Kamada Ekadashi 2024: कामदा एकादशी व्रत, जानें व्रत विधि, पारण मुहूर्त और पारण विधि

इस एकादशी को फलदा एकादशी भी कहा गया है इस व्रत से कई यज्ञों के बराबर पुण्य प्राप्त होता है इस व्रत को करने से जातक के सारे पाप कट जाते हैं

Manmohan Prajapati
Update: 2024-04-18 11:47 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हिन्दू धर्म में एकादशी का बड़ा महत्व है, तिथि के अनुसार इसे अलग- अलग नामों से जाना जाता है। फिलहाल, चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी आने वाली है और इसे कामदा एकादशी (Kamada Ekadashi) के नाम से जाना जाता है। इसे फलदा एकादशी भी कहा गया है। इस वर्ष यह एकादशी 19 अप्रैल 2024, शुक्रवार को है। यह एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत को करने से कई यज्ञों के बराबर पुण्य प्राप्त होता है और जातक के सारे पाप कट जाते हैं।

ऐसा माना जाता है कि इस दिन जो भी व्रत करता है उस पर भगवान विष्णु की विशेष कृपा होती है। पद्म पुराण के अनुसार, भगवान कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को एकादशी का धार्मिक महत्व बताते हुए कहा था कि जिस तरह नागों में शेषनाग, पक्षियों में गरुड़, देवताओं में श्री विष्णु, वृक्षों में पीपल तथा मनुष्यों में ब्राह्मण श्रेष्ठ हैं, उसी प्रकार सम्पूर्ण व्रतों में एकादशी श्रेष्ठ है। आइए जानते हैं कामदा एकादशी के शुभ मुहू्र्त, पूजन विधि के बारे में।

कामदा एकादशी शुभ मुहूर्तः

तिथि आरंभः 18 अप्रैल 2024, गुरुवार शाम 05 बजकर 31 मिनट से

तिथि समापनः 19 अप्रैल 2024, शुक्रवार रात 08 बजकर 04 मिनट तक

पारण: 20 अप्रैल सुबह 05 बजकर 50 मनट से 08 बजकर 26 मिनट तक

कामदा एकादशी पूजन विधिः

- सूर्योदय से पूर्व उठका स्नानादि से निवृत्त होकर साफ वस्त्र धारण करें।

- भगवान विष्णु का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें।

- घर के मंदिर की सफाई करें और फिर भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने एक तेल का दीपक (दीप) और धूप (अगरबत्ती और धूप) जलाएं।

- भगवान विष्णु का आह्वान करें।

- मन ही मन ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय ’मंत्र का जितनी बार हो सके उतनी बार जप करें।

- भगवान को जल (जल), फूल (पुष्पा) और भोग (फल या मिठाई या अन्य सात्विक भोजन) चढ़ाएं।

- पूजा के अंत में भूल-चूक के लिए ईश्वर से हाथ जोड़कर प्रार्थना करें।

कामदा एकादशी मंत्रः

ॐ नारायणाय नम: ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान। यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्‍टं च लभ्यते।।

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