श्रीमद् भागवत कथा: छठवें दिन सुनाई कंस वधन और श्रीकृष्ण-रूक्मिणी विवाह की कथा

  • श्रीमद्भागवत कथा एवं चारों धाम के हवन का आयोजन
  • छठवें दिन सुनाई कंस वधन और श्रीकृष्ण-रूक्मिणी विवाह की कथा

Bhaskar Hindi
Update: 2024-05-16 07:39 GMT

डिजिटल डेस्क, गुनौर नि.प्र.। श्रीमद्भागवत कथा एवं चारों धाम के हवन का आयोजन गुनौर निवासी सेवानिवृत्त प्राचार्य डॉ. रामनिवास पाठक व उनके परिजनों द्वारा आयोजित की जा रही है। कथा दिनांक ९ मई से १७ मई तक शाम ३ बजे से शुरू हो जाती है। कथा उपरांत १७ मई को विशाल भण्डारा भी आयोजित किया जायेगा। नगर के एक स्थानीय मैरिज गार्डन में आयोजित कथा में भक्तों को कथा का श्रवणपान कथा व्यास गुरू प्रसन्नदास आश्रम खजुरीताल मैहर के मुखारबिन्द से भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं के वर्णन ने नगर को भक्तिमय कर दिया है। कथा का रसपान करने रोजाना सैकडों की संख्या में लोग पहुंच रहे हैं। कथा व्यास ने छठवें दिन कंस वध व रुकमणी विवाह के प्रसंगों का चित्रण किया। उन्होंने कहा कि भगवान विष्णु के पृथ्वी लोक में अवतरित होने के प्रमुख कारण थे जिसमें एक कारण कंस वध भी था।

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कंस के अत्याचार से पृथ्वी त्राहि-त्राहि जब करने लगी तब लोग भगवान से गुहार लगाने लगे तब भगवान श्रीकृष्ण अवतरित हुए। कंस को यह पता था कि उसका वध श्रीकृष्ण के हाथों ही होना निश्चित है इसलिए उसने बाल्यावस्था में ही श्रीकृष्ण को अनेक बार मरवाने का प्रयास किया लेकिन हर प्रयास भगवान के सामने असफल साबित होता रहा। वही कंस के द्वारा अपने पिता उग्रसेन महाराज को भी बंदी बनाकर कारागार में रखा था उन्हें भी श्रीकृष्ण ने मुक्त कराकर मथुरा के सिंहासन पर बैठाया। उन्होंने बताया कि रुकमणी जिन्हें माता लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। वह विदर्भ साम्राज्य की पुत्री थी जो भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण से विवाह करने को इच्छुक थी लेकिन रुकमणी जी के पिता व भाई इससे सहमत नहीं थे जिसके चलते उन्होंने रुकमणी के विवाह में जरासंघ और शिशुपाल को भी विवाह के लिए आमंत्रित किया था जैसे ही यह खबर रुकमणी को पता चली तो उन्होंने दूत के माध्यम से अपने दिल की बात श्रीकृष्ण तक पहुंचाई और काफी संघर्ष हुआ युद्ध के बाद अंतत: श्री कृष्ण रुकमणी से विवाह करने में सफल रहे। 

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