Parshuram Jayanti 2024: भगवान विष्णु का अवतार माने जाते हैं परशुराम, जानें क्यों काट दिया था अपनी ही मां का सिर?

वैशाख माह की शुक्ल तृतीया को मनाई जाती है जयंती भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं परशुराम इस वर्ष जयंती 10 मई, शुक्रवार को मनाई जा रही है

Manmohan Prajapati
Update: 2024-05-10 11:57 GMT

डिजिटल डेस्क, भोपाल। वैशाख माह की शुक्ल तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया (Akshaya Tritiya) के नाम से जाना जाता है। इसी दिन भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम की जयंती (Parshuram Jayanti) भी मनाई जाती है। इस वर्ष यह 10 मई, 2024 यानी आज मनाई जा रही है। सनातन धर्म में इस दिन का विशेष महत्व है। इस दिन स्नान-दान व व्रत का विशेष महत्व होता है।

मत्स्य पुराण के अनुसार इस दिन जो कुछ दान किया जाता है वह अक्षय रहता है, वह कभी भी क्षय नहीं होता है। माना जाता है कि भगवान शिव के परमभक्त परशुराम न्याय के देवता हैं, जिन्होंने 21 बार इस धरती को क्षत्रिय विहीन किया था। आइए जानते हैं भगवान परशुराम से जुड़ी खास बातें...

क्यों काटा अपनी मां का सिर?

पौराणिक कथाओं की मानें तो, भगवान परशुराम माता रेणुका और ॠषि जमदग्नि की चौथी संतान थे। एक समय जब भगवान परशुराम की मां स्नान करने सरोवर में गई थीं। संयोगवश वहां राजा चित्ररथ नौकाविहार कर रहे थे। उन्हें देख ऋषि पत्नी के हृदय में विकार उत्पन्न हो गया और वह उसी समय आश्रम लौट आईं। लेकिन, आश्रम में ऋषि जमदग्नि को अपनी दिव्यदृष्टि से सब ज्ञात हो गया। जिसकी वजह से ऋषि बेहद क्रोधित हुए। इसके बाद उन्होंने अपने पुत्रों को अपनी मां का सिर काटने का आदेश दिया।

पिता की इस आज्ञा का पालन परशुराम ने किया और अपनी मां का सिर काट दिया। जिसके बाद ऋषि जमदग्नि प्रसन्न हुए और परशुराम से मनचाहा वर मांगने के लिए कहा। इस दौरान परशुराम ने अपने पिता से माता को पुनः जीवित करने का वरदान मांगा। जिसके बाद ऋषि जमदग्नि ने उनकी मां को पुन: जीवित कर दिया।

कौन हैं परशुराम

पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान परशुराम का जन्म भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि द्वारा सम्पन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से हुआ। यज्ञ से प्रसन्न देवराज इन्द्र के वरदान स्वरूप पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को एक बालक का जन्म हुआ था। वह भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। पितामह भृगु द्वारा सम्पन्न नामकरण संस्कार के अनन्तर राम, जमदग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य और शिवजी द्वारा प्रदत्त परशु धारण करने के कारण वह परशुराम कहलाए।

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