रायपुर : गौ-काष्ठ का उपयोग अलाव और दाह संस्कार में करने आयुक्त और सीएमओं को निर्देश जारी

रायपुर : गौ-काष्ठ का उपयोग अलाव और दाह संस्कार में करने आयुक्त और सीएमओं को निर्देश जारी

Aditya Upadhyaya
Update: 2021-02-02 07:59 GMT
गड़चिरोली में जिला खनिज निधि का नहीं हो रहा कोई उपयाेग!

डिजिटल डेस्क, रायपुर। नगरीय प्रशासन मंत्री डॉ शिवकुमार डहरिया ने दिए थे निर्देश नगरीय प्रशासन मंत्री डॉ शिवकुमार डहरिया की पहल से प्रदेश के सभी निकायों में ठण्ड के दिनों में चौक-चौराहों पर जलाए जाने वाले अलाव में गौ-काष्ठ, गोबर के कण्डे के उपयोग को अनिवार्य किया गया है। इसके साथ ही निकाय क्षेत्रों में होने वाले दाह संस्कार में गौ-काष्ठ एवं कण्डे के उपयोग को प्राथमिकता देने के निर्देश दिए गए हैं। राज्य शासन द्वारा इस संबंध में सभी निगम आयुक्त और नगर पालिका और नगर पंचायत के सीएमओं को निर्देश जारी कर दिए गए हैं। गोठानों से निकलने वाले गोबर और पशुपालकों से खरीदे जाने वाले गोबर का उपयोग जैविक खाद के अलावा गोबर काष्ठ बनाने में किया जाता है। प्रदेश के लगभग सभी जिलों में इस समय गोठान संचालित किए जा रहे हैं। नगरीय निकाय के अंतर्गत प्रदेश भर में 377 गोठान स्वीकृत है। जिसके अंतर्गत 169 स्व-सहायता समूह की महिलाएं कार्य कर रही है। इन गोठानों में जैविक खाद के अलावा गोबर के अनेक उत्पाद बनाए जा रहे हैं। गोठानों में गौ-काष्ठ और कण्डे भी बनाए जा रहे हैं। कुल 141 स्थानों में गोबर से गौ काष्ठ बनाने मशीनें भी स्वीकृत की जा चुकी है और यह मशीन काम भी करने लगी है। सूखे गोबर से निर्मित गौ-काष्ठ एक प्रकार से गोबर की बनी लकड़ी है। इसका आकार एक से दो फीट तक लकड़ीनुमा रखा जा रहा है। गौ-काष्ठ एक प्रकार से कण्डे का वैल्यू संस्करण है। गोठानों के गोबर का बहुउपयोग होने से जहां वैकल्पिक ईंधन का नया स्रोत विकसित हो रहा है, वहीं छत्तीसगढ़ के गांव और शहरों में रोजगार के नए अवसर भी खुलने लगे हैं। स्व-सहायता समूह की महिलाएं आत्मनिर्भर की राह में कदम बढ़ा रही है। हाल ही में सरगुजा जिले के अंबिकापुर में प्रदेश का पहला गोधन एम्पोरियम भी खुला है, जहां गोबर के उत्पादों की श्रृंखला है। प्रदेश के अन्य जिलों में भी गौ काष्ठ और गोबर के उत्पादों की मांग बढ़ती जा रही है। गोबर के घेल से पेंट और वॉल पुट्टी बनाने की दिशा में काम चल रहा है। दीपावली में गोबर के दीये, गमले, सजावटी सामान की मांग रहती है। प्रदेश के गोठानों में तैयार गौ-काष्ठ और कण्डे एक वैकल्पिक और जैविक ईंधन का बड़ा जरिया बन सकता है। इसके जलने से प्रदूषण भी नहीं फैलता और इसका उत्पादन भी आसान है। नगरीय निकाय क्षेत्रो में अलाव और दाह संस्कार में लकड़ी के स्थान पर गौ काष्ठ के उपयोग को बढ़ावा देने से वैकल्पिक ईंधन के उत्पादन में गति आएगी। प्रदेश के नगरीय निकायों में ठण्ड के दिनों में लगभग 400 अलाव चौक-चौराहों पर जलाए जाते हैं। चौक चौराहों में नगरीय निकाय द्वारा सूखी लकड़ी का उपयोग अलाव के लिए किया जाता था। अलाव के रूप में लकड़ी का उपयोग होने से पेड़ कटाई को बढ़ावा और पर्यावरण को भी नुकसान पहुचता था। अलाव में गोबर काष्ठ का उपयोग होने से इसके कई फायदे होंगे। गोबर काष्ठ से प्रदूषण का खतरा भी नहीं रहेगा और गोठानों के गोबर का सदुपयोग भी होगा। खास बात यह भी है कि गोबर काष्ठ का अलाव के जलने की क्षमता लकड़ी के अलाव की अपेक्षा अधिक होती है। रायपुर जैसे शहर में 12 से 30 दाह संस्कार होते हैं। एक दाह संस्कार में अनुमानित 500 से 700 किलो लकड़ी का उपयोग होता है। अलाव और दाह संस्कार में लकड़ी को जलाए जाने से भारी मात्रा में कार्बन का उत्सर्जन होता है, जो कि पर्यावरण के लिए अनुकूल नहीं है। यदि गौ काष्ठ का उपयोग लकड़ी के स्थान पर किया जाए तो महज 300 किलों में ही दाह संस्कार किया जा सकता है। इससे प्रदूषण भी नहीं फैलता है।

Similar News