रेल पटरियों के बीच मां काली का मंदिर, अंग्रेजों ने की थी हटाने की कोशिश

रेल पटरियों के बीच मां काली का मंदिर, अंग्रेजों ने की थी हटाने की कोशिश

Bhaskar Hindi
Update: 2017-09-29 14:06 GMT
रेल पटरियों के बीच मां काली का मंदिर, अंग्रेजों ने की थी हटाने की कोशिश

डिजिटल डेस्क, तुमसर/भंडारा। तुमसर तहसील स्थित ग्राम देव्हाड़ी के रेलवे स्टेशन पर देश का एकमात्र ऐसा मंदिर है, जो मुंबई-हावड़ा रेल पटरियों के बीचों-बीच बना हुआ है। इस मंदिर में स्थापित मां काली के भक्तों का कहना है कि, यहां पर रेलवे का ईंजन भी नतमस्तक होता है, यानी कि इस मंदिर के सामने से गुजरते समय ट्रेन के इंजन हॉर्न अवश्य ही बजाते हुए निकलते हैं। इस मंदिर को जागृत स्थल के रूप में जाना जाता है। दूरदराज से श्रद्धालु अपनी मनोकामना लेकर इस मंदिर में आते हैं।

मां काली का जागरूक मंदिर
भंडारा जिला वैसे ही मंदिरों के लिए काफी मशहूर है। भंडारा जिले में अनगिनत प्राचीन मंदिर हैं, किंतु तुमसर तहसील अंतर्गत ग्राम देव्हाडी (तुमसर रोड) रेलवे स्टेशन पर एक ऐसा मंदिर है, जो पूरे देश में बिल्कुल अनूठा है। यहां से गुजरने वाले मुंबई हावड़ा रेलवे के दो ट्रैक के बीच मां काली का यह जागृत मंदिर है। यह मंदिर रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म क्रमांक 3 व 4 के बीच स्थापित होने के साथ ही यहां पर धूमधाम से नवरात्रि महोत्सव मनाया जाता है। रोजाना यहां से गुजरने वाली सैकड़ों ट्रेनों के इंजन इस स्थान पर पहुंचते ही हॉर्न देते हैं और उसके बाद ही आगे बढ़ते हैं। एक तरह से यह माता रानी के आगे नतमस्तक होने जैसा ही है। ग्रामीणों के अनुसार मां काली के दरबार में आनेवाले  की झोली कभी खाली नहीं रहती।  प्रति मंगलवार को इस मंदिर में भव्यता के साथ मां की पूजा-अर्चना की जाती है। यही नहीं बल्कि पूरे स्टेशन में यही एकमात्र ऐसा स्थान है जहां आज तक कोई दुर्घटना घटित नहीं हुई और न ही किसी के प्राण गए।

मंदिर हटाने में नाकाम हुए थे अंग्रेज
इस मंदिर की स्थापना को 100 वर्ष से अधिक समय बीत चुका है।  इस मंदिर की किसी ने स्थापना की थी या यह मंदिर स्वयंभू है इस बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं है लेकिन इस मंदिर को हटाने का असफल प्रयास अंग्रेजों द्वारा किए जाने की पक्की कहानियां सुनने को मिलती हैं। अंग्रेजों ने अपने राज्य के विस्तार  के लिए लोहमार्ग बिछाने का कार्य आरंभ किया जिसमें मुंबई-हावड़ा लोहमार्ग अधिक महत्व रखता था। उस पर भी तुमसर का अत्याधिक महत्व था।

मैगनीज उत्खनन पर थी अंग्रेजों की नजर

यहां पर स्थित डोंगरी(बु.) चिखला तथा मध्यप्रदेश के कुछ स्थानों के मैगनीज की खदानों पर उनकी नजर थी, जिसके चलते यहां से मैगनीज उत्खनन कर उन्हें ले जाने में रेल मार्ग काफी कारगर साबित होने वाला था। इसके लिए उन्होंने तिरोड़ी से तुमसर रोड तक के कठिण मार्ग पर भी रेलवे लाइन बिझाते हुए तुमसर रोड को मैग्नीज यार्ड का रूप दे दिया। इस यार्ड से भारत में अन्यत्र मैगनीज ले जाया जाना था जिसके लिए यह रेल मार्ग तुमसर तक तो पहुंच गया किंतु इस स्थान के छोटे से काली मंदिर की वजह से उन्हें आगे बढऩे में दिक्कतें आने लगीं।

फलस्वरूप अंग्रेज अधिकारियों व इंजीनियरों ने इस मंदिर को हटाने का निर्णय लिया। इस निर्णय का ग्रामवासियों ने विरोध किया किंतु सत्ता के नशे में चूर अंग्रेज अधिकारियों ने किसी की एक नहीं सुनी और मूर्ती हटाने के प्रयास शुरू कर दिए। अनेक हाथ व अनेक मशीनें इसे हटाने के लिए लगाई गईं। यही नहीं अंग्रेजों के इंजीनियरों ने भी अपने तर्क लगाकर इसे हटाना चाहा किंतु मूर्ति को अपने स्थान से रत्तीभर भी नहीं हिला पाए। ग्रामीणों की सलाह पर पूजा-पाठ अनुष्ठान भी किए गए किंतु इसका भी कोई लाभ नहीं हुआ।

मां काली ने ही अंग्रेजों को दी थी चेतावनी

बताया जाता है कि इस दौरान अंग्रेज अधिकारी को माता रानी ने दर्शन देते हुए पुन: मूर्ति हटाने का प्रयास न करने की हिदायत दी। यह रुट अत्यंत महत्वपूर्ण होने से इस काम को रोका भी नहीं जा सकता था। फलस्वरूप अंत में यह निर्णय लिया गया कि रेलवे ट्रैक को मोड़कर मंदिर के आजू बाजू से इसे बनाया जाए। जाए। यही वजह है कि, आज भी यह ट्रैक मंदिर से कुछ ही दूरी पर मोड़ लेते हुए नजर आते हैं।

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