बेहतर बुनियादी ढांचा और छात्र-शिक्षक अनुपात के साथ दिल्ली के स्कूलों से कहीं आगे हैं एनसीआर के स्कूल

उद्योग विशेषज्ञ बेहतर बुनियादी ढांचा और छात्र-शिक्षक अनुपात के साथ दिल्ली के स्कूलों से कहीं आगे हैं एनसीआर के स्कूल

IANS News
Update: 2021-11-08 12:00 GMT
बेहतर बुनियादी ढांचा और छात्र-शिक्षक अनुपात के साथ दिल्ली के स्कूलों से कहीं आगे हैं एनसीआर के स्कूल

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में कई नए जमाने के स्कूलों ने एक परिवर्तनकारी शिक्षा प्रणाली को शामिल किया है, जो शायद दिल्ली में स्थित स्कूलों की तुलना में इन स्कूलों में दाखिले की संख्या में हालिया वृद्धि का कारण है। माता-पिता, शिक्षक और उद्योग विशेषज्ञ हाल ही में बच्चों की दिल्ली के स्कूलों से एनसीआर के स्कूलों में शिफ्टिंग को देख रहे हैं।

यानी ऐसे कई मामले देखे गए हैं, जब परिजन अपने बच्चों को दिल्ली के स्कूलों से निकालकर एनसीआर के स्कूलों में दाखिला दिला रहे हैं। ऐसे कई कारण हैं, जिससे यह बदलाव देखने को मिल रहा है और इनमें उन्नत पाठ्यक्रम, बच्चों के अनुकूल सीखने का माहौल, छात्र-शिक्षक अनुपात, अत्याधुनिक बुनियादी ढांचा प्रमुख कारण प्रतीत होते हैं।

इसके साथ ही मुख्य कारणों में समग्र विकास और विभिन्न सह-पाठ्यचर्या संबंधी गतिविधियों आदि पर ध्यान केंद्रित करना भी शामिल है।समय की मांग यह है कि वर्तमान शैक्षणिक संस्थान 21वीं सदी की कौशल आवश्यकताओं के अनुरूप प्रगतिशील शैक्षणिक प्रथाओं के साथ एक लचीले और उन्नत पाठ्यक्रम का पालन करें।

इसी तरह के विचार का समर्थन करते हुए द हेरिटेज ग्रुप ऑफ स्कूल्स के डायरेक्टर और एक्सपीरिएंशियल लनिर्ंग सिस्टम्स के सीईओ विष्णु कार्तिक ने कहा, गुरुग्राम के प्रगतिशील स्कूल, जिन्होंने सिर्फ 15-16 साल पहले अपनी यात्रा शुरू की थी, उन्होंने 21वीं सदी के कार्यस्थल की अपेक्षाओं के साथ उनके संरेखण के लिए पारंपरिक स्कूलों द्वारा अपनाई जाने वाली प्रथाओं और शिक्षाशास्त्र का मूल्यांकन किया।

वहीं दूसरी ओर, पारंपरिक स्कूल परिवर्तन को अपनाने में धीमे रहे हैं। इसके अलावा, छात्र-शिक्षक अनुपात की चिंता माता-पिता के स्कूल चयन मानदंड पर काफी हद तक हावी है, क्योंकि बेहतर छात्र-शिक्षक अनुपात व्यक्तिगत ध्यान और व्यक्तिगत सीखने को सक्षम बनाता है। यह एक अनुकूल सीखने का माहौल भी प्रदान करता है, क्योंकि अगर छात्रों के एक सही अनुपात में शिक्षक होंगे तो एक शिक्षक सभी बच्चों पर विशेष ध्यान दे सकता है और प्रत्येक बच्चे की ताकत और कमजोरियों के बारे में जानने की अत्यधिक संभावना है।

अगर कक्षा में 16 से 20 छात्र ही हों तो इसकी संभावना जाहिर तौर पर काफी बढ़ जाती है। एक अभिभावक, जिनका बच्चा पाथवे वल्र्ड स्कूल, अरावली में ग्रेड-3 में पढ़ता है, ने कहा, 30-40 बच्चों वाली कक्षा ऐसी स्थिति होती है, जिसे कोई भी माता-पिता नहीं चाहेगा। कोविड के कारण कक्षाएं ऑनलाइन होने के साथ, 16 बच्चों वाली एक कक्षा का प्रबंधन 30-40 बच्चों वाली कक्षा की तुलना में बहुत बेहतर है।

सेठ आनंदराम जयपुरिया ग्रुप ऑफ एजुकेशनल इंस्टीट्यूशंस में स्कूल्स की निदेशक मंजू राणा ने एनसीआर में स्कूलों की बढ़ती लोकप्रियता को दिल्ली के स्कूलों की बिगड़ती वित्तीय स्थिति और उनके द्वारा दी जाने वाली शिक्षा की गुणवत्ता सहित कुछ कारकों के बारे में बात की। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि दिल्ली में ज्यादातर स्कूल घुटन भरे हैं। इसके अलावा, उनकी शिक्षा में नए जमाने की कार्यप्रणाली को लागू करने के लिए आवश्यक नवीन उपायों का अभाव है। 

आईएएनएस

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