पुणे: इन पवार का नाम है उल्हास पवार, जानिए - इसलिए कांग्रेस से अलग हो गए थे शरद पवार

  • निजी रिश्तों पर वार और प्रहार तेज हैं
  • कांग्रेस से अलग हो गए थे शरद पवार

Tejinder Singh
Update: 2024-05-05 16:15 GMT

डिजिटल डेस्क, पुणे, लक्ष्मण खोत | चुनाव का दौर है। इसमें वोट से पहले गालियां, अपशब्द और फब्तियां मिलती हैं। इस चुनाव में अधिक गर्मी है। इसलिए निजी रिश्तों पर वार और प्रहार तेज हैं। इतने अधिक कि 40 साल राजनीति में सक्रिय शरद पवार को प्रधानमंत्री ने भटकती आत्मा कहा और चौथी बार बारामती से लोकसभा जाने की इच्छुक सुप्रिया सुले को अपने अजीत दादा से कहना पड़ा- अब तक मेरे पिता के बारे में बहुत कुछ कह चुके हो। मेरी या रोहित की मां के बारे में उल्टा सीधा कहा तो वैसा ही जवाब मिलेगा। सार्वजनिक जीवन में ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो निजी स्वार्थ के बजाय सिद्धांत और वफादारी को महत्व देते हैं। कांग्रेस नेता उल्हास पवार ने संगठन में अनेक पद और जिम्मेदारियां संभालने के बावजूद कभी सत्ता में सहभागिता की परवाह नहीं। वरिष्ठ नेता शरद पवार के समकालीन उल्हास ने पवार से अलग अपनी राह चुनी। अपनों और विरोधियों के प्रति शालीन उल्हास दादा ने ‘दैनिक भास्कर, से विशेष बातचीत में शरद पवार परिवार के कई रहस्य खोले। 

इसलिए कांग्रेस से अलग हो गए थे शरद पवार

सोनिया गांधी की 1998 में नंदुरबार में विशाल सभा हुई। सोनिया गांधी का सक्रिय राजनीति में पहला कदम था। सभा में उमड़े जनसमूह को देखकर शरद पवार चकित थे। उन्होंने तब कहा भी था- पिछले 30 सालों से महाराष्ट्र में मैं काम कर रहा हूं, लेकिन सभाओं में 10 हजार भी लोग नहीं आते। सोनिया गांधी पहली बार महाराष्ट्र आईं, और इतनी संख्या में लोग इकट्‌ठा हुए। शायद उसके बाद ही शरद पवार ने पार्टी छोड़ने का निर्णय लिया। महाराष्ट्र विधान परिषद के तत्कालीन उपसभापति वसंत डावखरे के मुंबई बंगले पर उनको समझाने की भरसक कोशिश भी की। उन्होंने मेरी बात नहीं सुनी। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की स्थापना कर अलग राह पर चले। मौजूदा राजनीति में पार्टी का महत्व कम हुआ। अब तो सिर्फ और सिर्फ निजी स्वार्थ साधने के लिए नेता रातोंरात दल बदलते हैं। देश के लिए यह ठीक नहीं है। ऐसा नहीं है कि पहले नेता पार्टी नहीं बदलते थे। बदलते थे, परंतु विचारों के आधार पर। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल के दौरान भूमि अधिग्रहण कानून, बैकों के राष्ट्रीयकरण जैसे निर्णयों से प्रभावित होकर मोहन धारिया, चंद्रशेखर जैसे कई सोशलिस्ट विचारों के नेताओं ने कांग्रेस में प्रवेश किया था। आज के दौर में नेता रातों रात तीन-तीन दल बदलते हैं, जिसके पीछे न कोई विचार हाेता है, न ही नीति। शरद पवार के बंगले में एक कमरा मेरे लिए और एक हमीद दलवाई के लिए सुरक्षित था। असहमति को उस समय दुश्मनी नहीं माना जाता था।

शरद पवार परिवार पर छींटाकशी ओछी राजनीति: उल्हास दादा ने शरद पवार परिवार पर छींटाकशी को ओछी राजनीति बताया। निहायत निजी प्रसंग का जिक्र करते हुए बताया कि विधानसभा चुनाव जीतने के बाद शरद पवार ने 1967 में शादी कर ली। बहिणी-भाभी प्रतिभा को देखने पुणे के प्रभात रोड पर ब्रिगेडियर राणे के बंगले में गए थे। वे अपने नाना के घर थीं। राणे बड़ौदा संस्थान की सेना में ब्रिगेडियर थे। संस्थान के विलय के बाद उन्हें खडकवासला के एनडीए में नियुक्ति मिली जहां से वे सेवानिवृत्त हो चुके थे। ब्रिगेडियर राणे के बंगले पर मैंने पहली बार प्रतिभा पवार को देखा। वह शुरु से ही बहुत सरल थीं। उनके पिता सदु शिंदे क्रिकेटर थे। सन स्ट्रोक के कारण उनकी मृत्यु बहुत जल्दी हो गई। परिवार समृद्ध था। सदु शिंदे की मौत के बाद उनकी पत्नी यानि प्रतिभा पवार की मां ने एलआईसी एजेंट के तौर पर काम किया। आप इस बात पर विश्वास करोगे। स्वाभिमान पर ध्यान दो। पिता और परिजनों की सहायता लेने के बजाय उन्होंने अपने बूते परिवार का लालन पालन किया। उन्हें शिक्षा दिलाई। अच्छे से ख्याल रखा। शरद पवार की पत्नी की शालीनता और सादगी आज भी वैसी है। पवार दंपत्ति ने कभी बेटे और बेटी में अंतर नहीं किया। छोटा परिवार सुखी परिवार को कानूनी आंदोलन तो बाद में बनाया गया।

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