मृत्यु के संबंध में याचिका: सुभाष चंद्र बोस की मौत पर जनहित याचिका, न्यायालय ने याचिकाकर्ता से अप्रसन्नता जताई

  • याचिकाकर्ता की प्रामाणिकता जांचने की जरूरत-कोर्ट
  • सुको ने याचिकाकर्ता से जनहित और मानवाधिकारों के काम पूछे
  • न्यायालय ने एक हलफनामा दाखिल करने को कहा

ANAND VANI
Update: 2024-04-01 13:09 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को उस याचिकाकर्ता से अप्रसन्नता जताई, जिसने नेताजी सुभाषचंद्र बोस की मृत्यु के संबंध में एक जनहित याचिका दायर की है। न्यायालय ने कहा कि याचिका में उन नेताओं के खिलाफ ‘लापरवाही पूर्ण और गैर-जिम्मेदाराना आरोप’ शामिल हैं जो अब जीवित नहीं हैं। अगली सुनवाई चार हफ्ते बाद होगी। याचिकाकर्ता ने टॉप कोर्ट में लगी अपनी याचिका में महात्मा गांधी तक को नहीं छोड़ा। याचिकाकर्ता की प्रामाणिकता जांचने की जरूरत है। जस्टिस  सूर्यकांत और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने याचिकाकर्ता पिनाक पाणि मोहंती से पूछा कि उन्होंने जनहित के लिए और मानवाधिकारों के लिए क्या काम किया है।

मोहंती ने अपनी याचिका में कहा था कि वह ‘वर्ल्ड ह्यूमन राइट्स प्रोटेक्शन ऑर्गेनाइजेशन’ (इंडिया) के कटक जिला सचिव हैं। पीठ ने कहा, ‘‘आपके पीछे कौन है? आपने जनहित के लिए क्या किया है?’’ उच्चतम न्यायालय ने उनसे एक हलफनामा दाखिल करने को कहा, जिसमें बड़े पैमाने पर समाज के लिए, खासकर मानवाधिकार के क्षेत्र में उनके द्वारा की गई अब तक की गतिविधियों का जिक्र हो। कोर्ट ने आगे की सुनवाई चार सप्ताह बाद करना तय किया।

आपको बता दें इससे पहले सुप्रीम कोर्ट नेताजी सुभाष चंद्र बोस को राष्ट्र का पुत्र घोषित करने की मांग करने वाली याचिका को खारिज कर चुका है। हालांकि इस सुनवाई को करते हुए सुको ने कहा नेताजी सुभाष चंद्र बोस जैसे नेता “अमर” हैं, उन्हें न्यायिक आदेश के जरिए से मान्यता देने की जरूरत नहीं है।

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