क्या आपकी कुंडली में भी है विदेश यात्रा का योग ?
क्या आपकी कुंडली में भी है विदेश यात्रा का योग ?
डिजिटल डेस्क, भोपाल। जन्म कुंडली में बहुत से शुभ - अशुभ योगों के साथ विदेश यात्रा के योग भी मौजूद होते हैं। जब अनुकूल ग्रहों की दशा/अन्तर्दशा कुंडली में चलती है तब व्यक्ति विदेश जाता है। वर्तमान समय में विदेश जाना सम्मान की बात भी समझी जाने लगी है और अधिक पैसे की चाहत में भी लोग विदेश यात्रा करने लगे हैं। कई बार व्यक्ति विदेश जाने की इच्छा तो रखता है लेकिन जा नहीं पाता है। आइए उन योगों के बारे में जानें जिनके आधार पर यह कहा जा सकता है कि इस कुंडली में "विदेश जाने के योग" बनते हैं। उसके बाद उन दशाओं की भी बात करेंगे, जिनकी दशा में व्यक्ति विदेश जा सकता है।
कुंडली के अनुसार विदेश यात्रा के योग
जन्म कुंडली में सूर्य लग्न में स्थित हो तब व्यक्ति विदेश यात्रा करने की संभावना रखता है।
कुंडली में बुध आठवें भाव में स्थित हो, या शनि बारहवें भाव में स्थित हो तब भी विदेश यात्रा के योग बनते हैं।
लग्नेश बारहवें भाव में स्थित है तब भी विदेश यात्रा के योग बनते हैं।
जन्म कुंडली में दशमेश और उसका नवांमांश दोनों ही चर राशियों में स्थित हो।
लग्नेश, कुंडली में सप्तम भाव में चर राशि में स्थित हो तब भी विदेश यात्रा के योग बनते हैं।
दशमेश, नवम भाव में चर राशि में स्थित हो तब भी विदेश यात्रा के योग बनते हैं।
सप्तमेश अगर नवम भाव में स्थित है तब भी व्यक्ति विदेश जा सकता है।
कुंडली में बृहस्पति चतुर्थ, छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित है तब भी विदेश यात्रा के योग होते हैं।
द्वादशेश और नवमेश में राशि परिवर्तन होने से भी व्यक्ति विदेश यात्रा करता है।
जन्म कुंडली में बारहवां भाव या उसका स्वामी अष्टमेश से दृष्ट हो तब भी विदेश यात्रा का योग बनता है।
कुंडली में चंद्रमा ग्यारहवें या बारहवें भाव में स्थित हो तब भी विदेश यात्रा के योग बनते हैं।
शुक्र जन्म कुंडली के छठवें, सातवें या आठवें भाव में स्थित हो तो विदेश यात्रा के योग बनते हैं।
राहु कुंडली के पहले, सातवें या आठवें भाव में स्थित हो तब भी विदेश यात्रा का योग बनता है।
कुंडली के छठवें भाव का स्वामी कुंडली में बारहवें भाव में स्थित हो तो भी विदेश यात्रा का योगन बनाता है।
दशम भाव व दशमेश दोनों ही चर राशियों में स्थित हों तो विदेश यात्रा का योग बनता है।
लग्नेश और चंद्र राशिश दोनों ही चर राशियों में स्थित हो तब भी व्यक्ति विदेश यात्रा करता है।
बारहवें भाव का स्वामी नवम भाव में स्थित होने पर भी विदेश यात्रा होती है।
लग्नेश और नवमेश दोनों में आपस में राशि परिवर्तन होने पर भी विदेश यात्रा होती है।
नवमेश व द्वादशेश दोनों ही चर राशियों में स्थित हो तब भी व्यक्ति विदेश यात्रा करता है।
यदि कुंडली के चतुर्थ भाव के बारहवें भाव का स्वामी बैठा हो तब व्यक्ति विदेश में शिक्षा ग्रहण करता है।
विदेश यात्रा का समय
जन्म कुंडली में यदि उच्च के सूर्य की दशा चल रही हो तब व्यक्ति के विदेश जाने के योग बनते हैं।
यदि उच्च के चंद्रमा या उच्च के ही मंगल की भी दशा चल रही हो तब भी व्यक्ति विदेश यात्रा करता है।
उच्च के बृहस्पति की दशा में भी व्यक्ति की विदेश यात्रा होती है।
यदि मंगल बली होकर लग्न में स्थित है या सूर्य से संबंधित है तब मंगल की दशा में भी विदेश यात्रा होने की संभावना बनती है।
कुंडली में यदि नीच के बुध की दशा चल रही है तब भी विदेश यात्रा हो सकती है।
बृहस्पति की दशा चल रही हो और वह सातवें या बारहवें भाव में चर राशि में स्थित हो तो विदेश यात्रा की संभावना होती है।
शुक्र की दशा चल रही हो और वह एक पाप ग्रह के साथ सप्तम भाव में स्थित हो तो विदेश यात्रा की संभावना होती है।
शनि की दशा चल रही हो और शनि बारहवें भाव में या उच्च नवांश में स्थित हो तो विदेश यात्रा की संभावना होती है।
राहु की दशा कुंडली में चल रही हो और राहु कुंडली में तीसरे, सातवें, नवम या दशम भाव में स्थित हो तो व्यक्ति विदेश यात्रा करता है।
जन्म कुंडली में सूर्य की महादशा में केतु की अन्तर्दशा चल रही हो तब भी विदेश जाने की संभावना बनती है।
यदि केतु की महादशा में सूर्य की अन्तर्दशा चल रही हो और कुंडली में सूर्य, केतु से छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित हो तब भी विदेश यात्रा की संभावना होती है।
केतु की महादशा में चंद्रमा की अन्तर्दशा चल रही हो और केतु से चंद्रमा केन्द्र/त्रिकोण या ग्यारहवें भाव में स्थित हो तो विदेश यात्रा के योग बनते हैं।
कुंडली में शुक्र की महादशा में बृहस्पति की अन्तर्दशा चल रही हो तब भी विदेश यात्रा की संभावना बनती है।
कुंडली में राहु की महादशा में सूर्य की अन्तर्दशा चल रही हो और राहु से सूर्य केन्द्र/त्रिकोण या ग्यारहवें भाव का स्वामी हो तो विदेश यात्रा होती है
शनि की महादशा में बृहस्पति की अन्तर्दशा चल रही हो और शनि से बृहस्पति केन्द्र/त्रिकोण या दूसरे या ग्यारहवें भाव का स्वामी हो तो विदेश यात्रा की संभावना होती है।
बुध की महादशा में शनि की अन्तर्दशा चल रही हो और बुध से शनि छठवें, आठवें, या बारहवें भाव में स्थित हो तो विदेश यात्रा के योग बनते हैं।
शनि की महादशा में केतु की अन्तर्दशा चल रही हो और केतु की लग्नेश से युति हो तो विदेश यात्रा के योग बनते हैं।
बृहस्पति की महादशा में बुध की अन्तर्दशा चल रही हो और बृहस्पति से बुध छठवें, आठवें या बारहवें भाव में स्थित हो तब विदेश जाने की संभावना बनती है।
मंगल की महादशा में बुध की अन्तर्दशा चल रही हो और बुध व मंगल की युति हो रही हो तो विदेश यात्रा के योग बनते हैं।
मंगल की महादशा में शनि की अन्तर्दशा चल रही हो और मंगल से शनि केन्द्र/त्रिकोण अथवा ग्यारहवें भाव में स्थित हो तब विदेश जाने की संभावना बनती है।