रायपुर : नरवा विकास योजना: वनांचल के अनउपजाऊ तथा बंजर भूमि में 30-40 मॉडल का निर्माण प्राथमिकता से हो

रायपुर : नरवा विकास योजना: वनांचल के अनउपजाऊ तथा बंजर भूमि में 30-40 मॉडल का निर्माण प्राथमिकता से हो

Aditya Upadhyaya
Update: 2021-01-30 09:06 GMT
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डिजिटल डेस्क, रायपुर। कैम्पा के तहत 396 में से 30-40 मॉडल के अब तक 393 कार्य पूर्ण राज्य शासन की महत्वाकांक्षी नरवा विकास योजना के तहत कैम्पा की वार्षिक कार्ययोजना 2019-20 के अंतर्गत 30-40 मॉडल में कुल स्वीकृत 396 निर्माण कार्यों में से अब तक 393 का निर्माण कार्य पूर्ण कर लिया गया है। लगभग 330 हेक्टेयर रकबा में 4 करोड़ 13 लाख रूपए की लागत राशि से इनका निर्माण किया जा रहा है। नाला में भू-जल संरक्षण के लिए निर्मित किए जा रहे विभिन्न संरचनाओं में 30-40 मॉडल एक महत्वपूर्ण विशिष्ट संरचना है, जो हल्की ढलान तथा हल्की पथरीली भूमि और अनउपजाऊ तथा छोटे झाड़ों के वन अथवा बंजर भूमि में काफी फायदेमंद है। नरवा विकास योजना में इसकी उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की मंशा के अनुरूप वन मंत्री श्री मोहम्मद अकबर ने राज्य के वनांचल स्थित उछले भागों अथवा ढलान क्षेत्रों में 30-40 मॉडल के निर्माण कार्यों को प्राथमिकता से शामिल करने के निर्देश दिए है। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री ने विगत दिवस कैम्पा की वार्षिक कार्ययोजना 2020-21 के शुभारंभ के अवसर पर बस्तर वनमण्डल अंतर्गत निर्मित 30-40 मॉडल के प्रदर्शन की काफी सराहना की थी। इस संबंध में कैम्पा के मुख्य कार्यपालन अधिकारी श्री व्ही. श्रीनिवास राव ने बताया कि यहां प्रदर्शित उक्त मॉडल का निर्माण बस्तर वनमण्डल के अंतर्गत चित्रकूट परिक्षेत्र के तोकापाल विकासखंड के अंतर्गत कोयर नाला में किया गया है। इसमें मुख्यतः 452 ग्रिड में 30-40 मॉडल के संरचना का निर्माण किया गया है। इसके प्रत्येक संरचना में काजू तथा आंवला पौधे का रोपण वृहद स्तर पर किया गया है। नरवा विकास योजना के तहत बनाए जा रहे 30-40 मॉडल के बारे में प्रधान मुख्य वन संरक्षक श्री राकेश चतुर्वेदी ने बताया कि वनांचल के जिन क्षेत्रों में मिट्टी की गहराई 0.60 मीटर तथा मुरमी मिट्टी, हल्की पथरीली भूमि, अनउपजाऊ भूमि, छोटे झाड़ों के वन और बंजर भूमि में यह मॉडल बहुत उपयुक्त है। इसके निर्माण से कुछ दिनों के पश्चात् उक्त क्षेत्रों की भूमि उपजाऊ होने लगती है। 30-40 मॉडल में वर्षा जल को छोटे-छोटे चोकाकर मेड़ों के माध्यम से एक 1.20 ग 1.40 ग 0.90 मीटर के गड्डे में भरते है और इसे श्रृंखला में बनाने से उक्त स्थल में नमी अतिरिक्त समय तक बनी रहती है। इस पद्धति में कार्य करने से वर्षा के जल को काफी देर तक रोका जा सकता है।

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