जानिए कौन थीं श्रीराम की बहन, जिनके बारे में नहीं किया जाता कहीं उल्लेख

जानिए कौन थीं श्रीराम की बहन, जिनके बारे में नहीं किया जाता कहीं उल्लेख

Bhaskar Hindi
Update: 2018-06-30 09:18 GMT
जानिए कौन थीं श्रीराम की बहन, जिनके बारे में नहीं किया जाता कहीं उल्लेख

डिजिटल डेस्क, भोपाल। भगवान श्रीराम के माता-पिता, भाइयों के बारे में तो प्रायः सभी जानते हैं किन्तु बहुत कम लोगों को यह ज्ञात होगा कि राम की एक बहन भी थीं। जिनका नाम शांता था। शांता आयु में चारों भाइयों से काफी बड़ी थीं। उनकी माता कौशल्या थीं। उनका विवाह कालांतर में श्रृंग ऋषि से हुआ था। आज हम आपको श्रृंग ऋषि और देवी शांता की सम्पूर्ण कहानी बताएंगे।

कौन थी शांता ? 

दक्षिण भारत की रामायण के अनुसार राम की बहन का नाम शांता था। जो चारों भाइयों से बड़ी थीं। भगवान राम की बड़ी बहन का पालन-पोषण राजा रोमपद और उनकी पत्नी वर्षिणी ने किया था। जो महारानी कौशल्या की बहन अर्थात राम की मौसी थीं।

राजा दशरथ और कौशल्या की पुत्री थी शांता 

ऐसी मान्यता है कि एक बार अंगदेश के राजा रोमपद और उनकी रानी वर्षिणी अयोध्या आए। उनकी कोई संतान नहीं थी। बातचीत करते-करते राजा दशरथ को जब यह बात ज्ञात हुई कि वो नि:सन्तान हैं। तो उन्होंने कहा, हम अपनी बेटी शांता आपको संतान के रूप में प्रदान कर देते हैं। रोमपद और वर्षिणी बहुत खुश हुए। उन्हें शांता के रूप में संतान मिल गई। उन्होंने बहुत ही स्नेह से उनका पालन-पोषण किया और माता-पिता के सभी कर्तव्य निभाए।

एक दिन राजा रोमपद अपनी पुत्री से ठिठोली कर रहे थे। तब द्वार पर एक ब्राह्मण आया और उसने राजा से प्रार्थना की कि वर्षा के दिनों में वे खेतों की जुताई में उनकी ओर से कुछ सहायता प्रदान करें। राजा रोमपद इतने अधिक मग्न थे कि उनको ब्राह्मण की यह बात सुनाई नहीं दी और वे पुत्री के साथ खेल में व्यस्त रहे।

राजा के द्वार पर आए एक नागरिक की याचना न सुनने से ब्राह्मण को दुख हुआ और वे राजा रोमपद का राज्य छोड़कर चले गए। वे इंद्र के भक्त थे। अपने भक्त की ऐसी अनदेखी पर देवराज इंद्र  राजा रोमपद पर क्रोधित हो गए और उन्होंने उनके राज्य में पर्याप्त वर्षा नहीं की। अंग देश में नाम मात्र की वर्षा हुई। इससे खेतों में खड़ी फसल सूखने लगी।

इस संकट की घड़ी में राजा रोमपद श्रृंग ऋषि के पास गए और उनसे उपाय पूछा। ऋषि ने बताया कि वे इंद्र देव को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ करें। ऋषि ने यज्ञ किया और खेत-खलिहान पानी से भर गए। इसके बाद श्रृंग ऋषि का विवाह शांता से हो गया और वे सुखपूर्वक रहने लगे।

कश्यप ऋषि के पौत्र थे श्रृंग ऋषि 

पौराणिक कथाओं के अनुसार श्रृंग ऋषि विभण्डक तथा अप्सरा उर्वशी के पुत्र थे। विभण्डक ने इतना कठोर तप किया कि देवतागण भयभीत हो गए और उनके तप को भंग करने के लिए उर्वशी को भेजा। उर्वशी ने उन्हें मोहित कर उनके साथ संसर्ग किया। जिसके फलस्वरूप श्रृंग ऋषि की उत्पत्ति हुई। श्रृंग ऋषि के माथे पर एक सींग (श्रृंग) था। अतः उनका नाम श्रृंग ऋषि पड़ गया।

इसके बाद जब राजा दशरथ को उनकी तीनों रानियों से कोई संतान नहीं हुई। तो इस बात को लेकर उन्हें चिंता सताने लगी कि पुत्र नहीं होने पर उत्तराधिकारी कौन होगा। राजा दशरथ की चिंता दूर करने के लिए ऋषि वशिष्ठ ने उन्हें एक उपाय बताया। ऋषि वशिष्ठ ने कहा कि आप अपने दामाद श्रृंग ऋषि से पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाएं। इससे पुत्र प्राप्ति अवश्य होगी।

ऋषि वशिष्ठ की सलाह पर दशरथ ने पुत्रकामेष्ठि यज्ञ में श्रृंग ऋषि को विनय पूर्वक आमन्त्रण दिया। श्रृंग ऋषि एक पुण्य आत्मा थे। जहां वो पांव रखते थे वहां यश होता था। सुमंत ने श्रृंग को मुख्य ऋत्विक बनने के लिए कहा। पहले तो श्रृंग ऋषि ने यज्ञ करने से इंकार किया लेकिन बाद में शांता के कहने पर ही श्रृंग ऋषि राजा दशरथ के लिए पुत्रेष्ठि यज्ञ करने के लिए तैयार हुए।

जिस स्थान पर उन्होंने यह यज्ञ करवाए थे वह अयोध्या से लगभग 39 कि.मी. पूर्व में था और वहां आज भी उनका आश्रम है। साथ ही उनकी और पत्नी शांता की समाधियां हैं।


हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में श्रृंग ऋषि का मंदिर भी है। कुल्लू शहर से इसकी दूरी कुछ 50 किमी है। इस मंदिर में श्रृंग ऋषि के साथ देवी शांता की प्रतिमा विराजमान है। यहां दोनों की पूजा होती है और दूर-दूर से अनेक श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं।

इस संबंध में लोकमत अनुसार तीन लोक कथाएं प्रचलित हैं।

1. पहली  कथा 

वर्षिणी नि:संतान थीं। एक बार अयोध्या में उन्होंने हंसी-हंसी में ही बच्चे की मांग की। दशरथ भी मान गए। रघुकुल का दिया गया वचन निभाने के लिए शांता अंगदेश की राजकुमारी बन गईं। शांता वेद, कला तथा शिल्प में पारंगत थीं और वे अत्यधिक सुंदर भी थीं।

2. दूसरी  कथा

लोककथा अनुसार शांता जब पैदा हुई, तब अयोध्या में अकाल पड़ा और 12 वर्षों तक धरती धूल-धूल हो गई। चिंतित राजा को सलाह दी गई कि उनकी पुत्री शां‍ता ही अकाल का कारण है। राजा दशरथ ने अकाल दूर करने के लिए अपनी पुत्री शांता को वर्षिणी को दान कर दिया। उसके बाद शां‍ता कभी अयोध्या नहीं आई। कहते हैं कि दशरथ उसे अयोध्या बुलाने से डरते थे इसलिए कि कहीं फिर से अकाल नहीं पड़ जाए।

3. तीसरी  

कुछ लोग मानते थे कि राजा दशरथ ने शां‍ता को सिर्फ इसलिए गोद दे दिया था, क्योंकि वह लड़की होने के कारण उनकी उत्ताराधिकारी नहीं बन सकती थीं।
 

Similar News