दुर्लभ सारस हो रहे विलुप्त-बचाने की दरकार - करंट लगने से जोड़े की मृत्यु! 

गोंदिया दुर्लभ सारस हो रहे विलुप्त-बचाने की दरकार - करंट लगने से जोड़े की मृत्यु! 

Tejinder Singh
Update: 2022-11-22 15:48 GMT
दुर्लभ सारस हो रहे विलुप्त-बचाने की दरकार - करंट लगने से जोड़े की मृत्यु! 

डिजिटल डेस्क, गोंदिया, महेंद्र गजभिये। प्रेम का प्रतीक माने जाने वाले दुर्लभ सारस पक्षियों को बचाने की दरकार है। यू तो दुनियाभर में इसे बचाने के जतन हो रहे हैं, प्रशासनिक तौर पर भी कई तरह से जागरुकता फैलाने का दावा किया जाता है, वहीं कामठा में दुर्लभ पक्षी सारस का जोड़ा मृत पाया गया है। जिसकी सूचना मिलते ही वन विभाग की टीम जब जांच करने पहुंची, तो पता चला कि बिजली तारों की चपेट में आने से जोड़े की मौत हो गई। सारस जोड़ा जिस स्थान पर मृत अवस्था में पाया गया, वहां पास में तालाब है, जिसके साथ ही बिजली के तार मौजूद हैं, अनुमान लगाया जा रहा है कि उड़ाते समय सारस का जोड़ा उन तारों की चपेट में आ गया, जिससे दोनों की मृत्यु हो गई हो। अनुमान यह भी लगाया गया है कि यह घटना तीन से चार दिन पूर्व की हो सकती है। शाम तक सारस के जोड़े का पोस्टमार्टम कर अग्नि दे दी गई। 

अब तक 6 सारस की मौत 

जानकारी के मुताबिक दुर्लभ सारस की विभिन्न कारणों से मौत होने के मामले सामने आए हैं। जिनमें तीन वर्षों में 6 सारस की मौत हुई है। बताया गया है कि तीन वर्षों में दासगांव में 2, परसवाड़ा में 1, पांजरा में 1 व कामठा में 2 सारस पक्षियों की मृत्यु हो गई है। जिसके कारण भी अलग-अलग हैं।

सारस को प्रेम और समर्पण का प्रतीक भी माना जाता हैं। सारस के जीवन को प्रेम के बिना अधूरा माना जाता है। सच मायनो में सारस जोड़ा प्रेम के बिना नहीं जी सकता। वो अपनी इस विशेषता के कारण इसे एक अच्छी सामाजिक स्थिति के रूप में देखा जाता है। पूरे विश्व में सारस की कुल आठ जातियां हैं। इनमें चार भारत में मौजूद हैं। पांचवी प्रजाति साइबेरियन क्रेन भारत में 2002 में ही विलुप्त हो गई थी। 

देशभर में सारस  कुल संख्या लगभग 10 हजार तक आंकी गई है। जो भारत के उत्तरी, उत्तर-पूर्वी, उत्तर-पश्चिमी एवं पश्चिमी मैदानो में और नेपाल के कुछ तराई इलाको में है। खास बात है कि भारत में पाए जाने वाले सारस प्रवासी नहीं होते हैं, वे स्थाई रूप से एक ही भौगोलिक क्षेत्र में निवास करते हैं। जो दलदली जमीन, बाढ़ वाले स्थान, तालाब, झील और खेती के इलाकों में पाए जाते हैं। ऐसे में इतनी कम संख्या में होने के कारण इन्हें दुर्लभ माना गया है।  

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