मप्र : आदिवासी बच्चों ने उठाया समस्या निदान का बीड़ा

मप्र : आदिवासी बच्चों ने उठाया समस्या निदान का बीड़ा

IANS News
Update: 2019-11-14 13:00 GMT
मप्र : आदिवासी बच्चों ने उठाया समस्या निदान का बीड़ा

भोपाल, 14 नवंबर (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश के आदिवासी अंचल के बच्चे बदल रहे है, अपने अधिकार को जानने लगे है, यही कारण है कि गांव और अपनी समस्याओं के निपटारे के लिए खुद सामने आने लगे है। इतना ही नहीं आदिवासी बच्चे समस्याओं को लेकर प्रशासनिक अधिकारी से लेकर सरपंच तक जाने में नहीं हिचकते। इसी का नतीजा है कि, बच्चों ने कई समस्याओं का निदान कराने में सफलता पाई है।

हम बात आदिवासी बाहुल्य जिले झाबुआ की कर रहे है। यहां का आदिवासी भी अन्य हिस्सों की तरह है जो अपने में मस्त रहता है तो परिवार चलाने की बड़ी जिम्मेदारी महिलाओं पर हेाती है। इस बात का बच्चों पर बड़ा असर हुआ और वे अपने हक के लिए खुद सामने आने लगे है। मेघनगर विकासखंड के कई गांव का नजारा तो बदलाव की ओर है क्योंकि यहां के बच्चे इतने जागरूक हो गए है कि, उन्हें पता है कि, उनका हक क्या है और उसे कैसे पूरा कराना है।

हत्याबेली की संजू बसूनिया बताती है कि, उनके गांव की जब भी कोई समस्या होती है उसके निपटारे के लिए वे अपने साथियों की टोली लेकर संबंधित अधिकारी के पास चली जाती है, आवेदन देती है और उसकी पावती लेना नहीं भूलती और जब तक समस्या का निपटारा नहीं हो जाता तब तक उनकी कोशिश जारी रहती है।

इसी गांव की एंजिला डामोर बताती है कि, उनके गांव और कई अन्य गांव में पानी की समस्या थी, कुएं नहीं थे, इसके लिए उन्हें ने प्रयास किए, जिसके चलते कई गांव में कुएं बन गए है और पानी की समस्या से काफी हद तक छुटकारा मिल गया है।

गोपालपुरा की संजू डामोर बताती है कि, गांव-गांव में मांदल टोली बनाई गई है, जिसमें किशोरों को शामिल किया गया है, वे आपस में बैठकें करते हैं और समस्याओं पर खुलकर चर्चा होती है। गांव की पानी, बिजली जैसी समस्याओं पर तो बात होती ही है साथ में बाल विवाह जैसे मुददे भी उनकी चर्चा में शामिल होते हैं।

बच्चों के लिए काम करने वाली संस्था यूनिसेफ के सहयोग से चलाए जा रहे अभियान से आदिवासी बच्चों में जागरूकता लाई जा रही हैं। बच्चों ने गांव-गांव में खाली और अनुपयोगी पड़े स्वराज भवनों का मसला उठाया था और उन्हें बैठकों और लाइब्रेरी के लिए दिए जाने का आग्रह किया तो कई गांव में स्वराज भवन में उन्होंने बैठकें व लाइब्रेरी शुरू कर दी है।

इन बच्चों में आई जागरुकता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि, वे नियमित रुप से अपनी ग्राम सभा की बैठक में जाते है और वे जो आवेदन देते है उसकी पावती लेने के अलावा उस रजिस्टर को भी देखते है जिसमें अनुमोदन किया जाता है।

वसुधा संस्थान की गायत्री परिहार ने बताया है कि, आदिवासी बच्चें अन्य बच्चों की तरह संवेदनशील है, उनमें अपने जीवन को खुशहाल बनाने की ललक है, बस जरूरत है कि उन्हें सही मार्गदर्शन मिले। यूनिसेफ की पहल ने इन बच्चों की ही नहीं गांव की जिंदगी में बदलाव लाने की हवा चला दी है। सरकार की योजनाएं है मगर उन्हें लाभ नहीं मिल पाता, अब बच्चे जागरूक हो चले हैं तो योजनाओं का लाभ हासिल करना ज्यादा आसान हो गया है।

आदिवासी बच्चों ने मेघनगर विकासखंड के 13 गांव की तस्वीर में बड़ा बदलाव ला दिया है। पानी, शौचालय की समस्याओें का निराकरण हुआ तो विद्यालय की चाहरदीवारी भी बन गई है। आने वाले दिनों में यहां के बच्चों की जागरूकता देखकर कोई उन्हें आदिवासी क्षेत्र का निवासी नहीं कह सकेगा।

 

Tags:    

Similar News