैयार हो जाती है तथा इससे प्रति एकड़ सालाना लगभग 2 से 2.50 लाख रूपए तक मुनाफा हो सकता है। वर्तमान समय में शतावर की अत्यधिक मांग है। इसी तरह स्टीविया की खेती के बारे में जानकारी दी गई। यह शुगर, बी.पी., कैंसर, मोटापा में अत्यंत लाभकारी है। श्री पाठक ने इसकी खेती तथा प्रसंस्करण संबंधित प्रोडक्ट बनाने हेतु एन.जी.ओ., किसान तथा स्व-सहायता समूह को प्रोत्साहित करने के निर्देश दिए। इस अवसर पर छत्तीसगढ़ आदिवासी, स्थानीय स्वास्थ्य परंपरा एवं औषधि पादप बोर्ड के मुख्य कार्यपालन अधिकारी श्री जे.ए.सी.एस.राव तथा किसान उपस्थित थे।

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