26/11 की धुंधली यादें, लेकिन सोचकर सहम उठते हैं लोग

महाराष्ट्र 26/11 की धुंधली यादें, लेकिन सोचकर सहम उठते हैं लोग

IANS News
Update: 2022-11-26 13:31 GMT
26/11 की धुंधली यादें, लेकिन सोचकर सहम उठते हैं लोग
हाईलाइट
  • वीवीआईपी कारें अपने फ्लैशिंग लाइट और तेज सायरन के साथ आ जा रही थीं

डिजिटल डेस्क, मुंबई। 1997 के बाद पैदा होने वाली जनरेशन ने छोटी सी उम्र में भयानक मुंबई आतंकी हमले (26 नवंबर, 2008) को देखा था। भारत को हिलाकर रख देने वाले 26/11 हमले के बारे में बात कर दुनिया के लोग सहम उठते है। एक पर्यटन समूह के लिए काम करने वाले सिआने डिक्रूज ने याद करते हुए कहा, मैं तब सिर्फ आठ साल का था, अंधेरी के सेंट लुइस कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ता था और टीवी में यह सब देख रहा था। उस वक्त मुझे यह सबकुछ समझ नहीं आया, लेकिन कुछ सालों बाद मैं इस हमले के पीछे छिपे मंशा को समझ पाया।

दूसरी ओर, कांदिवली में पढ़ने वाली एक एजुटेक कंसल्टेंट पृथ्वी पारिख को हमले से जुड़ी कुछ बातें याद हैं और बाद में उन्होंने सोशल मीडिया के माध्यम से इसे बताया। पृथ्वी पारिख ने कहा, उस रात, आतंकी हमला शुरू होने के तुरंत बाद, मैं सोने चला गया क्योंकि मुझे अगली सुबह स्कूल जाना था। आधी रात के आसपास मेरे चाचा ने फोन किया और परिवार को स्थिति की गंभीरता के बारे में बताया, क्योंकि मेरे कई रिश्तेदार दक्षिण मुंबई में आतंकवादी हमलों के आसपास के इलाके में रहते थे।

23 वर्षीय डॉ. श्रेयश परब बताते हैं कि उस वक्त पड़ोस के बच्चे अपने चिंतित माता-पिता या दादा-दादी को टीवी सेट से चिपके हुए पाते थे, अखबारों को पढ़ते हुए और 26/11 के बारे में दबी हुई आवाज में चर्चा करते हुए सुनते थे। डॉ परब ने कहा, अगली सुबह, सरकार ने अगले कुछ दिनों के लिए स्कूल की छुट्टी घोषित कर दी थी। हम बाहर खेलने के लिए उत्सुक थे, लेकिन हमारे माता-पिता ने हमें रोक दिया और हमें ज्यादातर घर के अंदर ही रखा। उन्हें देखकर हम बच्चे समझ गए कि वास्तव में कुछ गंभीर चल रहा है।

अमीना अंसारी (पहचान छिपाने के लिए नाम बदल दिया गया है), दक्षिण मुंबई में एक प्री-स्कूल प्रशिक्षक, अभी भी उनको काले दिनों की यादें स्पष्ट हैं, क्योंकि यह सब भायखला में उनके निवास के बहुत करीब हुआ था। शेख ने कहा, उस वक्त मैं 10 साल का था। लगभग कर्फ्यू जैसा माहौल था, पुलिस वाहन, एंबुलेंस और वीवीआईपी कारें अपने फ्लैशिंग लाइट और तेज सायरन के साथ आ जा रही थीं, हम बच्चे टीवी पर हमलों को देख रहे थे, लेकिन वास्तव में इसके मंशा को समझ नहीं पाए।

आज 14 साल बाद, डिक्रूज, पारिख, डॉ. परब और शेख देश के बाकी हिस्सों की तरह उन बहादुर सुरक्षा बलों के आभारी हैं, जिन्होंने उन 10 आतंकवादियों का मुकाबला किया और एक (अजमल आमिर कसाब) को जिंदा पकड़ लिया। कसाब का नाम और तस्वीर पूरे अंतरराष्ट्रीय मीडिया में छपी। कसाब को 21 नवंबर, 2012 में फांसी दे दी गई। डीक्रूज ने कहा, हम उस नाम कसाब को कैसे भूल सकते हैं, यह उसकी वजह से था कि 26/11 के दौरान इतने सारे निर्दोष लोगों की जान चली गई थी। चार साल के मुकदमे के बाद आखिरकार उसे फांसी दे दी गई और मामला खत्म हो गया।

फिर भी, पारिख और परब इस बात पर अफसोस जताते हैं कि कसाब को फांसी देने में इतना समय क्यों लगाया गया, और गर्व इस बात पर महसूस करते हैं कि आतंकवादियों द्वारा मारे गए नागरिक और बहादुर सुरक्षा जवानों ने देश और नागरिकों के लिए खुद को कुर्बान कर दिया।

डॉ. परब और पारिख ने मुस्कराते हुए कहा, यह जानकर सुकून मिलता है कि इसके तुरंत बाद सरकार ने सभी सुरक्षा उपाय किए हैं, तटीय क्षेत्रों पर निगरानी बढ़ा दी है, सुरक्षा तंत्र में सुधार किया। जिसके बाद हम चैन की नींद सो सकते हैं। शेख और डिक्रूज खुश हैं कि हम बिना किसी परेशानी के मुंबई घूम सकते हैं और इसका श्रेय 26/11 के आतंकी तबाही के बाद सीखे गए पाठों को दिया जाता हैं।

(आईएएनएस)

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