हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद की आज 114वीं जयंती, जानें उनसे जुड़ी कुछ खास बातें

हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद की आज 114वीं जयंती, जानें उनसे जुड़ी कुछ खास बातें

Bhaskar Hindi
Update: 2019-08-29 04:00 GMT
हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद की आज 114वीं जयंती, जानें उनसे जुड़ी कुछ खास बातें
हाईलाइट
  • ध्यानचंद के जन्मदिन को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में भी मनाया जाता है
  • ध्यानचंद ने अपने 1926 से 1948 तक के करियर में 400 से अधिक गोल किए
  • ध्यानचंद ने भारत के लिए 1928
  • 1932 और 1936 में 3 ओलंपिक गोल्ड मेडल जीते

डिजिटल डेस्क। हॉकी के महान खिलाड़ी व जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद का आज 114वां जन्मदिन है। ध्यानचंद के जन्मदिन को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। इसी दिन सर्वोच्च खेल सम्मान राजीव गांधी खेल रत्न के अलावा अर्जुन, ध्यानचंद और द्रोणाचार्य पुरस्कार भी दिए जाते हैं। ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 में इलाहाबाद में हुआ था। ध्यानचंद को खेल जगत की दुनिया में "दद्दा" कहकर भी पुकारते हैं।

हॉकी इंडिया ने ध्यानचंद की जयंती के अवसर पर ट्वीट कर उन्हें याद किया

खेल मंत्री किरण रिजिजू ने भी ध्यानचंद की जयंती पर ट्वीट किया

ध्यानचंद अपनी असाधारण गोल करने की क्षमता के लिए जाने जाते थे। उन्होंने क्रमशः 1928, 1932 और 1936 में 3 ओलंपिक गोल्ड मेडल जीते। अपने बेहतर बॉल कंट्रोल के लिए द जादूगर या हॉकी के जादूगर के रूप में विख्यात ध्यानचंद को भारत सरकार ने 1956 में भारत के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित किया था। महान हॉकी खिलाड़ी की 114 वीं जयंती पर, यहां देखिए उनके बारे में कुछ रोचक बातें। 

ध्यानचंद का जन्म इलाहाबाद में मां शारदा सिंह और पिता रामेश्वर सिंह के घर हुआ था। उनके पिता ब्रिटिश भारतीय सेना में थे, और उन्होंने सेना में हॉकी खेली थी। ध्यानचंद की 17 वें जन्मदिन पर ब्रिटिश भारतीय सेना के 1 ब्राहमणों में एक सिपाही (निजी) के रूप में भर्ती हुई थी। जो बाद में 1/1 पंजाब रेजिमेंट के नाम से जानी जाती थी। चंद ने विशेष रूप से 1922 और 1926 के बीच सेना के लिए हॉकी टूर्नामेंट और रेजिमेंटल गेम्स खेले।

17 मई 1928 में भारतीय राष्ट्रीय हॉकी टीम ने ऑस्ट्रिया के खिलाफ़ अपना ओलंपिक डेब्यू किया था। जिसमें चंद ने 3 गोल करके भारत को 6-0 से जीत दिलाई थी। ध्यानचंद ने 1928 के एम्स्टर्डम ओलंपिक में सबसे अधिक 14 गोल किए थे। तीन साल बाद, प्राधिकरण ने अंतर-प्रांतीय टूर्नामेंट के दौरान एक नई ओलंपिक टीम का चयन किया। IHF ने आर्मी स्पोर्ट्स कंट्रोल बोर्ड को लिखा कि, वह ध्यानचंद को नेशनल हॉकी में भाग लेने के लिए छोड़ दें। लेकिन, आर्मी स्पोर्ट्स कंट्रोल बोर्ड ने ध्यानचंद को छोड़ने के लिए मना कर दिया था। हालांकि, IHF ने बिना किसी औपचारिकता के ओलंपिक टीम के लिए चंद को चुना था।

लॉस एंजिल्स ओलंपिक के दौरान, चंद ने अपने भाई रूप के साथ मिलकर भारत के लिए 35 गोलों में से 25 गोल किए। बर्लिन ओलंपिक के दौरान, चांद को एक बार फिर बिना औपचारिकताओं के चुना गया। चंद ने 3 गोल, दारा ने 2 और रूप सिंह, तपसेल और जाफर ने 1-1 गोल कर भारत को फाइनल में जर्मनी के खिलाफ 8-1 से जीत दिलाई थी। उन्होंने अपने 1926 से 1948 तक के करियर में 400 से अधिक गोल किए। 

ध्यानचंद 51 वर्ष की आयु में सेना से सेवानिवृत्त हुए। उन्होंने अपनी सेवानिवृत्ति के समय मेजर का पद संभाला था। चंद की आत्मकथा, ,"गोल" को स्पोर्ट एंड पेस्टाइम, मद्रास ने 1952 में प्रकाशित किया था। भारत सरकार ने उनके सम्मान में 2002 में दिल्ली के नेशनल स्टेडियम का नाम बदल कर ध्यानचंद कर दिया था।

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