राहुल के शब्द उचित नहीं थे, मनमोहन ने इस्तीफा न देकर सही किया : अहलूवालिया
राहुल के शब्द उचित नहीं थे, मनमोहन ने इस्तीफा न देकर सही किया : अहलूवालिया
- अहलूवालिया ने अपनी नवीनतम पुस्तक बैकस्टेजद स्टोरी ऑफ इंडियाज हाई ग्रोथ इयर्स में इसका उल्लेख किया है
- उन्होंने कहा
- मैंने जो पहला काम किया
- वह उस लेख को प्रधानमंत्री के संज्ञान में ले जाना था
- एक विशेष साक्षात्कार में अहलूवालिया ने कहा
- मेरे विचार से डॉ. सिंह ने सही फैसला लिया
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। योजना आयोग (अब नीति आयोग) के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने सोमवार को कहा कि 2013 में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने दोषी सांसदों के मुद्दे पर अध्यादेश को फाड़ते समय उपयुक्त शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस्तीफा न देकर सही काम किया। आईएएनएस को दिए एक विशेष साक्षात्कार में अहलूवालिया ने कहा, मेरे विचार से डॉ. सिंह ने सही फैसला लिया।
जब यह कहा गया कि गांधी ने अध्यादेश पर उठाए गए अपने अचानक कदम के बारे में डॉ. सिंह को अंधेरे में रखा, तो उन्होंने पूर्व कांग्रेस उपाध्यक्ष (राहुल गांधी) को यह सुझाव देने के लिए उद्धृत किया कि उनके शब्द बेहतर हो सकते थे।
अहलूवालिया ने कहा, आपको अहसास होना चाहिए कि लोकतंत्र में पार्टी के अंदर असंतोष होने में कुछ भी गलत नहीं है। मुझे नहीं लगता कि उस पार्टी को चलाने में बहुत योग्यता है, जहां हर किसी के विचार केवल पार्टी के नेतृत्व की सोच से मेल खाते हों।
उन्होंने कहा, यह लोकतांत्रिक असंतोष का एक उदाहरण है (पार्टी के अंदर)। मेरे विचार में इसमें कुछ भी गलत नहीं है। मुझे लगता है कि गांधी द्वारा बोले गए शब्द बहुत उपयुक्त नहीं थे। मुझे ख्याल से उन्होंने जो कहा, वो पूरी तरह बकवास था, ओके? उन्होंने कहा कि लोगों को स्वतंत्र रूप से अपने विचारों को व्यक्त करना चाहिए और अगर आप उनसे असहमत हैं, तो आप इस पर चर्चा कर सकते हैं।
अहलूवालिया ने अपनी नवीनतम पुस्तक बैकस्टेज : द स्टोरी ऑफ इंडियाज हाई ग्रोथ इयर्स में इस घटना का विस्तार से उल्लेख किया है।
उन्होंने कहा कि उनके भाई ने डॉ. सिंह के इस्तीफे की वकालत करने के लिए एक लेख लिखने के बाद, उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री को उक्त लेख दिखाया था।
उन्होंने कहा, मैंने जो पहला काम किया, वह उस लेख को प्रधानमंत्री के संज्ञान में ले जाना था, क्योंकि मैं चाहता था कि वह पहले इस बारे में मुझसे सुनें। उन्होंने इसे चुपचाप पढ़ा और शुरू में कोई टिप्पणी नहीं की। फिर उन्होंने अचानक मुझसे पूछा कि क्या मुझे इस्तीफा दे देना चाहिए? कुछ देर सोचने के बाद मैंने कहा कि मुझे नहीं लगता कि इस्तीफा देना सही होगा। मुझे विश्वास था कि मैंने उन्हें सही सलाह दी है।
सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में दागी जनप्रतिनिधियों के चुनाव लड़ने के खिलाफ फैसला दिया था। इस फैसले को निष्प्रभावी बनाने के लिए संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार ने अध्यादेश जारी किया था। उस समय इसके खिलाफ जाते हुए कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा था, यह पूरी तरह बकवास है, जिसे फाड़कर फेंक देना चाहिए। इस घटनाक्रम से संपग्र सरकार की किरकिरी हुई थी।
अहलूवालिया ने तीन दशकों तक भारत के आर्थिक नीति निर्माता के रूप में काम किया है। उन्होंने अपनी किताब में संप्रग सरकार की सफलताओं और विफलताओं का जिक्र किया है।