विवाहेत्तर संबंध में सिर्फ पुरुष को दोषी मानना समानता का उल्लंघन : SC

विवाहेत्तर संबंध में सिर्फ पुरुष को दोषी मानना समानता का उल्लंघन : SC

Bhaskar Hindi
Update: 2018-08-02 13:29 GMT
विवाहेत्तर संबंध में सिर्फ पुरुष को दोषी मानना समानता का उल्लंघन : SC
हाईलाइट
  • धारा-497 के तहत एडल्टरी के मामले में केवल पुरुषों को सजा दी जाती है
  • महिलाओं को नहीं।
  • याचिका में धारा-497 को कहा गया है एक लिंग भेदभाव करने वाली धारा।
  • सुप्रीम कोर्ट में धारा 497 की संवैधानिक वैधता पर हो रही है लगातार सुनवाई।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। एडल्टरी (व्यभिचार) के मामलों में महज पुरुषों को दोषी मानने वाली धारा 497 को खत्म करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका पर बुधवार से सुनवाई जारी है। इस मामले की सुनवाई लगातार की जाएगी। गुरुवार को चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय बेंच ने इस पर सुनवाई करते हुए पाया है कि यह धारा समानता के अधिकारों का उल्लंघन करती है। बेंच ने केन्द्र सरकार की उस दलील पर भी असहमति जताई है, जिसमें धारा 497 को शादी जैसे महत्वपूर्ण सम्बंधों की पवित्रता के लिए जरुरी बताया गया था। सुनवाई के दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, "इस मामले में आदमी और औरत के लिए अलग-अलग नियम, अपराध को खत्म करने की बजाय और बढ़ाएगा।"

बता दें कि याचिका में अपील की गई है कि धारा-497 एक लिंग भेदभाव करने वाली धारा है, जिसके तहत पुरुषों को दोषी पाए जाने पर सजा दी जाती है, जबकि महिलाओं को नहीं। ऐसे में भेदभाव वाले इस कानून को गैर संवैधानिक घोषित किया जाना चाहिए। 11 जुलाई को केन्द्र सरकार ने इस याचिका पर अपना हलफनामा पेश किया था। इसमें केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से इस याचिका को खारिज करने की मांग की थी। सरकार की ओर से कहा गया था कि अगर एडल्टरी से जुड़ी धारा 497 को खत्म किया जाता है तो इससे शादी जैसा महत्वपूर्ण सम्बंध कमजोर होगा और इसकी पवित्रता को भी नुकसान होगा। ऐसे में इस धारा को खत्म करने की मांग करने वाली याचिका खारिज की जानी चाहिए।

याचिका के विरोध में केन्द्र सरकार ने कहा था कि इस मामले में अभी कोई फैसला लेने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि फिलहाल लॉ कमिशन इस पर विचार कर रहा है। केन्द्र ने कहा था, "धारा-497 शादी को सेफगार्ड करती है। यह प्रावधान, संसद ने विवेक का इस्तेमाल कर बनाया है ताकि शादी को प्रोटेक्ट किया जा सके। ये कानून भारतीय समाज के रहन-सहन और तानाबाना देखकर ही बनाया गया है। लॉ कमिशन इस मामले का परीक्षण कर रही है। उनकी फाइनल रिपोर्ट का इंतजार है।"

बता दें कि जनवरी में सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने एडल्टरी के मामले से जुड़ी धारा 497 पर सुनवाई को पांच जजों की संवैधानिक बेंच को ट्रांसफर कर दिया था। कोर्ट ने तब कहा था कि वर्तमान परिस्थितियों, लैंगिक समानता और लैंगिक संवेदनशीलता को देखते हुए इस धारा पर विचार किया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा था जब संविधान महिला और पुरुष दोनों को बराबर मानता है तो आपराधिक मामलों में ये भेदभाव क्यों ? आगे की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी के सेक्शन 497 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। इसी नोटिस पर केन्द्र ने बुधवार को अपना हलफनामा कोर्ट में पेश किया।

क्या है धारा 497
अगर कोई शादीशुदा किसी और शादीशुदा महिला के साथ उसकी सहमति से भी संबंध बनाता है तो ऐसे संबंध बनाने वाले पुरुष के खिलाफ उक्त महिला का पति एडल्टरी का केस दर्ज करा सकता है। इसके तहत पुरुष को दोषी पाए जाने पर 5 साल तक जेल की सजा हो सकती है। लेकिन इसमें संबंध बनाने वाली महिला के खिलाफ मामला दर्ज करने का कोई प्रावधान नहीं है। बता दें कि यह धारा महज शादीशुदा महिला के साथ सम्बंध बनाने पर लगाई जाती है, बिना शादीशुदा महिला, सेक्स वर्कर या विधवा से सम्बंध बनाने पर इस धारा के तहत कोई मामला दर्ज नहीं किया जाता है।

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