भारतीय विदेश मंत्रालय: ड्रैगन को उसी की भाषा में जवाब,शक्सगाम घाटी में चीन निर्माण का भारत ने किया कड़ा विरोध

  • विदेश मंत्रालय ने दी जानकारी
  • 1963 के चीन-पाकिस्तान सीमा समझौते को नहीं मानता भारत
  • चीन के प्रयासों का कड़ा विरोध

ANAND VANI
Update: 2024-05-02 13:59 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारतीय विदेश मंत्रालय ने चीन और सियाचिन से जुड़े शक्सगाम घाटी में चीनी निर्माण गतिविधियों को कड़ा विरोध किया। ये बात मीडिया के सवालों के जवाब में विदेश मंत्रालय (एमईए) के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने गुरुवार को कही। यहीं नहीं उन्होंने आगे कहा कि 1963 के तथाकथित चीन-पाकिस्तान सीमा समझौते को भारत ने कभी स्वीकार नहीं किया। इस समझौते के माध्यम से पाकिस्तान ने 'अवैध रूप से' इस क्षेत्र को चीन को सौंपने की साजिश की।

सियाचिन के पास चीनी गतिविधियों पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जयसवाल कहते हैं, "हम शक्सगाम घाटी को अपना क्षेत्र मानते हैं। हमने 1963 के तथाकथित चीन-पाकिस्तान सीमा समझौते को कभी स्वीकार नहीं किया है, जिसके माध्यम से पाकिस्तान ने अवैध रूप से इस क्षेत्र को चीन को सौंपने का प्रयास किया था।" हमने लगातार इसके प्रति अपनी अस्वीकृति व्यक्त की है। हमने जमीनी स्तर पर तथ्यों को बदलने के अवैध प्रयासों के खिलाफ चीनी पक्ष के साथ अपना विरोध दर्ज कराया है। हम अपने हितों की रक्षा के लिए आवश्यक उपाय करने का अधिकार भी सुरक्षित रखते हैं

आपको बता दें कि शक्सगाम घाटी रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्र है। फिलहाल यह भौगोलिक इलाका पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) का हिस्सा है। विदेश मंत्रालय (एमईए) के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने गुरुवार को कहा कि निर्माण की खबरों का गंभीरता से संज्ञान लेते हुए सरकार ने चीन के समक्ष कड़ा विरोध दर्ज कराया है।

विदेश मंत्रालय ने जमीनी स्थिति में एकतरफा बदलाव के 'अवैध' प्रयास के खिलाफ मजबूती से अपनी बात रखी, उन्होंने साफ कहा कि शक्सगाम घाटी ऐतिहासिक रूप से भारत का हिस्सा है। विदेश मंत्रालय के मुताबिक भारत ने लगातार अपनी अस्वीकृति व्यक्त की है। हमने जमीनी हकीकत में बदलाव के अवैध प्रयासों के खिलाफ चीनी पक्ष के समक्ष अपना कड़ा विरोध दर्ज कराया है। प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, 'हम अपने हितों की रक्षा के लिए जरूरी कदम उठाने का अधिकार सुरक्षित रखते हैं।

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