नर्मदा जयंती, प्रलय भी नही कर सकेगा इस नदी का नाश

नर्मदा जयंती, प्रलय भी नही कर सकेगा इस नदी का नाश

Bhaskar Hindi
Update: 2018-01-12 03:07 GMT
नर्मदा जयंती, प्रलय भी नही कर सकेगा इस नदी का नाश

 

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मां नर्मदा, जिनके पुण्य प्रताप से हर कोई परिचित है। यह एकमात्र ऐसी नदी है जिसका पुराण है। कहा जाता है कि एक बार क्रोध में आकर इन्होंने अपनी दिशा परिवर्तित कर ली और चिरकाल तक अकेले ही बहने का निर्णय लिया। इस वजह से भी इन्हें चिरकुंआरी कहा जाता है। मां नर्मदा को मध्यप्रदेश की जीवनरेखा भी कहा जाता है। इस वर्ष 2018 में नर्मदा जयंती 24 जनवरी को मनायी जा रही है। यहां हम आपको नर्मदा के बारे में रोचक तथ्यों को बताने जा रहे हैं...


पुराणों में ऐसा वर्णन मिलता है कि इनका जन्म एक 12 वर्ष की कन्या के रूप में हुआ था। शिव के पसीने की एक बूंद धरती पर गिरी जिससे मां नर्मदा प्रकट हो गईं। इसी वजह से इन्हें शिवसुता भी कहा जाता है। 


इन्हें भगवान शिव ने ही वरदान दिया था कि प्रलयकाल में भी तुम्हारा अंत नही होगा। युगों-युगों तक संसार का कल्याण करती रहोगी। अमरकंटक से मां नर्मदा का उद्गम स्थल है। यहां इनका विवाह मंडप आज भी देखने मिलता है। बताया जाता है कि अपने प्रेमी सोनभद्र से क्रोधित होकर ही इन्होंने उल्टा बहने का निर्णय लिया और गुस्से में अपनी दिशा परिवर्तित कर ली। सोनभद्र और सखी जोहिला ने बाद में इनसे क्षमा भी मांगी, किंतु तब तक नर्मदा दूर तक बह चुकी थीं।

 

कहा जाता है कि जीवनकाल में एक बार ये अपने भक्तों को दर्शन अवश्य देती हैं। नर्मदा जयंती पर मां नर्मदा का प्रकटोत्सव मनाया जाता है।

 

जिस प्रकार गंगा में स्नान का पुण्य है उसी प्रकार नर्मदा के दर्शन मात्र से मनुष्य के कष्टों का अंत हो जाता है। गंगा स्वयं हर साल नर्मदा से भेंट, स्नान करने आती हैं। यह दिन गंगा दशहरा का माना जाता है।

 

नर्मदा से निकले हुए पत्थरों को शिव का रूप माना जाता है। भगवान शिव के आशीर्वाद से ही स्वयं ही प्राणतिष्ठित होते हैं इसी वजह से दुनियाभर में नर्मदा से निकले शिवलिंगों की मान्यता है। 

 

Similar News