भोगाली और भेलघर, मेजी जलाकर होती है बिहू की शुरूआत...

भोगाली और भेलघर, मेजी जलाकर होती है बिहू की शुरूआत...

Bhaskar Hindi
Update: 2018-01-12 02:39 GMT
भोगाली और भेलघर, मेजी जलाकर होती है बिहू की शुरूआत...

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली।  हर त्योहार की अपनी परंपरा है। इसी के तहत ये जाना जाता है। यही परंपराएं इन स्थानों को दुनियाभर में प्रसिद्ध कर देती हैं। ऐसा ही एक उत्सव है माघ बिहू जिसे भोगाली भी कहा जाता है। साल में वैसे तो चार बिहू मनाए जाते हैं, लेकिन माघ बिहू सर्वाधिक धूमधाम से होता है और इसी परंपरा ने असम को एक अलग ही परंपरागत स्थान प्रदान किया है। इससे पहले हम आपको माघ बिहू के बारे में काफी बातें बता चुके हैं। आज एक बार फिर इस त्योहार के आपको और नजदीक लेकर चलते हैं...

 

धान की पुआल से छावनी
भोगाली या माघ बिहू की शुरुआत ही धूमधाम से होती है। ये त्योहार जितनी धूमधाम मनाया जाता है उतना ही इसके बाद भी इसका खुमार देखने मिलता है। माघ बिहू के पहले दिन को उरुका नाम से जाना जाता है। इस दिन लोग खुले और बड़े स्थान पर धान की पुआल से छावनी बनाते हैं जिसे भेलाघर कहा जाता है। 

ये होती तो अस्थायी है, लेकिन बेहद खूबसूरत। क्योंकि भेलघर में ही ये लोग बड़े-बड़े पक्षी इसी पुआल से बनाकर रखते हैं, जिसके बाद इनकी खूबसूरती देखते ही बनती है। इसके समीप ही 4 बांस लगाए जाते हैं ओर गुंबज का निर्माण होता है। जिसे मेजी कहा जाता है। गांव के सभी लोग यहां परपंरागत भोजन पकाते हैं, जिसे बाद में सभी रात्रिभोज के रूप में करते हैं।  

 
उरुका के दूसरे दिन ही मेजी को जला दिया जाता है। परंपरागत रूप से इसे स्नान कर इसे जलाया जाता है जिसके बाद बिहू का शुभारंभ होता है। मेजी इनके यहां विशेष स्थान प्राप्त है। लोग अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए मेजी से कामना भी करते हैं। इस दौरान विभिन्न वस्तुएं मेजी को भेंट की जाती हैं। लोग नाच गाकर अपनी खुशी का इजहार करते हैं। 

परंपरागत व्यंजन
त्योहार के दौरान विशेष पकवानों में तिल पीठा, लड्डू, मच्छी पीतिका और बेनगेना खार, घिला पीठा आदि का भी उपयोग किया जाता है। ये सभी परंपरागत व्यंजन हैं जिनका पूजा में भी प्रयोग किया जाता है। 

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