किसी भी सूरत में उजागर नहीं होनी चाहिए रेप पीड़िता की पहचान : सुप्रीम कोर्ट

किसी भी सूरत में उजागर नहीं होनी चाहिए रेप पीड़िता की पहचान : सुप्रीम कोर्ट

Bhaskar Hindi
Update: 2018-04-25 03:47 GMT
किसी भी सूरत में उजागर नहीं होनी चाहिए रेप पीड़िता की पहचान : सुप्रीम कोर्ट

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि दुष्कर्म के किसी भी मामले में पीड़िता की पहचान उजागर नहीं की जा सकती है फिर चाहे पीड़िता की मौत ही क्यों न हो गई हो। कोर्ट ने कहा कि मृतक की भी अपनी गरिमा होती है इसलिए किसी भी हालत में उसकी पहचान को उजागर नहीं किया जाना चाहिए। जम्मू के कश्मीर के कठुआ में आठ साल की बच्ची की दुष्कर्म के बाद हत्या और अन्य दुष्कर्म पीड़िताओं की पहचान उजागर करने के मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्पणी की है।

 

मीडिया को "सुप्रीम" सलाह

सुप्रीम कोर्ट ने दुष्कर्म पीड़िता के मामलों पर सुनवाई करते हुए ये भी कहा है कि मीडिया को रिपोर्टिंग करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उसकी रिपोर्टिंग से पीड़िता की गरिमा खंडित न हो, उसका नाम उजागर न हो और न ही उसे शर्मिंदा होना पड़े फिर चाहे पीड़िता की मौत ही क्यों न हो चुकी हो। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर पीड़िता जीवित है और नाबालिग है या उसकी मानसिक स्थित ठीक नहीं है ऐसे में भी उसकी पहचान उजागर नहीं होनी चाहिए क्योंकि उसे भी निजता का अधिकार है। वह जीवन भर इस कलंक के साथ नहीं जी सकती है। 

 

माता-पिता की अनुमति हो फिर भी उजागर नहीं होगी पहचान 

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कठुआ मामले में पीड़ित आठ साल की बच्ची की पहचान जाहिर किए जाने के मामले पर संज्ञान लेते हुए ये बातें कहीं। आपको बता दें कि कठुआ रेप पीड़िता की पहचान उजागर करने के चलते दिल्ली हाईकोर्ट ने 12 मीडिया संस्थानों पर 10-10 लाख रुपए का जुर्माना लगाया है। जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है। सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई जस्टिस मदन बी लोकुर और दीपक गुप्ता की खंडपीठ में हुई इस दौरान वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने रेप की शिकार पीड़िता की पहचान छिपाने वाली आइपीसी की धारा 228-ए का जिक्र करते ही कठुआ का मामला उठाया, साथ ही ये भी सवाल किया कि किसी दुष्कर्म पीड़िता नाबालिग की पहचान सिर्फ इसलिए कैसे उजागर की जा सकती है कि उसके माता-पिता ने इसकी अनुमति दे दी है। जिसके जवाब में कोर्ट ने सवालिया लहजे में कहा कि ऐसा क्यों होने देना चाहिए ? अगर कोई व्यक्ति अपरिपक्व दिमाग का है तो भी नाबालिग पीड़िता को पूरा अधिकार है कि उसकी पहचान छिपाई जाए। उसे निजता का अधिकार है। एक नाबालिग कभी बालिग होगी। उस पर यह कलंक जिंदगीभर के लिए क्यों लगना चाहिए। मामले पर अगली सुनवाई के लिए 8 मई का दिन तय किया गया है। 

Similar News