इजराइल-हमास युद्ध: 25 हजार मौतों को किया अनदेखा, इजराइल से समझौते के लिए तैयार हुआ सऊदी अरब! सामने रखी ये शर्त

  • इजरायल हमास के बीच करीब 4 महीने से जारी जंग
  • फिलिस्तीन पर हमले के बाद भी दे सकता है इजरायल को मान्यता
  • अब्राहम अकॉर्ड समझौते को देखते हुए नहीं ले पा रहा फैसला

Anchal Shridhar
Update: 2024-01-16 18:34 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। इजराइल और हमास के बीच युद्ध को शुरू हुए अब 3 महीने से भी ज्यादा का समय बीत चुका है। इसके बावजूद भी इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू गाजा पट्टी से हमास को खत्म करने की जिद्द पर अड़े हुए हैं। पिछले साल 7 अक्टूबर से शुरू हुई इस जंग मेंअब तक करीब 27 हजार से ज्यादा नागरिकों की मौत हो चुकी है। जिनमें करीब डेढ़ हजार इजरायल के नागरिक और सैनिक और करीब 25 हजार फिलिस्तीनी नागरिक शामिल हैं। इजरायली सेना अभी भी गाजा पट्टी पर लगातार जमीनी और हवाई हमले कर रही है।

इस जंग की शुरूआत ऐसे वक्त पर हुई थी जब सऊदी अरब और इजरायल के बीच रिश्तों में सुधार होने जा रहा था। सीएनएन की एक रिपोर्ट के मुताबिक युद्ध में अब तक मारे गए 25 हजार से ज्यादा फिलिस्तीनी लोगों परवाह किए बिना सऊदी अरब अभी अपना इरादा बदलने के बारे में नहीं सोच रहा है। माना जा रहा है कि वह भविष्य में इजराइल को मान्यता दे सकता है। हालांकि वह ऐसा अभी नहीं करेगा क्योंकि इससे उसे अन्य मुस्लिम देशों की आलोचना झेलनी पड़ेगी।

जंग के बाद ले सकता है फैसला!

विशेषज्ञों के मुताबिक सऊदी अरब इजरायल को मान्यता देने का फैसला युद्ध खत्म होने के बाद ले सकता है। हाल ही में अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन फिर से मध्य पूर्व के दौरे पर गए हुए थे। इस दौरे में सऊदी अरब और इजराइल देश भी शामिल थे। इन दोनों देशों की यात्रा करने के बाद उन्होंने कहा था कि इस क्षेत्र में हर कोई सामान्य हालात होने की मांग कर रहा है। इसके लिए वह खास प्रयास करने को भी तैयार हैं। ब्लिंकन ने कहा कि सऊदी अरब ने भी यही मांग की है। इजराइल रवाना होने से ठीक पहले उन्होंने सऊदी अरब में कहा, " मैं आपको बता देता हूं कि हर किसी का इरादा है कि रिश्ते सामान्य हों। जंग खत्म हो जाए।"

उधर, यूके में मगंलवार को बीबीसी को दिए एक साक्षात्कार में सऊदी अरब के राजनयिक प्रिंस खालिद बिन बंडार ने भी इजरायल-हमास जंग को लेकर बयान दिया। उन्होंने कहा, हम वास्तव में चाहते हैं कि जंग थम जाए और हालात पहले के जैसे सामान्य हो जाएं। 1982 से ही हमारी यही सोच है। वहीं विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका के मुकाबले सऊदी अरब ज्यादा कीमत मांग सकता है। इस समझौते के बदले में वह यह मांग रख सकता है कि इजराइल फिलिस्तीन के टू-स्टेट मॉडल के लिए मान जाए। इस बीच सऊदी लेखक और विश्लेषक अली शिहाबी ने भी सीएनएन को दिए इंटरव्यू में कहा कि "सऊदी अरब अब भी इस बात के लिए राजी है कि इजराइल यदि टू-स्टेट सॉल्यूशन पर फोकस करे तो हम रिश्ते सामान्य कर लें।"

शिहाबी ने आगे कहा कि, "इजराइल गाजा और वेस्ट बैंक से पूरी तरह हट जाए औक वहां की कमान फिलिस्तीन अथॉरिटी के हाथ में रहे। इसके अलावा गाजा की नाकेबंदी भी खत्म हो।" शिहाबी ने इजराइल को लेकर कहा कि उसे वादे करने की जगह कुछ मजबूत कदम उठाने चाहिए। इसके साथ उन्होंने कहा कि इजराइल अन्य देशों के साथ ऐसा पहले भी कर चुका है। जैसे ही उसे मान्यता मिलती है वह अपने पुराने रूप में आ जाता है। जानकारों के मुताबिक शिहाबी ने अपने इस बयान के जरिए साल 2020 में हुए अब्राहम अकॉर्ड समझौते के बारे में बात की थी जो कि यूएई, बहरीन, मोरक्को और सूडान ने इजरायल के साथ किया था।

बता दें कि इस समझौते के तहत यूएई, बहरीन, मोरक्को और सूडान ने इजराइल को मान्यता दी थी। इसके बाद से ही अमेरिका की कोशिश है कि सऊदी अरब भी इजरायल को मान्यता दे दे। इसके लिए वह अन्य मुस्लिम देशों को मनाने के प्रयासों में जुटा हुआ है। हालांकि हमास के हमलों उसकी इस सारी योजना पर पानी फेर दिया था।

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